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Sunday, 20 March 2016

असली हीरो कौन हैं ?

1982  के दिन.... अमेरिका के एक बड़े शहर में आयोजित कार्यक्रम.... वहां के लोग उस्ताद से जिद्द कर देतें हैं कि "आप यहीं रह जायें तो बड़ा अच्छा हो..."
उस्ताद इस बात को अनसुना कर शहनाई फूंकने में व्यस्त हो जातें हैं।
फिर तो अमेरिका द्वारा विदेश में बसने बसाने के वो तमाम फाइव स्टार प्रलोभन दिये  जाते हैं. वो तरह तरह के लग्जरी सपने दिखाये जातें हैं,जो आजकल के कलाकार दिन रात  देखतें  हैं।

लेकिन ये क्या...उस्ताद ने   बस इतना ही कहा  "मेरी काशी मेरी,गंगा ला दो. वो बालाजी घाट की सीढीयाँ...वो मंगला-गौरी मन्दिर..वो बिश्वनाथ मन्दिर का  नौबत खाना,जहाँ से बजाते बजाते आज तुम तक यहाँ पहुँचा हूँ।
ला दो तो हम यहीं रह जायें।"
अमेरिकन खामोश और अवाक रह गये..आगे कुछ कहने की हिम्मत न कर सके.

फिर तो भारत रत्न से लेकर सारे विभूषण आधा दर्जन डाक्टरेट और न जाने कितने बड़े पुरस्कार और मानद उपाधियाँ पाने वाले कला के सच्चा साधक  ने इस बात का कभी अफ़सोस न किया कि ."वो  अमेरिका का वैभवशाली जीवन न जी सके"
जीवन भर उन्हें इस बात का गर्व ही रहा..
इस  नयी नज़ीर  को पेश कर वो आजीवन,सादगी की प्रतिमूर्ति बने रहे..
और  बनारस के उस  तंग मोहल्ले के छोटे से  कमरे में जीवन गुजार दिया जिसे हड़हासराय कहतें हैं।

कहतें हैं उस्ताद जीवन के आखिरी दिनों में हेरिटेज हॉस्पिटल में भर्ती थे...लता जी,उषा जी,दिलीप साब,अमिताभ बच्चन, सबने मिलकर सन्देश भिजवाया कि   "आप खाना और जूस समय से लिया करें..."
जब शिवनाथ झा   ने ये सन्देश उस्ताद को सुनाया. तो उन्होंने कहा.."जब पूरा देश दुआ में खड़ा है तो मैं जरूर ठीक हो जाऊँगा...
सुनों तुम इंडिया गेट वाले कार्यक्रम की तैयारी करो
मैं एक नये राग की तैयारी कर रहा हूँ. जिस राग से भारत माँ के लिये लिये मर मिट जाने वाले सैनिकों,योद्धाओं, को बधाई दे सकूँ..उनके बलिदान को अपनी शहनाई से सलाम कर सकूँ।"

लेकिन अफ़सोस..ऊपर वाले को ये मंजूर नहीं था..वो कुछ ही दिन बाद हम सबके बीच से चले गये..
और उनकी ये अंतिम  तमन्ना कभी न पूरी हो सकी...वो राग कभी न बज सका।

आज तो हालात खराब हैं...कलाबाजी के दौर में अपने मूल्यों और आदर्शों पर जीने वाले कलाकार बहुत कम हैं।
इस विकृत समय में..ये अथाह प्रेम अपने देश के प्रति,शहर के प्रति,  अपनी माटी और कला के प्रति बनारस से अब जाने को है।
या यूँ कह सकतें हैं कि उस्ताद के साथ ही विदा हो गया।

आज लोगों को पता नहीं कि बिस्मिलाह खान होना एक निर्दोष  और निश्छल आदमी होना है जिसे न मंदिर से मतलब है न मस्जिद से न हिन्दू से न मुसलमान से ।क्योंकि सुर की न जाती हैं न धरम। एक फक्कड़ होना है,जिसे न सम्पदा से मतलब है न वैभव से एक सादगी की प्रतिमूर्ति होना है जिसमे सहजता ही सहजता है। अपने सांगीतिक क्रिया कलापों में तहजीब को तरजीह देना है।
एक हीरो होना है जिससे आने वाली नस्लें सिख सकें।

इधर जब कुछ लोग देशभक्ति और देशद्रोह की नयी-नयी परिभाषा बनाने पर तुले हैं...
कुछ लोगों को दशरथ मांझी के बजाय रोहित वेमुला में हीरो नज़र आता है.
अब्दुल हमीद,अब्दुल कलाम,बिस्मिलाह खान के    बजाय..अफ़जल,याकूब और उमर खालिद,हीरों लगतें हैं.
तब हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि हम हीरो की असली परिभाषा से  सबको अवगत करायें...
हम देश हित में अपने घर परिवार बच्चे आने वाली पीढ़ी को बतायें  कि हमारे असली हीरो कौन  हैं।
उस्ताद के जन्मदिन पर नमन।

Saturday, 19 March 2016

आई लव यू पिंकी..


