Tuesday 20 October 2015

चल न देख सखी देख आईं रामलीला....

राजा दशरथ बैठकर अभी बीड़ी पी रहें हैं..
बगल में सीता जी से कुम्भकर्ण ने कहा है कि "थोड़ा मोबाइलवा चार्ज में लगा दो न..सरवा टावरे नहीं पकड़ रहा है इधर..मेहरारु को फोन करना है..खिसिया रही होगी.."
उधर लक्ष्मण जी को बहुत तेज से दो नम्बर लगा है..निपटने के लिए गये हैं.. उनको मेघनाद जोर से डांट रहे हैं...." दिन भर काहें खाते रहते हो बे..जवने मिलता है तवने खा लेते हो..?..पेट ठीक नहीं रह रहा तो बाबा रामदेव का दिव्य चूर्ण खाया करो.."
लक्ष्मण जी सूपर्णखा जैसा मुंह बनाकर मेघनाद को समझा रहें हैं......"चुप रहो बे उ तनी काल्ह तुम्हारी भौजी ने लिटी चोखा बना दिया था...बुझाया नहीं...उरेब खा लिए हैं।
दूसरी ओर भरत से शत्रुघ्न जी कह रहें हैं.."जरा अपना  whats app नम्बर दो न यार..कल वाला फ़ोटो सब साली को भेजना है"
अब लिजिये राजा जनक तो आज आये ही नहीं ...पता चलल है कि उनकी ससुरारी में किसी का तबियत खराब है...अब का होगा? तो बगल के मुखदेव चौधरी को आज राजा जनक का पार्ट मिला है...चौधरी जी समाजवादी नेता भी हैं....आज अभिनेता का पार्ट मिला है तो मारे ख़ुशी के उछल रहें हैं...उनको डाइरेक्टर साहेब समझा रहे देखो..."माइक के सामने जाना त इ मत समझ लेना की धरती पुत्र मुलायम सींग जी आ रहें हैं...याद रखना की तुम राजा जनक हो मुखदेव नेता नही."...चौधरी एकदम मूछ पर ताव देकर कहतें हैं..."अरे ना महराज का आप बात कर दिए..उ तनी दिन  भर दिन दूध बेचे हैं तो तनी जम्हाई ले रहें हैं...बाकी सब ठीक है।
मंच सजकर तैयार है..दस बारह चौकी पर  टेंट  समियाना तम्बू लगा है.....बांस बल्ली केला से जैसे तैसे गाँव के सधे हुए बीटेक्स छाप इंजीनियरो ने मंच को शानदार बनाने का असफल प्रयास किया  है....डाइरेक्टर साहेब  स्क्रिप्ट लेकर तैयार हैं...लग रहा कि रामानंद सागर मरने के पहले अपनी सारी वसीयत इन्हीं को  लिखकर  गये थे..कभी इधर जातें हैं कभी उधर..कभी अंदर कभी  बाहर..कभी लक्ष्मण को नसीहत दे रहे तो कभी सीता को समझा रहें हैं...."देखो संवाद बोलते हो तो कहीं से नहीं लगता है कि तुम्हारे हसबैंड अब वन में जा रहें हैं..थोड़ा सा फिलिंग और यार. सिचुएसन समझो....."
लिजिये..एतने में  हरमुनिया मास्टर ने धुन छेड़ दिया है...
"दिल दिया है जान भी देंगे ए वतन तेरे लिए......"
ढोलक वाले भाई लग रहे कि आज मेहरारु से मार खाकर आएं हैं...माइक वाले पर खिसियाते हुए कहरवा ताल की ऐसी की तैसी कर रहें हैं।
दर्शक भी तैयार हैं...कुछ लौंडे कभी मोबाइल में देखते हैं तो कभी  महिला दीर्घा में कुछ सर्च करतें हैं....उनको रामलीला से क्या मतलब..उनको रासलीला सूझ रहा है... अपनी वाली आई है की नहीं आज कन्फर्म कर रहें हैं...मुनेसर आ पतिराम आ सुकबिलास बाबा भी चौकी पर लाठी लेकर जमें हैं।
आ हेने लीलावती,कलावती ,परमेसरी
रिंकी आ नेहवा को लेकर आ गयी हैं....लीलावती  पियर रंग की छिट वाली साडी पहनी हैं...लाल लाल चूड़ी आ बड़की बिंदी लगाकर जब घूंघट से ताक कर हंसती है तो लगता है  मानो सावन के रात में  अँजोरिया उग गया है।..
अब  परदा गिरता है...कोई जोर से माइक में कोई चिल्लाता है...
"हर वर्ष की भाँती इस वर्ष भी आदर्श रामलीला कमेटी आपका हार्दिक स्वागत अभिनंदन बंदन करती है...."
माहौल एकदम भक्तिमय...
हरमुनिया मास्टर ने धुन बदल दिया..
