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Saturday, 19 March 2016

आई लव यू पिंकी..


बसन्त की जवानी  उफान पर है......गाँव जवार होलियाया है....छोट,बड़,धनी,गरीब..सब तैयारी में हैं...काल्ह खेदन नवेडा से फोन किये अपनी मेहरारु को..
"आहो  सन्टुआ के माई..देखो ना, शिवगंगा, सेनानी आ सद्भावना में कहीं टिकसे नहीं मिल रहा है... कइसे आएं  हम हो?"
संटूआ  के माई खिसिया के  कही है.. "पैदल चल आइये ..भा टेम्पो आ रेक्सा से...बाकी फगुआ में रहना एकदम जरूरी है  ......नाहीं तो  पुआ के जगह खिचड़ी बना देंगे..सब होली मुहर्रम हो जायेगा...अरे आगि ना लाग जाये  अइसन नोकरी के.. बरिष बरिष के दिन भी टाइम आ टीकस नहीं मिल रहा।.
भौजी का खिसियाना  जायज है....कल से घर साफ़ कर रहीं..आँगन बुहार रही हैं....चुनमूनवा और खुश्बुआ को नया कपड़ा खरीदी हैं..तनिक छोटा हो गया है..
अब जावो न  सहतवार बदलने के लिये..अभी गेंहू धोना है..सुखाना है...सूजी मैदा तो गाँव से ही खरीद लेंगी..केतना काम है होली तक..हे काली माई शक्ति दे देना भौजी को तनी।
इधर गाँव घर के बाहर मौसम का मिजाज बदलायमान  होकर ऐसा  असर किया है कि आदमी से लेके पशु पक्षी और  खेत से लेके खरिहान पर नशा चढ़ गया है..
खेत में  सरसों के पत्ते  से   लेके मटर   तक एक   दूसरे  से  बतीया रहें हैं.. ..कहीं आम के फूल..महुआ के मोजर से कह रहे हैं..."तुम को देखते ही रोम रोम हिलने लगता है..."
जामुन के फूल आसमान की  ओर ताक के हंसते हैं तो ऐसा लगता है,मानों कह रहें हों.
"ए भाई फेसबुक टीवी बन्दकर देखो न एक बार हम कितने सुंदर हैं". 
बगल में मटर के पौधे हिलते  हैं..मानों आज उनकी आपातकालीन बैठक हो रही हो..
"अबे होली तक सब शांति से रहने का है..नहीं तो  चुपके से सब  घुघनी बनाके  चाय के संगे  खा जायेगा" ..हाय रे दुःख।
इधर गेंहू के बाल में जान आ गया है......जब फगुनहट बहता त नवकी भौजी का पल्लू सम्भरले नही सम्भराता  है.....छोटका देवरवा माजा लेने के लिये  छेड़ता है..."ए   भौजी हमू  डालेंगे  न होली में "?
भउजी पल्लू सम्भाल के  तड़ाक से कहतीं हैं...."भाक्क्..एकदम मउगे हो गयें हैं का.."?
इधर पिंकिया  आ मंटुआ का एग्जाम खतम हो गया..मने बड़का टेंसन खतम हुआ..
अंतिम दिन खूब नकल हुआ  मंटुआ का तो गोड़ जमीने पर नहीं था..अब 80% से कौन रोक लेगा जी.
आ पिंकिया आतना खुश थी की का कहल जाय..पानी पीने के बहाने हैण्डपाइप पर आई आ मंटू राजा को देखकर धीरे से कही..
-ए मंटू
का?
-एकदम हीरो जइसन लग रहे हो..
बक्क..
सही कह रहे आँखि किरिया
-तुम भी तो एकदम अलिया भट्ट जइसा लग रही हो..उससे भी सुंदर।
चुप रहो..सब देख रहे..
पता है मंटू आज न जाने कातना दिन बाद तुमको एतना करीब से देख रहे हैं..मने का कहें।
आ सुनों जी..कइसा लेटर लिखते हो जी कि मेरे पढ़ने से पहले ही  सबका मोबाइल में पहुंच जाता है...एकदम लाज हया नहीं न."?
