Tuesday 12 April 2016

सुनों..प्रेम की भाषा..

सुनों.......
इस भोर की मादक हवा मुझे गाकर  जगाती है..जैसे धीरे धीरे गाती हो तुम....
जरूर कहीं दूर पहाड़ों पर बजता होगा सन्तूर....सुनकर उड़ने लगता हूँ  मैं।
अचानक..एक जोर का  झोंका आता है...मानों तुमने बालों को खोल दिया हो अभी अभी....
हवा इतनी ताजा कभी नहीं लगी....
कल पहली बार आम की डाली में मोजर देखकर लगा... जैसे तुमने अपने जूड़े में सजा रखें हों रजनीगन्धा....
साँझ को  लीची के पेड़ पर  पत्ते सरसरा रहे थे...एक बार लगा हम तुम बतिया रहें हों अपने आने वाले कल के बारे में।
पलाश के फूलों को कुतर रहा था एक सुग्गा मानों तुमने अभी अभी पूछा हो मुझसे..ए मैं कैसी लग रही हूँ?

तुम्हारी बच्चों जैसी हंसी तब याद आयी.. जब कल ही कोंपल से निकले पीपल के पत्ते को कुतर रही थी छोटी गिलहरी..
जामुन के पेड़ों ने वादा किया है, वो मुझे बरसात में  बताएंगे ..तुम्हारी आँखे इतनी खूबसूरत क्यों है?  तुम्हें भी तो नहीं पता.....छोडो..

इधर गेंहू पक रहें हैं..मेरे प्रेम की तरह..मटर को छूते ही झुक जातीं हैं डालियाँ...
जैसे तुम शरमा गयी थी उस दिन मेरे पहले..स्नेहिल स्पर्श से...
सरसों के पीले फूल इन्तजार करतें हैं किसी का...मानों तुम सजकर दरवाजे पर खड़ी हो मेरे इंतजार में..
कल शाम महुवा पर कोयल बोल रही थी...सुनकर लगा ओह! मैं तुमसे कितना दूर हूँ....
सुनों...प्रकृति की इस कलाकारी  में तुम्हारी ऊर्जा महसूस करता हूँ.....
इस नवीनता में अजब स्पंदन है...
प्रेम  मनुष्य की प्रकृति है और प्रेम ही प्रकृति की सबसे मौलिक कृति है।
कल निर्विचार होकर जाना मैंने कि  प्रकृति भी सजाती है खुद को..किसी  के लिए..जैसे सजती हो तुम मेरे लिए..
ये पढ़कर चुप हो जाना कुछ देर..जैसे चुप हो जाता बच्चा अपनी माँ की गोद में आने के बाद..
प्रेम की भाषा मौन है पगली..
                     
                     तुम्हारा..
                      अतुल..

#दीवाने_की_डायरी

No comments:

Post a Comment

Disqus Shortname

Comments system