"कहाँ बितवला ना...रतिया कहाँ बितवला ना"
ढोलक मास्टर एक जमका के "धाक तिनक धिन ताक धिनक धिन"बजा कर सम पर आ गए हैं।
माहौल शांत....अब मङ्गलाचरण शुरु......
"मंगल भवन अमंगल हारी......
क्या दिव्य माहौल हो गया....आज वन गमन का प्रसंग है... आह रस परिवर्तन....
एक लाइन में राम लक्ष्मण सीता चले जा रहें हैं.... देखो तो जरा राम चन्द्र जी को...कितना दिव्य स्वरूप.... तनिक भी नही लग रहा की ई मनोहर पांडे हैं....सब आँख बन्द कर हाथ जोड़ लेते हैं....
"प्रेम से बोलिये सियावर  रामचन्द्र की जय.."
गायक जी बाबा तुलसी की चौपाई गा रहे हैं
"उभय बीच सिय सोहति ऐसे
ब्रह्म जीव बीच माया जैसे"
वाह..क्या कह दिया तुलसी बाबा ने न?..बाबा को नमन..
तब तक कोई कमबख्त अनाउंस करता है..."किसुन मेडिकल स्टोर की तरफ से ग्यारह रुपया का पुरस्कार आया है...आदर्श रामलीला कमेटी हार्दिक स्वागत वंदन करती है ।"
अब मुझे एक बार नहीं कई बार हंसने का मन करता है.....लेकिन...नहीं..क्यों हँसू..?
पचास साल पहले चला जाता हूँ.....सोचता हूँ..उस वक्त क्या वातावरण होता होगा न ..उत्साह एक रोमांच रामलीला का....जब ले दे के रेडियो टीवी भी गांवो में नहीं थे..तब रामलीला देखने के लिए लोग बैलगाड़ी से दूर दूर जाते थे.ऊँगली पर दिन गिनते।
अचानक से गम्भीर होता हूँ...तब समझ में आता है कि भरत ने तीसरी सदी में लिखे अपने नाट्य शास्त्र में 28 से ज्यादा अध्याय नाट्य कला पर ही क्यों लिखा....
दूसरी ओर सोचता हूँ..इन गाँव के भोले भाले कलाकारों से बड़ी अपेक्षा करना मेरी मूर्खता होगी न..?इनको नमन करना चाहिए की घर घर डिश टीवी और सांस्कृतिक प्रदूषण के दौर  में आज भी लोग अपनी इस महान पौराणिक परम्परा को ज़िंदा तो रखें हैं....
अरे इसी रामलीला ने न जाने कितने स्टार कलाकारों को पैदा किया है...इसी रामलीला ने भोजपुरी को उसका शेक्सपियर दिया है....
इसी रामलीला ने गंगा जमुनी तहजीब  और सामाजिक समरसता , प्रेम को जिंदा रखा था..हर जाति वर्ग के लोग दिन रात मेहनत करते कि उनके गाँव की रामलीला सबसे अच्छी हो...सबके प्रतिष्ठा का सवाल था..इसके लिए गाँव के  इद्रीस मियां पांच हजार चन्दा देते तो शकील खान राम जी की झांकी बनाने के लिए दिन भर मेहनत करते.....आज लाख माहौल खराब है लेकिन  कई जगह ये परम्परा चल रही है।।
ये सोचिये जरा हमारी महान सांस्कृतिक परम्परा को टेलीविजन और स्मार्टफोन ने कितना नुकसान किया है।
लेकिन लोग नहीं जानते कि इसकी जड़ो में मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला ही नहीं वरन समाज को एकसूत्र में  बाँधना की एक ड़ोर भी छिपी थी....जो गांव के रामलीला के साथ  ही कमजोर होकर टूट रही है...अब किसे फुर्सत है..जब एक क्लीक पर ही रामायण और महाभारत हाजिर है तक  रामलीला देखे चार घण्टा।
समय ने संगीत और मनोरंजन को इसलिए फास्ट कर दिया की आदमी के पास वक्त नहीं।..
तभी तो लोग आज अपनी जड़ों से अपनी माटी से उखड़ते जा रहे...
इन बचाने वालों को बारम्बार नमन....
बस एक छोटा सा निवेदन...
रामलीला में क्या होता है सबको पता है...लेकिन आपके आस पास रामलीला हो रही हो तो जरूर देखने जाएँ...कुछ न करें तो कम से कम ताली बजाकर कलाकारों का उत्साह तो बढ़ाएं...
कलाकारों को ही नहीं..आपको भी अच्छा लगेगा..पक्का 😊

No comments:

Post a Comment

Disqus Shortname

Comments system