-अरे पगली सब महंगा वाला मोबाइल में उ सिस्टम है..पइसा वाला लोग रखता है..तुमको नहीं बुझाएगा।
-अच्छा जाने दो....ए मंटू..होली में रंग लगाने आवोगे न..?
-हाँ हाँ...बस तुम्हारे बाउजी से डर है..देख लिये तो सब होली रक्षाबंधन हो जाएगा।
ए मंटू पिछले साल  वाला याद  तुमको होली के दिन..
-भक्क..याद मत दिलावो बहुते लाज लगता है।
ओहो हो..मेरी मंटू कुमारी  देखो तो जरा केतना शरमा रही है..
आई लव यू मंटू
लव यू टू पिंकी।

Saturday, 27 February 2016

समाजवादी नकल

टेक्नोलॉजी ने पाँव इस कदर फैला  लिये हैं कि नकलची अब हाईटेक किस्म के हो गये हैं....पहले काका आ विद्या की गाइड में मूड़ी नवाकर  खोजना पड़ता था...फिर फाड़कर समयानुसार छुपाकर लिखना पड़ता था..गणित बिज्ञान के  एग्जाम में कालेज का कोई अध्यापक हल करता फिर उसका फ़ोटो स्टेट पचास पचास रुपया में बेचा जाता.....लौंडे के हाई स्कूल में तीन बार फेल होने के बाद जब चौथी बार तीलकहरु दरवाजे से लौटने लगते  तब  बेइज्ज़ती के डर से बाबूजी मामा नाना उसे पास कराने में जोर लगा देते...
मल्लब कि जब फोन सिर्फ लैंडलाइन हुआ करते थे स्मार्ट नहीं...उस जमाने में लइका कमरे में परीक्षा देता और लइका के बाबूजी ,चाचा ,पितीया खिड़की पर...
उ बैठ के चिल्लाता की "सातवां के तीन तबे से मांग रहे हैं.....ना इनको  बिद्या में मिल रहल है  ना काका में... घरवे कहे की तनी पढ़  लिजिये  हो....बाकी इ एहू साल हमके  फेल करवा के मानेंगे......
सबसे चांदी लौंडो को हो जाती...
मंटुआ नहाना खाना  भूल जाता पर पिंकिया को नकल कराना नहीं...
उधर करिमना सुबह ही सुबह सज संवरकर  इमरान हाशमी बनके  लड़कियों वाले कमरे की खिड़की पर....
"का हो रीना जी आठवां का पांच हुआ?
तब  क्या करतीं रीना जी बेचारी उनके घर का कोई नहीं जो उनको नकल करवाये... दुपट्टा ठीक करते हुए नाक छूते  हुए  "ना" की मुद्रा में सिर हिला देतीं...
फिर तो लौंडा ना में हाँ को पढ़कर एक लहरिया कट लेता और आठवाँ का पांच खोजने इस मुद्रा में निकलता मानों कोलम्बस अमेरिका की खोज में गया हो....
खोज खाजकर लाता बाकी  देने से पहले अंखिया में अंखिया में डालकर जरूर कहता...
"पहिले इ बतावो की  सच्ची में पेयार करती हो हो  कि खाली अइसे ही देख देख हंसती  हो...? तुमको पता है हम तीन दिन से आजु सूत नही  रहें हैं..इचिको नीन नहीं लग रहा है..लग रहा है पियार में पागल होकर गुब्बारा बेचने लगेंगे......." आयं?
बताइए न रीना जी हम इस पेयार के परीक्षा में कहिया पास होंगे?
ओह...अब रीना जी के मासूम से चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगतीं...बेचारी प्यार के इस दीर्घउत्तरीय प्रश्न को छोड़ देना ही उचित समझतीं..
