Friday 29 January 2016

बौद्धिक बहस के बीच.....

इतिहास से अपना खानदानी मुकदमा चलता है बाबूजी से लेकर बाबा और बाबा से लेकर परबाबा तक इतिहास में भूगोल रहे हैं....लेकिन .मैंने अपनी खानदानी उपलब्धि से छेड़छाड़ करते  हुए इतिहास की किताबों से एक लम्बी लड़ाई लड़ी है....जो  मेरे खानदानी इतिहास में एक दिन जरूर दर्ज होगा.... लड़ाई के दौरान जो दिव्य ज्ञान हुआ था वो ये था कि  हमारा   भारत कभी सोने कि क्यूट सी  चिड़िया  था..चिड़िया  चौबीस कैरेट के सोने से बनकर मस्ती में फूदकती थी.. लेकिन पता न बेचारी को इस आर्यावर्ते जम्बूदीपे में कौन सा कष्ट हुआ कि  उड़ते उड़ते अमेरिका के साथ रूस चीन जापान जर्मनी तक चली गयी लेकिन लौटकर भारत आना मुनासिब न समझा...समय बिता और समय बदला.. भारत सोने की चिड़िया से  कृषि प्रधान देश बन गया...खेती में क्रान्ति हुई...कृषि में  देश की आत्मनिर्भरता ओवर फ्लो होने लगी...भारत तेल के बदले अनाज का लेन देन करने लगा. सबके घर अनाज से भर गए.. इसके बावजूद भी अनाज कि पैदावार  में लगातार   वृद्धि होती रही ।और एक दिन  भारत में अनाज रखने कि जगह तक न बची।लिहाजा अनाज खुले आम सड़ने लगे। जिसके दुःख में दुःखी होकर किसान बेचारे आत्महत्या करने लगे...
लेकिन साधो.. समय बेचारा समय का पक्का और परिवर्तन शील आदमी.एक बार फिर उसने करवट  बदलते हुए एक स्वीट सी अंगड़ाई लिया है...और भारत अब कृषि प्रधान से बुद्धिजीवी प्रधान देश बन गया है...
खेती में भयंकर  तरक्की के बाद अब देश में बौद्धिकता कि दमदार फसल लहलहा रही है.. ..
इस खेती को देखने के बाद एक प्रचण्ड अर्थ शास्त्री टाइप बुद्धिजीवी ने एक सलाह दिया कि "भारत चाहे तो  दुनिया में छाने वाली आर्थिक मंदी का फायदा उठाकर दूसरे देशों को बुद्धिजीवी निर्यात कर सकता है और  अपनी आर्थिक स्थिति को जबरदस्त रूप से मजबूत कर सकता है..... या 'तेल के बदले अनाज योजना कि जगह 'तेल के बदले बुद्धिजीवी' योजना पर फोकस कर सकता है।
काहें कि बौद्धिकता के इस  मैन्युफेक्चरिंग हब को दुनिया के चिंटू पिंटू टाइप देश ललचाई निगाह से देख रहे हैं.."काश हमहू अइसा होते".
जरा देखो तो भारत में जिधर नज़र घुमावों लोग विमर्श में व्यस्त हैं. बेहिसाब बहस..अकूत ज्ञान कथ्य तथ्य के  समंदर में ज्वार भाटा आया हुआ है..  क्रान्ति का दौर टीवी अखबार चाय कि दूकान नुक्कड़ से लेकर डायनिंग टेबल और फेसबुक टवीटर से लेकर whats app पर चल रहा है..
इन बुद्धिजीवी क्रांतिकारियों देखने  सुनने के बाद यकीन हो जाता है कि अब तो क्रांति  होकर रहेगी.बदलाव होकर रहेगा.देश दुनिया कि सारी समस्या का समाधान इन विमर्शों में घुस कर सो रहा है.....भारत फिर सोने की चिड़िया बनकर उड़ने लगेगा...हिन्दुस्तान पाकिस्तान का झगड़ा मिट जाएगा...पाकिस्तान के बच्चे भारत में आकर गुल्ली डंडा कंचा खेलने लगेंगे... भारत से  बुजुर्ग लोग  दीर्घशंका समाधान और पतंग उड़ाने हेतु पाकिस्तान के खेतों का रुख करेंगे......सीरिया ईराक में अखण्ड हरिकीर्तन और माता रानी का जागरण  का आयोजन होगा... दुनिया के सारे आतंकवादी अपनी बम बंदूक का अँचार डालकर मानावाधिकार  की लड़ाई लड़ेंगे..आईएसआईएस  के सारे लड़ाके अहिंसा की सौगंध खाते हुये वाड्रा साहेब के खेतों में  पुदीने की  खेती किसानी के गुर सीखेंगे..महंगाई की नानी मर जायेगी.पूंजीवादी व्यवस्था के दिन लद जाएंगे..   भ्रष्टाचार के कमर में मोच आ जायेगी..सारे नौकरशाह और नेता ईमानदारी के जीते जागते एक मात्र सबूत होंगे....अब राम राज्य कायम हो जायेगा..
लेकिन साधो... किसी दूसरे ग्रह से कोई आदमी हमारे देश  आये और  बुद्धिजीवियों के विमर्श सुनने के बाद जब आम लोगों से मिले तो माथा पीट लेगा...घोर निराश हो जायेगा जब जानेगा कि समाज का एक आम आदमी न इन बहसों को  सुनता,समझता,पढ़ता है न ही इनसे प्रभावित होता है....
