Tuesday 20 October 2015

राग बनारस....गंगा जमुनी तहजीब..

दस दिन पहले हुए भयंकर बवाल के बाद भी नहीं लग रहा कि  बनारस के हृदय स्थल गोदोवलिया चौराहे पर कुछ हुआ था...देखिये न सब कुछ ज्यों का त्यों है.. लोगों को कोई चिंता नहीं कि मीडिया बनारस के बारे में क्या क्या चिल्ला रही..वो उसी मस्ती में पान घुलाये  चले जा रहे..बेखबर.. बेफिक्र... बेपरवाह... उनको इसका भी गम नहीं कि    स्वच्छ शहरों की रैंकिंग में हमारे बनारस  का 381 वाँ स्थान क्यों है..वो आज भी सड़क पर ही पान थूकेंगे और गलियों में  कूड़ा कूड़ा खेलेंगे....उन्हें इसका भी लोड नहीं  है कि मोदी जी बनारस को क्योटो कब बनाएंगे..वो तो इतने से खुश हैं कि हमारा लोकप्रिय पीएम हमारा सांसद है...उन्हें ये भी आशा नहीं कि प्रदेश की समाजवादी सरकार मेट्रो दौड़ायेगी.वो तो परपम्परा का रूप ले चुके जाम के झाम में आज भी सामने वाले को भो** के.....* कहकर  तसल्ली कर रहे हैं....
देश दुनिया में  डिजिटल इंडिया की बातें हो रहीं हैं.. और यहाँ  लोग बिना माइक तार के ढाई सौ साल से हो रहे रामनगर की रामलीला देखने चले जा रहें हैं।
बाबा भांग वाले की भोग आरती हो...श्रृंगार आरती,गंगा मइया की आरती  सब समय से जारी है।
और कमबख्त दुनिया सोच रही बनारस का माहौल गड़बड़ है. जल्द ही दंगा फसाद टाइप होगा..बवाल मचेगा... मीडिया भी कवरेज करने के लिए तैयार बैठी है.... लेकिन साहेब टीवी देखकर आप बहुत कुछ नहीं समझ सकते ,न ही कोई किताब या फ़िल्म देखकर.. न  ही एक दिन बनारस आकर घाट पर फ़ोटो खिंचवाकर आप बनारस को जान सकतें हैं....अरे यहाँ  के लोग पान में दुनिया के सारे रंजो गम को घुलाकर एक विशेष प्रकार का मुंह बनातें हैं और  पिचकारी चलाकर  धीरे से कहते हैं......"लोड न ला गुरु" ...  सो आप भी टेंसन न लें।
क्या है कि अस्सी से गोदोवलिया आये मुझे ढाई साल हुए..इन थोड़े दिनों में बहुत करीब से महसूस किया कि बनारस के डीएनए में ही मस्ती है...अल्हड़पन और फक्कड़पन है..यहाँ जैसा आप सोचतें हैं वैसा कुछ नहीं हो सकता।
दूर से टीवी देख रहे लोग नहीं जानते कि यहाँ संस्कृति भी है और संस्कार भी...संगीत आकर यहाँ मूर्त रूप लेता है तो साहित्य नई फलक पर पहुंचता है....जहां मिठाई से ज्यादा मीठी गालीयां हैं...जहाँ गंगा जमीन से ज्यादा लोगों के दिलों में बहती हैं...  जहाँ  की फिजावों में आज भी गुदई महराज का "कत धिकीट कत गदिगन" बज रहा है...जहाँ  गिरिजा देवी "बिन पीया निंदिया न आये" गा रहीं..तो कहीं उस्ताद बिस्मिल्लाह  खान बालाजी मन्दिर के नौबतखाने में इबादत कर रहे है ...तो कहीं प्रेमचन्द का हामिद मदनपुरा में मुस्करा रहा तो जयशंकर प्रसाद का 'गुंडा' नन्हकू सिंग चेत सिंह घाट पर आज भी महारानी काशी के प्रेम में खड़ा है..जहाँ  गंगा जमुनी तहजीब के महान शायर नज़ीर बनारसी अपनी गंगा माई को अपना कालजयी शेर सुना रहें हैं...
"हमने नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर
    गंगा तेरे पानी से वजू करके"..
अरे वहां किसी अनिष्ट की कल्पना करना आपकी मूर्खता ही तो  है। सद्भाव इस शहर का संस्कार है। दो चार बाहरी आकर हुड़दंग मचाकर चले जाएं और आप बनारस का आकलन लें ये नीरा मूर्खता है।
इन आवारा लंठो को छोड़िये..काशी ने हजारों रत्न पैदा किये हैं....जिनकी चमक आभा आज भी फिजावों में घुली है...जिन्होंने धर्म सम्प्रदाय से ऊपर उठकर मनुष्यता को जोड़ने का काम किया है...भले लाख तोड़ने वाले आ जाएँ वो तुलसी के "प्रेम से प्रगट भयऊँ मैं जाना" को जीवन सूत्र बनाएं हैं।