और सर झुकाकर चुपके से नकल सामग्री ले लेती....लौंडा सनी देवल वाली फिलिंग लाकर  बांह मोड़ते हुये एक बार अपने रीना जी से पूछता....."अउर केवनो दिक्कत परसानी होगा तो बताइयेगा....अरे प्रिंसिपल मेरे मामा के सार हैं..डर कवना बात के..आ हउ तिवरीया मस्टरवा को...अरे जहिया परीक्षा खतम हुया ओहि  दिन चट्टी पर उनकर मुरझाइल पैना से क्लास लेंगे हम लोग...."
फिर रीना जी के मुरझाये चेहरे पर उम्मीदों का बल्ब जलता..वो भी कह ही देतीं... "चार गो छूटत रहा है अभी"..
रीना जी को  फेल हो जाने का डर  सताता....फेल हो गए तो बियाह शादी में भारी  दिक्कत....।
इधर लौंडा चार के  चक्कर में नहीं प्यार के चक्कर में  चौदह कोस धांगकर उत्तर खोजता....ये अलग बात है की इंटर पास करने के  बाद रीना की शादी बीए फेल मुनीलाल से हो जाती। और करिमना नामक  लौंडा इस प्यार के एग्जाम में फेल होकर पापा की जग़ह मामा बन जाता और चट्टी पर दूकान खोल लेता....
"रीना किराना मर्चेंट"
और दू साल बाद रीना चक्रवृद्धि ब्याज की तरह फैलकर अपने एक वर्षीय गुल्लू के साथ उस दूकान पर जॉनसन बेबी पाउडर खरीदने आ जातीं....
ये प्यार करने वालों के साथ सनातन से चली आ रही ट्रेजडी है।विषयांतर होगा।
पर दुःख होता है  एशिया के सबसे बड़े परीक्षा के हालात को देखकर.... यहां नकल अब परम्परा का रूप ले चुका है....फ़ोटो स्टेट की जगह अब whats app ने लिया है...अकलेस भाई का नाव लेकर जूम करिये आ खूब लिखिये...आगे फारवर्ड करते रहिये....
प्रशासन के सारे दावे उपाय..जुमला साबित हो रहें हैं.. पूर्वांचल के कुछ जिलों में कहीं  न कहीं गहरे अवचतेन में ये बात घुस गयी है की नकल नही रुक सकता...
अब तो सुविधा शुल्क का जमाना आ गया...गार्जियन भी झंझट से मुक्ति के लिए स्कूल को दस पांच हजार दे देता है...नकल कराके पास करवाने की जिमेदारी स्कूल वालों की।
इधर समाजवाद के चार सालों में समाज का समाजवादी करण हुआ हो या न हुआ हो...अमीरी गरीबी झगड़ा झंझट खतम होकर लोहिया का सुराज आया हो या न आया हो लेकिन नकल का समाजवादीकरण जरूर हो गया है
कुछ भी कहना व्यर्थ है...उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के आफिस में टँगे लोहिया जी और गांधी जी से पूरी सहानुभूति है मुझे।
समाजवाद नकल के रास्ते भी तो आ सकता है।
जय हो कहिये. वो शेर है न..

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ है
क्या मेरे हक में फैसला देगा।

Friday, 12 February 2016

काम-रेड कथा....

अभी पुष्पा को कालेज आये चार ही दिन हुए थे कि उसकी मुलाक़ात एक  क्रांतिकारी से हो गयी. लम्बी कद का एक सांवला सा लौंडा...ब्रांडेड जीन्स पर फटा हुआ कुरता पहने क्रान्ति की बोझ में इतना दबा था कि उसे दूर से  देखने पर ही यकीन हो जाता था कि इसे नहाये मात्र सात दिन  हुये  हैं..... .बराबर उसके शरीर से क्रांति की गन्ध आती रहती थी... लाल गमछे के साथ झोला लटकाये सिगरेट फूंक कर क्रान्ति कर ही रहा था तब तक....