उसे तो अपनी रोजी रोजगार की चिंता से फुर्सत नहीं.... मिस्टर राकेश के लिए अभी आतंकवाद से ज्यादा अपने टाइम से आफिस जाने की चिंता है...मिसेज शर्मा को इस बात कि चिंता नही की सलमान छूट गया ये कोर्ट कौन चला रहा था..उनको तो इस बात कि चिंता सता रही कि इस महीने घर का खर्च कैसे चलेगा...
पप्पू हलुवाई को पता नहीं कि असहिष्णुता किस चिड़िया का नाम है उनको तो इसके शुद्ध उच्चारण सिखने में ही पन्द्रह दिन लग जायँगे....
रामखेलावन को दुःख नहीं की कांग्रेस संसद नहीं चलने दे रही तो जीएसटी कैसे पास होगा..उनको तो इस बात कि चिंता सता रही की यदी इस जाड़े चार पाँच दिन धूप न हुआ  तो लकड़ी न सूखेगी फिर खाना कैसे बनेगा..?..गाय बैल कैसे रहेंगे हमारे।?
रामसकल  को खेतों की चिंता है..आलू को कहीं पाला न मार जाए..खेदन मजदूर को भारत के जीडीपी बढ़ने से ख़ुशी नहीं उनको तो इस बात की ख़ुशी है कि नए साल में उनकी मजदूरी बढ़ने वाली है...किसी उमेसवा को पढ़ाई की और किसी सिंटूआ को इस बात की चिंता है की उसकी तीसरी प्रेमिका भी उससे शादी करने ले लिए तैयार होगी या नहीं...
लेकिन साधो..इन मिस्टर राकेश, मिसेज शर्मा, रामखेलावन से बेखबर बुद्धिजीवी बहस पर बहस किये जा रहे हैं...क्रान्ति पर क्रान्ति हो रही है...और बदलाव नामक शब्द बेचारा  विलुप्त हो गया है।
अरे कैसे बदलाव आएगा? जब बुद्धिजीवी को बदलाव से ज्यादा विमर्श की चिंता सताएगी..इन विमर्शों का असर  कैसे होगा जब एक बुद्धिजीवी बिसलेरी पीते हुए 'जल समस्या' पर भाषण देगा....
एसी में बैठकर "किसान की समस्या" पर सेमिनार करेगा.
पत्नी को बेवजह डांटते हुए "स्त्री विमर्श" पर लेख लिखेगा।
वो  खुद को सही किये बिना सब कुछ सही करना चाहेगा
बिना खुद को बदले  दुनिया बदलने की बातें करेगा।
साधो.....बिना आत्मक्रांति किये  किसी क्रान्ति का कोई मोल नहीं..बिना खुद को बदले किसी को बदलने की कल्पना करना मूर्खता है।
ये क्रान्ति और विमर्श की सिर्फ बातें करना खाये पीये अघाये लोगों के बुद्धि के भोजन मात्र हैं...ये अगर ईमानदारी और सकारात्मक लक्ष्य को साधकर न किये गए तो  ये सिवाय बौद्धिक बिलास के कुछ नहीं हैं.
साधो... इन बातों से परिवर्तन तो दूर किसी गरीब के घर का चूल्हा नहीं जलेगा।
बाकी.. जवन है तवन हइये है।



7 comments:

  1. Sach bolte hain bhaiya. Hm choclate khate hain to idhar udhar dekhte hain. Fir uska palastilwa pockete me bhar lete hain. :)

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  2. बड़ा ही सटीक चित्रण किया है बुद्धिजीवियों का आपकी कलम को सलाम

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  3. बड़ा ही सटीक चित्रण किया है बुद्धिजीवियों का आपकी कलम को सलाम

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  4. वाह अतुल भाई

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  5. Kash ke is lekh pe apko Nobel prize mil jaye.. aur bhakto ke sath sabhi budhi-jiviyo ki aankh khul jaye.. aur bas har taraf rai jai rai jai ho jaye.. waise kuch pal padh ke apne antar mann ko glaani ho jaye bas samjho kranti aa gayi aur hum ek bar fir se azaad ho gaye. ..

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  6. हम बदलेंगे..जग बदलेगा...हम सुधरेंगे..जग सुधरेगा....
    जब तक हरेक बुद्धिजीवी स्वयं में बदलाव लाने का संकल्प नहीं लेगा सब कुछ पूर्ववत ही रहेगा.....
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने बंधु...

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  7. बहुत बढ़ीया लेख अतुल बाबु

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