बहुत से नाम है..कौन सा गिनाऊँ और छोड़ दूँ...लेकिन आपको बता दूँ एक नाम है इधर भी जिनके बारे में सभी वर्ग के लोगों के दिलों में विशेष सम्मान है...वो  हैं आदरणीया नाजनीन अंसारी जी ।
कभी लल्लापुरा की तंग गलियों में   रहने वाली नाजनीन अंसारी को अपने गरीबी अभाव से उतना दुःख नहीं था जितना इस्लाम में औरतों के जाहिलियत और दाकियानूसी भरे तंग नजरिये से था..  उन्हें  ये सब आहत करता था.. फिर क्या सोचा की कुछ करना चाहिए....सबसे पहला खुद को बदला..शिक्षा को हथियार बनाया.. नाम मात्र की शिक्षा पाने वाली नाजनीन जी नें  स्वाध्याय शुरू किया...खूब पढ़ा..दूरस्थ शिक्षा से पीजी की डिग्री ली....फिर घरों में कैद होकर मर रही गरीब मुस्लिम  महिलावो को शिक्षित करने और जागरूक करने का बीड़ा उठाया..मसलन की वो बैंक जाये तो कैसे फार्म भरें. बिल कैसे जमा करें..तमाम सरकारी सुविधावों का लाभ कैसे लें.. जैसी छोटी छोटी बातों के साथ इस पर जोर दिया की ये स्त्रियां आत्मनिर्भर कैसे हों...
जागरूकता की ये लौ जली ही थी तब तक फरवरी 2006  में बनारस सीरियल बम ब्लास्ट से दहल उठा ...अचानक से बनारस की आबो हवा  को झटका लगा....हर बनारसी सदमें में..
हिन्दू कम मुसलमान ज्यादा... वहीं नाजनीन अंसारी 51 मुस्लिम महिलावों के साथ  बाबा संकट मोचन के दरबार में पहुंची..और सस्वर सुंदर काण्ड का पाठ करके बनारस के अमन शान्ति भाईचारा की कामना की...
उन्होंने मुस्लिम महिला फाउंडेशन की स्थापना किया...आज भी हर साल ईद मुहर्रम के साथ साथ राम जन्म भी वो धूम धाम से मनाती हैं. उनके हाथों  प्रसाद बनता है सोहर और बधावा गाया जाता है..."भये प्रगट कृपाला दिन दयाला" के बावजूद उन्होंने राम लला की खुद आरती और स्तुति  लिखी है...कई ग्रन्थों का उर्दू में अनुवाद किया है...
वो गर्व से कहती हैं "राम किसी मजहब के भगवान नहीं वो तो  हमारी संस्कृति के भगवान हैं"
अभी  रक्षाबन्धन के दिन उनके फाउंडेशन की मुस्लिम महिलावों ने प्रधानमंत्री जी को राखी बनाकर भेजा..और धन्यवाद ज्ञापन किया कि बनारस के 51 हजार गरीब महिलावो को मुफ़्त बीमा सुरक्षा योजना का ये जो आपने उपहार दिया है उसके लिये हम आभारी हैं..
उन्होंने आरएसएस के 'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' के प्रचारक इन्द्रेश जी को भी  राखी भेजा कि आप समाज को जोड़ने का काम कर रहें हैं...
वो गंगा को साफ़ करने के लिए कई मुस्लिम महिलावों के साथ जाकर शपथ ले चुकी है ....
जाहिर है हर पल "इस्लाम खतरे में है " चिल्लाने वाले मुल्ला जी लोगों को ये सब नागवार गुजरता है....शायद हमेशा से गुजरता भी आया है..तभी तो कभी नज़ीर बनारसी ने आहत होकर एक शेर पढ़ा था
"हिंदुओं को तो यकीं हैं कि मुसलमां है नज़ीर
कुछ मुस्लिम है जिन्हें शक है कहीं हिन्दू तो नहीं"
ये शेर नाजनीन जी पर भी लागू होता है लेकिन वो इन सबसे बेखबर आज भी जोड़ने में लगी हुई हैं...उन्हें लगता है कि धर्म और उसके ग्रन्थ इंसान और प्रेम से ऊपर नहीं हैं।
ये  बनारस के गंगा जमुनी तहजीब की छोटी सी बानगी भर है.... चिल्लाने वालों को शायद पता नहीं अभी भी ज़िंदा लोग बचे हुये हैं..
देख लो एक तरफ कुछ लोग देश में आईएस  बोकोहराम का प्रवक्ता बनने के लिए आवेदन कर रहे हैं.... तो दूसरी तरफ नाजनीन अंसारी जैसे लोग भी हैं।
इस धार्मिक कट्टरता के दौर में ऐसे लोगों को बार बार सलाम।

Image-dr sk singh facebook

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