पुष्पा ने कहा..."नमस्ते भैया.. .. "हुंह ये संघी हिप्पोक्रेसी."..काहें का भइया और काहें का  नमस्ते?..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं...प्रगतिशीलता की लड़ाई...ये घीसे पीटे संस्कार...ये मानसिक गुलामी के सिवाय कुछ नहीं.....आज से सिर्फ लाल सलाम साथी कहना।
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा.."आप क्या करते हैं ..क्रांतिकारी ने कहा.."हम क्रांति करते हैं....जल,जंगल,जमीन की लड़ाई लड़ते हैं..शोषितों वंचितों की आवाज उठातें हैं..
क्या तुम मेरे साथ क्रान्ति करोगी?
पुष्पा ने सर झुकाया और धीरे से  कहा...."नहीं मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ...कितने अरमानों से मेरे किसान पिता ने मुझे यहाँ भेजा है..पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊं  तो समाज सेवा मेरा भी सपना है.....".
क्रांतिकारी ने सिगरेट जलाई और बेतरतीब दाढ़ी को खुजाते हुए कहा....यही बात मार्क्स सोचे होते...लेनिन और मावो सोचे होते....कामरेड चे ग्वेरा....?बोलो?
तुमने पाश की वो कविता पढ़ी है...
"सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना"
तुम ज़िंदा हो पुष्पा.मुर्दा मत बनों....क्रांति को तुम्हारी जरूरत है....लो ये सिगरेट पियो...."
पुष्पा ने कहा..."सिगरेट से क्रांति कैसे होगी..?
क्रांतिकारी ने कहा.."याद करो मावो और चे को वो सिगरेट पीते थे...और जब लड़का पी सकता है तो लड़की क्यों नहीं....हम इसी की तो लड़ाई लड़ रहे हैं..." यही तो साम्यवाद है ।
और सुनों कल हमारे प्रखर नेता कामरेड फलाना आ रहे हैं....हम उनका भाषण सुनेंगे..और अपने आदिवासी साथियों के विद्रोह को मजबूत करेंगे...लाल सलाम.चे.मावो..लेनिन.."
पुष्पा ने कहा..."लेकिन ये तो सरासर अन्याय है...कामरेड फलाना के लड़के तो अमेरिका में पढ़ते हैं...वो एसी कमरे में बिसलेरी पीते हुए जल जंगल जमीन पर लेक्चर देते हैं...और वो चाहतें हैं की कुछ लोग अपना सब कुछ छोड़कर नक्सली बन जाएँ और  बन्दूक के बल पर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लें...ये क्या पागलपन है..उनके अपने लड़के क्यों नहीं लड़ते ये लड़ाई. हमें क्यों लड़ा रहे.? क्या यही क्रांति है"?
क्रांतिकारी को गुस्सा आया...उसने कहा.."तुम पागल हो..जाहिल लड़की..तुम्हें ये सब बिलकुल समझ नहीं आएगा...तुमने न अभी  दास कैपिटल पढ़ा है न कम्युनिस्ट मैनूफेस्टो...न तुम अभी साम्यवाद को ठीक से जानती हो न पूंजीवाद को..."
पुष्पा ने प्रतिवाद करते हुए कहा...."लेकिन इतना जरूर जानती हूँ कामरेड कि मार्क्सवाद शुद्ध विचार नही है..इसमें मैन्यूफैक्चरिंग फॉल्ट है।
यह हीगल के द्वन्दवाद,इंग्लैण्ड के पूँजीवाद.और फ्रांस के समाजवाद का मिला जुला रायता है.....जो  न ही भारतीय हित में है न भारतीय जन मानस से   मैच करता है।.
क्रांतिकारी ने तीसरी सिगरेट जलाई...और हंसते हुए कहा..."ये बुजुर्वा हिप्पोक्रेसी..तुम कुछ नहीं जानती... छोड़ो...तुम्हें अभी और पढ़ने की जरूरत है...कल  आवो हम फैज़ का वो गीत गाएंगे....