बसन्त की जवानी  उफान पर है......गाँव जवार होलियाया है....छोट,बड़,धनी,गरीब..सब तैयारी में हैं...काल्ह खेदन नवेडा से फोन किये अपनी मेहरारु को..
"आहो  सन्टुआ के माई..देखो ना, शिवगंगा, सेनानी आ सद्भावना में कहीं टिकसे नहीं मिल रहा है... कइसे आएं  हम हो?"
संटूआ  के माई खिसिया के  कही है.. "पैदल चल आइये ..भा टेम्पो आ रेक्सा से...बाकी फगुआ में रहना एकदम जरूरी है  ......नाहीं तो  पुआ के जगह खिचड़ी बना देंगे..सब होली मुहर्रम हो जायेगा...अरे आगि ना लाग जाये  अइसन नोकरी के.. बरिष बरिष के दिन भी टाइम आ टीकस नहीं मिल रहा।.
भौजी का खिसियाना  जायज है....कल से घर साफ़ कर रहीं..आँगन बुहार रही हैं....चुनमूनवा और खुश्बुआ को नया कपड़ा खरीदी हैं..तनिक छोटा हो गया है..
अब जावो न  सहतवार बदलने के लिये..अभी गेंहू धोना है..सुखाना है...सूजी मैदा तो गाँव से ही खरीद लेंगी..केतना काम है होली तक..हे काली माई शक्ति दे देना भौजी को तनी।
इधर गाँव घर के बाहर मौसम का मिजाज बदलायमान  होकर ऐसा  असर किया है कि आदमी से लेके पशु पक्षी और  खेत से लेके खरिहान पर नशा चढ़ गया है..
खेत में  सरसों के पत्ते  से   लेके मटर   तक एक   दूसरे  से  बतीया रहें हैं.. ..कहीं आम के फूल..महुआ के मोजर से कह रहे हैं..."तुम को देखते ही रोम रोम हिलने लगता है..."
जामुन के फूल आसमान की  ओर ताक के हंसते हैं तो ऐसा लगता है,मानों कह रहें हों.
"ए भाई फेसबुक टीवी बन्दकर देखो न एक बार हम कितने सुंदर हैं". 
बगल में मटर के पौधे हिलते  हैं..मानों आज उनकी आपातकालीन बैठक हो रही हो..
"अबे होली तक सब शांति से रहने का है..नहीं तो  चुपके से सब  घुघनी बनाके  चाय के संगे  खा जायेगा" ..हाय रे दुःख।
इधर गेंहू के बाल में जान आ गया है......जब फगुनहट बहता त नवकी भौजी का पल्लू सम्भरले नही सम्भराता  है.....छोटका देवरवा माजा लेने के लिये  छेड़ता है..."ए   भौजी हमू  डालेंगे  न होली में "?
भउजी पल्लू सम्भाल के  तड़ाक से कहतीं हैं...."भाक्क्..एकदम मउगे हो गयें हैं का.."?
इधर पिंकिया  आ मंटुआ का एग्जाम खतम हो गया..मने बड़का टेंसन खतम हुआ..
अंतिम दिन खूब नकल हुआ  मंटुआ का तो गोड़ जमीने पर नहीं था..अब 80% से कौन रोक लेगा जी.
आ पिंकिया आतना खुश थी की का कहल जाय..पानी पीने के बहाने हैण्डपाइप पर आई आ मंटू राजा को देखकर धीरे से कही..
-ए मंटू
का?
-एकदम हीरो जइसन लग रहे हो..
बक्क..
सही कह रहे आँखि किरिया
-तुम भी तो एकदम अलिया भट्ट जइसा लग रही हो..उससे भी सुंदर।
चुप रहो..सब देख रहे..
पता है मंटू आज न जाने कातना दिन बाद तुमको एतना करीब से देख रहे हैं..मने का कहें।
आ सुनों जी..कइसा लेटर लिखते हो जी कि मेरे पढ़ने से पहले ही  सबका मोबाइल में पहुंच जाता है...एकदम लाज हया नहीं न."?
-अरे पगली सब महंगा वाला मोबाइल में उ सिस्टम है..पइसा वाला लोग रखता है..तुमको नहीं बुझाएगा।
-अच्छा जाने दो....ए मंटू..होली में रंग लगाने आवोगे न..?
-हाँ हाँ...बस तुम्हारे बाउजी से डर है..देख लिये तो सब होली रक्षाबंधन हो जाएगा।
ए मंटू पिछले साल  वाला याद  तुमको होली के दिन..
-भक्क..याद मत दिलावो बहुते लाज लगता है।
ओहो हो..मेरी मंटू कुमारी  देखो तो जरा केतना शरमा रही है..
आई लव यू मंटू
लव यू टू पिंकी।

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