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Saturday, 19 March 2016

आई लव यू पिंकी..


बसन्त की जवानी  उफान पर है......गाँव जवार होलियाया है....छोट,बड़,धनी,गरीब..सब तैयारी में हैं...काल्ह खेदन नवेडा से फोन किये अपनी मेहरारु को..
"आहो  सन्टुआ के माई..देखो ना, शिवगंगा, सेनानी आ सद्भावना में कहीं टिकसे नहीं मिल रहा है... कइसे आएं  हम हो?"
संटूआ  के माई खिसिया के  कही है.. "पैदल चल आइये ..भा टेम्पो आ रेक्सा से...बाकी फगुआ में रहना एकदम जरूरी है  ......नाहीं तो  पुआ के जगह खिचड़ी बना देंगे..सब होली मुहर्रम हो जायेगा...अरे आगि ना लाग जाये  अइसन नोकरी के.. बरिष बरिष के दिन भी टाइम आ टीकस नहीं मिल रहा।.
भौजी का खिसियाना  जायज है....कल से घर साफ़ कर रहीं..आँगन बुहार रही हैं....चुनमूनवा और खुश्बुआ को नया कपड़ा खरीदी हैं..तनिक छोटा हो गया है..
अब जावो न  सहतवार बदलने के लिये..अभी गेंहू धोना है..सुखाना है...सूजी मैदा तो गाँव से ही खरीद लेंगी..केतना काम है होली तक..हे काली माई शक्ति दे देना भौजी को तनी।
इधर गाँव घर के बाहर मौसम का मिजाज बदलायमान  होकर ऐसा  असर किया है कि आदमी से लेके पशु पक्षी और  खेत से लेके खरिहान पर नशा चढ़ गया है..
खेत में  सरसों के पत्ते  से   लेके मटर   तक एक   दूसरे  से  बतीया रहें हैं.. ..कहीं आम के फूल..महुआ के मोजर से कह रहे हैं..."तुम को देखते ही रोम रोम हिलने लगता है..."
जामुन के फूल आसमान की  ओर ताक के हंसते हैं तो ऐसा लगता है,मानों कह रहें हों.
"ए भाई फेसबुक टीवी बन्दकर देखो न एक बार हम कितने सुंदर हैं". 
बगल में मटर के पौधे हिलते  हैं..मानों आज उनकी आपातकालीन बैठक हो रही हो..
"अबे होली तक सब शांति से रहने का है..नहीं तो  चुपके से सब  घुघनी बनाके  चाय के संगे  खा जायेगा" ..हाय रे दुःख।
इधर गेंहू के बाल में जान आ गया है......जब फगुनहट बहता त नवकी भौजी का पल्लू सम्भरले नही सम्भराता  है.....छोटका देवरवा माजा लेने के लिये  छेड़ता है..."ए   भौजी हमू  डालेंगे  न होली में "?
भउजी पल्लू सम्भाल के  तड़ाक से कहतीं हैं...."भाक्क्..एकदम मउगे हो गयें हैं का.."?
इधर पिंकिया  आ मंटुआ का एग्जाम खतम हो गया..मने बड़का टेंसन खतम हुआ..
अंतिम दिन खूब नकल हुआ  मंटुआ का तो गोड़ जमीने पर नहीं था..अब 80% से कौन रोक लेगा जी.
आ पिंकिया आतना खुश थी की का कहल जाय..पानी पीने के बहाने हैण्डपाइप पर आई आ मंटू राजा को देखकर धीरे से कही..
-ए मंटू
का?
-एकदम हीरो जइसन लग रहे हो..
बक्क..
सही कह रहे आँखि किरिया
-तुम भी तो एकदम अलिया भट्ट जइसा लग रही हो..उससे भी सुंदर।
चुप रहो..सब देख रहे..
पता है मंटू आज न जाने कातना दिन बाद तुमको एतना करीब से देख रहे हैं..मने का कहें।
आ सुनों जी..कइसा लेटर लिखते हो जी कि मेरे पढ़ने से पहले ही  सबका मोबाइल में पहुंच जाता है...एकदम लाज हया नहीं न."?
-अरे पगली सब महंगा वाला मोबाइल में उ सिस्टम है..पइसा वाला लोग रखता है..तुमको नहीं बुझाएगा।
-अच्छा जाने दो....ए मंटू..होली में रंग लगाने आवोगे न..?
-हाँ हाँ...बस तुम्हारे बाउजी से डर है..देख लिये तो सब होली रक्षाबंधन हो जाएगा।
ए मंटू पिछले साल  वाला याद  तुमको होली के दिन..
-भक्क..याद मत दिलावो बहुते लाज लगता है।
ओहो हो..मेरी मंटू कुमारी  देखो तो जरा केतना शरमा रही है..
आई लव यू मंटू
लव यू टू पिंकी।

Friday, 4 March 2016

फगुआ बसन्त....