"आई विल फाइट कामरेड"
"हम लड़ेंगे साथी..उदास मौसम के खिलाफ"
अगले दिन उदास मौसम के खिलाफ  खूब लड़ाई हुई...पोस्टर बैनर नारे लगे...साथ जनगीत डफली बजाकर गाया गया और क्रांति साइलेंट मोड में चली गयी.. तब तक दारु की बोतलें खुल चूकीं थीं.....
क्रांतिकारी ने कहा..."पुष्पा ये तुम्हारा नाम बड़ा कम्युनल लगता है..पुष्पा पांडे....नाम से मनुवाद की बू आती है...कुछ प्रोग्रेसिव नाम होना चाहिए..... आई थिंक..कामरेड पूसी सटीक रहेगा।
पुष्पा अपना कामरेडी नामकरण संस्कार सुनकर हंस ही रही थी तब तक क्रान्तिकारी ने दारु की गिलास को आगे कर दिया....
पुष्पा ने दूर हटते हुए कहा...."नहीं...ये नहीं..हो सकता।"
क्रान्तिकारी ने कहा..."तुम पागल हो..क्रान्ति का रास्ता दारु से होकर जाता है..याद करो मावो लेनिन और चे को...सबने लेने के बाद ही क्रांति किया है.."
पुष्पा ने कहा..लेकिन दारु तो ये अमेरिकन लग रही...हम अभी कुछ देर पहले अमेरिका को जी भरके गरिया रहे थे......
क्रांतिकारी ने गिलास मुंह के पास सटाकर  काजू का नमकीन उठाया और  कहा..."अरे वो सब छोड़ो पागल..समय नहीं ..क्रान्ति करो. दुनिया को तेरी जरूरत है....याद करो चे को मावो को.....हाय मार्क्स।
पुष्पा का सारा विरोध मार्क्स लेनिन और साम्यवाद के मोटे मोटे सूत्रों के बोझ तले दब गया.....वो कुछ ही समय बाद नशे में थी....
क्रांतिकारी ने क्रान्ति के अगले सोपान पर जाकर कहा..."कामरेड पुसी ..अपनी ब्रा खोल दो.."
पुष्पा ने कहा.."इससे क्या होगा?...
क्रांतिकारी ने उसका हाथ दबाते हुए कहा.. "अरे तुम महसूस करो की तुम आजाद हो..ये गुलामी का प्रतीक है..ये पितृसत्ता के खिलाफ तुम्हारे विरोध का तरीका है..तुम नहीं जानती सैकड़ों सालों से पुरुषों ने स्त्रियों का शोषण किया है.....हम जल्द ही एक प्रोटेस्ट करने वाले हैं...."फिलिंग फ्रिडम थ्रो ब्रा" जिसमें लड़कियां कैम्पस में बिना ब्रा पहने घूमेंगी।
पुष्पा अकबका गई...ये सब क्या बकवास है कामरेड..ब्रा न पहनने से आजादी का क्या रिश्ता?
क्रांतिकारी ने कहा....यही तो स्त्री  सशक्तिकरण है कामरेड पुसी...देह की आजादी...जब पुरुष कई स्त्रियों को भोग सकता है...तो स्त्री क्यों नहीं....क्या तुम उन सभी शोषित स्त्रियों का बदल लेना चाहोगी?
पुष्पा ने पूछा....हाँ लेकिन कैसे?...
क्रान्तिकारी ने कहा..."देखो जैसे पुरुष किसी स्त्री को भोगकर छोड़ देता है...वैसे तुम भी किसी पुरुष को भोगकर छोड़ दो...."
पुष्पा को नशा चढ़ गया था...कैसे बदला लूँ..कामरेड...?
