Sunday 11 October 2015

ओ मेरी जीवन संगीत.... 2

सुनों....
आज  बनारस आ गया..सच पूछो तो इधर बनारस आकर कभी कभी उदास हो जाता हूँ...देखो कब गया और कब आया पता ही न चला... सोचता हूँ  ये आना भी कोई आना है.?..तुम्हारे बिना.और  ये आना जाना दूर होना और पास होना जैसे शब्द कितने बड़े जालिम हैं न?
तुम भी तो इस एकाकी जीवन में आ गयी किसी दूर देश के संगीत की तरह...क्या जरूरत थी..बर्षों से खाली रेगिस्तान में सावन कि रिमझिम फुहार बनकर आने की..सोचा न था कि ऐसा भी होगा कभी...की मुझे प्यार भी किया  किया जाएगा ।
उस दिन लगा था कि प्रेम के बिना जीवन  कितना बेसुरा और बेताला है...मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया था..."भगवान अगर दुनिया आपने बनाई होगी तो बता दूँ आपको,प्रेम दुनिया की सबसे मौलिक और सर्वश्रेष्ठ कृति है।"
छोड़ो..मैं जानता हूँ तुम अभी रहती यहाँ तो कह देती कि "ये अपना लिटरेचर और अपनी बोरिंग सी फिलॉसफी अपने पास रखिये..मुझे समझ में नहीं आता है".. हंसी आती है मुझे....मैं भूल जाता हूँ तुम मुझसे बहुत छोटी हो...ये सब समझने के लिए भी एक मानसिक योग्यता कि जरूरत होती है..लेकिन  ये तो सरासर बेवकूफी है...प्रेम का सबसे उदात्त स्वरूप उसके अनकण्डीशनल होने में ही है।...
तुम नहीं जानती प्रेम का समझदारी से मुकदमा चलता है...ज्यादा समझदार लोग प्रेम नहीं कर पाते..इसलिए तो तूम्हारी मासूमियत और निर्दोषता  का कायल हूँ।..इस जमाने को देखकर मन करता है ऊपर वाले से कह दूँ की "इसे बड़ा मत करना भगवान कभी भी।"
अच्छा एक बात पता है..तुमसे दूर होने के बाद ही पता चलता है कि तुम मेरे कितने करीब हो.. आज आते वक्त कितनी उदास थी न तुम?...मैं देख रहा था..आदमी कितना भी छिपाए लेकिन दिख जाता है यार....मैं समझ सकता हूँ...क्या करूँ...तुम्हारी और मेरी अपनी अपनी मजबूरियां हैं....लेकिन तुम उदास न होना पगली..माना कि दूर होना प्रेम की सबसे ख़ौफ़नाक क्रिया है...लेकिन पास होना और फिर दूर होना तो प्रेम की नियति है और खूबसूरती भी...कल कितने खुश थी तुम भी हम भी...कई  बार लगा काश ये वक्त यहीं रुक जाता....पर सोचने से सब कुछ कहाँ  हो पाता है। तभी तो आज कमरा खोलते ही लगा किसी कोने में तुम खड़ी हो और देखकर मेरी बेबसी पर हंस रही हो...कई बार खुद पर ही तरस आती है...क्या थे और क्या से क्या हो गए।
खैर ...
जानती हो...उदासी छोड़कर तुम खुश रहना हमेशा..वही अपनी मासूम से चेहरे पर भोली भाली दो आँखों के साथ....मैं सब कुछ देख सकता हूँ लेकिन तुम्हारा उदास होना नहीं देखा जाता...तुम खुश होना इसलिए की इधर मैंने तुमसे ही तो जाना कि प्रेम में होना आदमी होना है...
इन थोड़े दिनों में कितना कुछ सिखाया तुमने मुझे .बात बात पर हंसने वाली तुम्हारी मासूम सी हंसी से सीखा कि जीवन में कभी भी खुश हुआ जा सकता है। उन काजल भरी आँखों से जाना की सन्तूर पर राग पहाड़ी सुनने में इतना आनंद क्यों आता है.. कभी मुझे चिढ़ाकर कभी  मेरा और कभी मेरे फेसबुक स्टेटस का मजाक बनाना... ओह लगता है कोई पागल गायक भूपाली छोड़कर देशकार गाने लगा हो। हंसता हूँ बहुत और लगता है जीवन मजाक में ही बीत जाए तो कितना अच्छा हो।
तुम्हें ये पता नहीं न की तुम्हारी आँखों में इतनी गहराई क्यों है..और बातों में इतनी लयबद्धता..चाल में वही शांति..मानों बुद्ध ही चल रहे हों...मुझे भी नहीं पता...लेकिन एक दिन तुमको हंसते देखा..और उस दिन लगा कि तुम्हारी हंसी तो राग यमन के तीव्र मध्यम सी लगती है....और गुस्सा  उफ़्फ़...मानो राग भैरवी का कोमल ऋषभ हो...और रूठना मानों पण्डित निलाद्रि कुमार के सितार का   तार ही टूट गया हो अभी अभी...
और  उस दिन तुम मेरे  लिए चाय बना रही थी न..मुझे लगा अमृता प्रीतम अपने साहिर के लिए कोई नज़्म लिख रहीं हों।अब ये मत पूछना की ये अमृता प्रीतम कौन है...मुझे हंसी आएगी बहुत।
पता है इधर तुमने एक झटके में मुझे  पहले से ज्यादा संवेदनशील बनाया है.. जवाबदेह भी..और हद दर्जे का लापरवाह भी.. एक एक चीज का कितना हिसाब रखती हो मेरा.. डर लगता है बिगड़ न जाऊं मैं।।
लगता भगवान ने एक और माँ  दे दिया है मुझे.तभी तो दिन भर का सारा हिसाब मुझे कई जगह देना पड़ता है। कभी कभी झूठी सफाई भी।
आज डायरी में लिखने को बहुत कुछ है...लेकिन तुम्हें लिखा कैसे जा सकता है। नहीं लिख पा रहा अब...
अक्सर कई बार लगा कि प्रेम वो नहीं जो प्रेम की पुरस्कृत किताबों और फिल्मो में मैंने पढ़ा और देखा है....ये तो कुछ और बात है....बहुत ही दिव्य...जहाँ चेतना इतनी ऊपर होने लगती है की आदमी के विकार खुद ब खुद मिटने लगतें हैं....  वो असाधारण होने लगता है..काश ऐसा होता मेरे साथ भी..होगा एक दिन देखना।
कभी किसी ने कहा  कि "प्रेम जीवन का नमक है"..वो कभी मिले तो मैं उससे कहूँ..की "प्रेम जीवन का संगीत है..." और तुम मेरी जीवन संगीत।                           
                                     

#दीवाने_की_डायरी  


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