गाँव आने पर...
बसन्त की जवानी है...गाँव होलियाया है....सब तैयारी में हैं.....आदमी से लेकर बाग़ बगीचा खेत तक....सरसों के पत्ते एक दूजे से बतीयतें हैं.फूल आसमान की ओर ताककर हंसते हैं....मानों कह रहें हों....देखो देखो हम कित्ते सुंदर हैं....मटर मन्त्रणा करतें हैं..की कल कोई कमबख्त आएगा और घुघनी बनाकर चाय के साथ खायेगा...
खेत के गेंहू डरे सहमे से ..कमबख्त बारिष ने उनको रुलाया है....खड़े होने की कोसिस कर रहें हैं....फगुनहट बहता है तो नवकी भौजी का पल्लू सम्भाले नहीं सम्भलता..देवर छेड़ता है....भाभी हो हम डालम न?
भउजी पल्लू समभालती है और कहती है....भाक्क्.... कितना मीठा है न ये सम्वाद? ...कलुहाड़ा के ताजे गुड़ जैसा।
माताजी  ने आते ही मुझे काली माई का भभूत लगाया है..हाय उनके बबुआ को किस डायन की नज़र लग गयी है..
पता न कौन डायन है... जो हमेशा मुझपर नज़र गड़ाये रहती है...
ई मम्मी टाइप लोग भी न...हद इमोशनल अत्याचार कर देतें हैं।
बहन दौड़कर आई है की उसे फिजिक्स में क्लास में  सबसे अधिक नम्बर मिलें हैं... तो उसे कम से कम मेरी ओर से भारत रत्न की व्यवस्था की जानी चाहिए...माँग जायज है।
छोटी वाली बहन ने अब कह दिया है की अब वो गोल गोल रोटी बना सकती है...अबकी मैं उसे चिढ़ाया...तो आईपीसी की कोई गम्भीर धारा वो लगा सकती है.... डरिये अतुल बाबू।
बड़े पिताजी ने बताया है की बारिष ने फसल का नुकशान ही किया है...
मुझे ताना दिया गया है की बनारस से आना अउर आलू के खेत में चार दिन सोना ..कसम से इ हमसे नय होगा...
उधर सरजू बाबा ने गजाधर बाबा के खेत में मटर की छीमी उखाड़ लिया है....ल्यो अब गाली गलौंज के साथ ममीला गरम है....होली में नागपञ्चमी का अखाड़ा न खुद जाये..डीह बाबा से मन्नत है ।
पर चिंता जन करिये...कल दोनों एक साथ खैनी खाते दिख जाएंगे।....इ गाँव है ..यहाँ झगड़ा नहीं सिर्फ रगरा होता है।
उधर डब्लू अपने चाइना के फोन पर..जोर से."जीजा धीरे धीरे डालीं लहंगा लाल हो जाई,".. बजाता है..उसे पता नही  की "ए गोरिया पतरी जइसे लचके लवंगिया के डाँढ़ में ज्यादा आनंद है...
पर वो कहता है की मैं अपना ज्ञान अपने पास रखूँ...ठीक ही कहता है...
गाँव जाना चाहिए तो ज्ञान को अपने आलमारी में बंद करके आना चाहिए..शहर में उसकी ज्यादा जरूरत है....हाँ नई तो।
गनेस ने बलिया से कहा है की..."ए अतुल पापा हई कैंटीन से निकालें हैं...एक बार टेस्ट तो कर लो..होलिये में शुभ मुहूर्त है....सब संघी संघाती लेने लगें हैं...और तुम कमीने सधुआये जा रहे हो...फिर उसने मुर्गे की टांग के साथ सोमरस पान के विविध लाभ पर मुरारी बापू टाइप परवचन दिया है......"
मैंने जयपुर के हसरत चचा को याद कर एक शेर कहा है.....
"मैं किसी जाम का मुहताज नहिं हूँ हसरत
मेरा साकी मुझे आँखों से पिला देता है।"

©atul
4-3-15@ballia

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