क्रांतिकारी की बांछें खिल गयीं..उसने झट से कहा..."अरे   मैं हूँ न..पुरुष का प्रतीक मुझे मान लो..मुझे भोगो कामरेड और हजारों सालों से शोषण का शिकार हो रही स्त्री का बदला लो।"
कहतें हैं फिर रात भर लाल सलाम और क्रान्ति के साथ बिस्तर पर स्त्री सशक्तिकरण का दौर चला..और  कामरेड ने दास कैपिटल को किनारे रखकर  कामसूत्र का गहन अध्ययन किया।
अध्ययन के बाद सुबह पुष्पा उठी तो...आँखों में आंशू थे..क्या करने आई थी ये क्या करने लगी...गरीब माँ बाप का चेहरा याद आया...हाय.....कुछ् दिन से कितनी चिड़चिड़ी होती जा रही...चेहरा इतना मुरझाया सा...अस्तित्व की हर चीज से नफरत होती जा रही.नकारात्मक बातें ही हर पल दिमाग में आती है....हर पल एक द्वन्द सा बना रहता है...."अरे क्या पुरुषों की तरह काम करने से स्त्री सशक्तिकरण होगा की स्त्री को हर जगह  शिक्षा और रोजगार के उचित अवसर देकर.....पुष्पा का  द्वन्द जारी था...
उसने देखा क्रांतिकारी दूर खड़ा होकर गाँजा  फूंक रहा है....
पुष्पा ने कहा."सुनों मुझे मन्दिर जाने का मन कर रहा है.....अजीब सी बेचैनी हो रही है...लग रहा पागल हो जाउंगी....."
क्रांतिकारी ने गाँजा फूंकते हुए कहा.."पागल हो गयी हो..क्या तुम नहीं जानती की धर्म अफीम है"?
जल्दी से तैयार हो जा..हमारे कामरेड साथी आज हमारा इन्तजार कर रहे...हम आज संघियों के सामने ही "किस आफ लव करेंगे"...
शाम को याकूब,इशरत और अफजल के समर्थन में एक कैंडील मार्च निकालेंगे...
पुष्पा ने कहा..."इससे क्या होगा ये सब तो आतंकी हैं. देशद्रोही....सैकड़ों बेगुनाहों को हत्या की है...कितनों का सिंदूर उजाड़ा है...कितनों का अनाथ किया है.....
क्रांतिकारी ने कहा..."तुम पागल हो लड़की....
पुष्पा जोर से रोइ...."नहिं मुझे नहीं जाना... मुझे आज शाम दुर्गा जी के मन्दिर जाना है...मुझे नहीं करनी  क्रांति...मैं पढ़ने आई हूँ यहाँ...मेरे माँ बाप क्या क्या सपने देखें हैं मेरे लिए.....नहीं ये सब हमसे न होगा...."
क्रांतिकारी ने पुष्पा के चेहरे को हाथ में लेकर कहा....."तुमको हमसे प्रेम नहीं.?...गर है तो ये सब बकवास सोचना छोड़ो....." याद करो मार्क्स और चे के चेहरे को...सोचो जरा क्या वो परेशानियों के आगे घुटने टेक दिए...नहीं...उन्होंने क्रान्ति किया। आई विल फाइट कामरेड....
पुष्पा रोइ...लेकिन हम किससे फाइट कर रहे हैं..?
क्रांतिकारी ने आवाज तेज की और कहा ये सोचने का समय नहीं.....हम आज शाम को ही महिषासुर की पूजा करेंगे...और रात को बीफ पार्टी करके मनुवाद की ऐसी की तैसी कर देंगे.. फिर  बाद दारु के साथ चरस गाँजा की भी व्यवस्था है।
पुष्पा को गुस्सा आया..चेहरा तमतमाकर बोली...."अरे जब दुर्गा जी को मिथकीय कपोल कल्पना मानते हो तो महिषासुर की पूजा क्यों....?
क्रान्तिकारी ने कहा.अब ये समझाने का बिलकुल वक्त नहीं...तुम चलो...मुझसे थोड़ा भी प्रेम है तो चलों..हाय चे हाय मावो...हाय क्रांति...".
इस तरह से क्रांति की विधिवत शुरुवात हुई.... धीरे धीरे कुछ दिन लगातार दिन में क्रांति और रात में बिस्तर पर क्रांति  होती रही...पुष्पा अब सर्टिफाइड क्रांतिकारी हो गयी थी......पढ़ाई लिखाई  छोड़कर सब कुछ करने लगी थी...कमरे की दीवाल पर दुर्गा जी हनुमान जी की जगह चे और मावो थे....अगरबत्ती की जगह..सिगरेट..और गर्भ निरोधक के साथ सर दर्द और नींद की गोलियां....अब पुष्पा के सर पे क्रांति का नशा हमेशा सवार रहता...
कुछ दिन बीते.एक साँझ  की बात है  पुष्पा ने अपने क्रांतिकारी से  कहा..."सुनो क्रांतिकारी..तुम अपने बच्चे के पापा बनने वाले हो...आवो   हम अब शादी कर लें?
कहते हैं  तब क्रांतिकारी की हवा निकल गयी...
मैंनफोर्स  और मूड्स के बिज्ञापनों से विश्वास उठ गया..उसने जोर से कहा.."नहीं पुष्पा...कैसे शादी होगी..मेरे घर वाले इसे स्वीकार नहीं करेंगे....हमारी जाति और रहन सहन सब अलग है......यार सेक्स अलग बात है और शादी वादी वही बुजुर्वा हिप्पोक्रेसी....मुझे ये सब पसन्द नहीं..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं। ?"
पुष्पा तेज तेज रोने लगी.... वो नफरत और प्रतिशोध से भर गयी...लेकिन अब वो वहां खड़ी थी जहाँ से पीछे लौटना आसान न था।
   कहतें हैं क्रांति के पैदा होने से पहले  क्रांतिकारी पुष्पा को छोड़कर भाग खड़ा हुआ और क्रान्ति गर्भपात का शिकार हो गयी।
लेकिन इधर पता चला है की क्रांतिकारी अपनी जाति में विवाह करके एक ऊँचे विश्वविद्यालय में पढ़ा रहा।
और कामरेड पुष्पा अवसाद के हिमालय पर खड़े होकर  सार्वजनिक गर्भपात के दर्द से उबरने के बाद जोर से नारा लगा रही..
"भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी
काश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी।" -                                                                                                                                                                                                                                                                 ये भी पढ़ें -समाजवादी सुहाग रात योजना                                                                                                                  आपके अच्छे दिन कभी नहीं आएँगे                                                                                                            ए मंटू पिंकिया आज पास हो गयी रे                                                                                                            कामरेड की मन्दिर यात्रा
                      Varanasi Travel Guide – एक दिन में पूरा बनारस कैसे घूमें ?

Saturday, 28 November 2015

बैंड बाजा बारात.....(लगन के बहाने..)

शादी ब्याह का आलम है...रोज किसी के हाथ पीले और किसी के नेत्र गीले हो रहें हैं..किसी का दिल टूटकर सीरिया हो  रहा तो किसी का जुड़कर बिहार हो रहा।
दिल्ली से भइया आ गए..जयपुर से मौसी कब आएँगी इसकी चिंता है अब....पिंकीया भी घोर कन्फ्यूजन में है कि दीदी की शादी में लाल वाला लहंगा पहने या फ्राक सूट ही पहन ले. उ  का है कि जीजू की आरती जो उतारनी है..सुना है जीजू बैंक में नोकरी करतें हैं...मने खुश होकर चेक काट दिए तो आनंद मंगल हो जाएगा न..आ उनके नॉटी नॉटी भाई भी तो रहेंगे....सुना है सब बीटेक्स करतें हैं.. तो सबसे हॉट जो दिखना है...
मने सब तैयारी चल रही है...."गाई के गोबरे महादेव..." जैसे लोक गीत गाये जा रहे  कहीं आज शगुन उठ रहा....घर ,दुआर से उत्साह की मीठी मीठी गंध आ रही.... कुछ लौंडे नागिन डांस का रिहर्शल कर रहे तो कुछ भौजी की मझिली सिस्टर को फेसबुक पर खोज रहें हैं।
लेकिन साहेब उ सब तो ठीक है..बस इधर जिन लौंडो की शादी में  दो चार दस दिन बाकी है उनका हाल ए दिल बहुते खराब  है....."दिनवा न चैन...नाही नीद आवे रैना" वाला कंडीशन हो गवा है..... एक एक घण्टे,एक एक पल,एक एक प्रकाश वर्ष जैसे हो गये हैं... दिन भर कान में मोबाइल सटाकर सताइस किसिम का मुंह बनाते हुए  हाल चाल लिया दिया जा रहा है.. खाने से लेकर सुसु तक के ब्यौरे का आदान प्रदान हो रहा......मने "सोना मोना स्वीटी डार्लिंग  आपने कल सात बार सूसू किया आज आठ बार क्यों...आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही".....
हाय! इस प्रेम पर मुझे मर जाने का मन करता है.....सोना मोना जैसे शब्द ने भी इस प्रेम को देखकर  कुछ दिन दहशत में जीने का फैसला कर लिया है।
हाँ तो इस पर भी चर्चा चल रही है कि.... "सुहाग रात में शरमायेंगी आप.."?  वो भी उधर से हंसकर कह देतीं हैं...."क्यों नहीं..शर्म नहीं आएगी....भक्क..आप भी न"
इधर हमारे परम सखा उपधिया जी का भी हाल खराब  है..अभी फोन करके पूछ रहे कि "अतुल भाई..जरा एक सुहाग रात में बजाने लायक गाना तो बता दिजिये....क्या है कि आपकी भाभी को संगीत से गहरा लगाव है...तो सोच रहे कि हम क्यों न आपके संगीत ज्ञान का लाभ लिया जाय...
मैंने उपधिया जी कि समस्या का समाधान  कर दिया है...... ये बताकर कि "मित्र...मेरे बैंड बजने में तो अभी बहुते समय है..पर आपको इस विषम हालात में  फ़िल्म 'चम्बल की कसम' में ख्ययाम की कम्पोजिंग  और साहिर के गीत को लता और रफ़ी जी के आवाज में मन्द मन्द आवाज में बजाना चाइये.....
हकीम एम् जान कि कसम.गीत कि इन लाइनों
को सुनने के बाद एक अलग ही प्रेम शक्ति का संचार  होगा..इसकी सौ फीसदी गारंटी है..
"अब सुबह ना हो पाये आवो ये दुआ मांगे.
इस रात के हर पल से रातें ही निकल आएं..
सिमटी हुई ये घड़ियां......"
उपधिया जी  इतना सुनने के बाद मुझे एक क्विंटल धन्यवाद दियें हैं....मानों कोई बड़ा रहस्य हाथ लग गया हो।
खैर..जेवन है तवन हइये है.....मुझे बार बार हंसी आती है.....सोचता हूँ...शादी से पहले ये 24×7 बात करने वाले...क्या शादी के बाद भी ऐसे ही पत्नी के लिए प्रेम बचा पायेंगे.....? व्यापक शोध का विषय है..मुझ जैसे कुंवारों को इ सब सोचना भी नहीं चाहिए ।
लेकिन ब्याह बाद मुझे तो कहीं परेम  नज़र नहीं आया....देखा है बियाह के एक साल बाद ऐसे ही उपधिया जी टाइप लोग कहतें हैं....."फोन रखो...दिन भर बक् बक् करती रहती हो..."
कई बार उन बुजुर्गों को नमन करने का मन करता है..वो कि तने महान,धैर्यवान और तपस्वी थे...जिनके माँ बाप ने शादी तय कर दी....जिनके जमाने में फेसबुक,whats app नहीं था...जिन्होंने शादी के बाद ही डाइरेक्ट सुहाग रात में घूंघट उठाकर अपनी शरीक- ए-हयात के जमाल-ए-रोशन का दीदार किया..लेकिन  दाम्पत्य में  आज तक उसी आत्मीयता को बचाये हुयें हैं..


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