Tuesday 27 October 2015

बबुनी बीड़ी पियत जात रहली डोली में.....

बबुनी बीड़ी पियत जात रहली डोली में
आग लगवली चोली में ना................

हमारे भोजपुरिया क्षेत्र में नाच का कभी जबरदस्त क्रेज था...तब आर्केस्ट्रा की फ़ूहड़ता का प्रभाव ठीक से नहीं हुआ था..मैं भी पैदा नहीं हुआ था.. लेकिन मनोज तिवारी पटरी भाठा लेकर स्कूल जाते थे.निरहू और खेसारी झाड़ा फिरने के बाद पानी के लिए गड़ही का रुख करते थे ..
मल्लब कि मनोरंजन के नाम पर वही दूरदर्शन और आकाशवाणी..टीवी रेडियो भी इने गिने लोगों के पास.....अतवार के दिन किसी रामसेवक तिवारी के छत पर लगा, पचीस फुटिया एंटीना को कोई तीन फुट का सिंकूआ जोर से हिलाता तब जाकर रंगोली में चार गाने सुनने को मिलते..
कई बार चैनल सेट करते करते लेट हो जाता । कार्यक्रम ही समाप्त....आज रामायण में हनुमान जी ने लंका में जाकर का किया होगा इसकी चिंता में लोग खाना पीना छोड़ देतें।..
"मने जा रे जमाना..का कहें....."
वो दुर्दिन हालात थे...गाँव जवार के रँगबाज और नचदेखवा लौंडे बेचारे तरस जाते....
लगन के दिन में इक आस कि डिबरी टिमटिमाती.... खेदन राय की लड़की के बियाह में पक्का बंड़सरी का नाच आएगा।
पनरह दिन पहले गाँव जवार में शोर...मजनू छाप लौंडे दाढ़ी बाल रंग पोतकर ठीक...सौ पचास का खुल्ला करवाकर ऐसे तैयार होते...मानो इमरान हाशमी के सगे साढ़ू भाई साहब तैयार होकर कहीं निकल रहें हैं।
तो साहेब...दस बारह चौकी लगाकर नाच किसी परम नचदेखवा राई साहेब के खेत में शुरू हो जाती...स्टेज के पीछे एक परदानुमा घर बना दिया जाता,जहाँ कलाकार अपना वस्त्र बदल सके...उस दरवाजे पर डंडा लेकर गाँव के सबसे चरित्रवान लौंडे की ड्यूटी लगाई जाती...उसकी मुस्तैदी अगर बीएसऍफ़ वाले देख लें तो शरमाकर पानी पानी हो जाएँ..नाच शुरू...पहले आधा घण्टा बैंजो वाला लहरा बजाता....सुनकर गाँव के पुरुब टोला का मन्टूआ  दौड़ता......"चल रे शुरू हो गइल"
दाहिने  ओर बाप, बांये बेटा और पीछे बाबा एक्के संगे तीन पीढ़ी एक दूसरे  से छिपकर नाच देखती थी ..जमाना था वो।।
."आरा हिले बलिया हिले छपरा हिलेला की तहरी लचके जब."..इस गाने पर ऐसा चौकी तोड़ डांस होता कि तीनों पीढ़ी एक साथ चिल्लाती...."अरे जिया करेजा हिला दिहलू....हई पाँच बीघा लिख दी का तहरा नावे हो.?."
फिर एक से  बढ़कर एक  ड्रामा होता..  कहते हैं गाँव के वो अनपढ़ कलाकार जब राजा हरिश्चंद्र नाटक  खेलते तो रोने वाले के आँसू  सूख जाते थे।।एनएसडी वाले भी एक बार उनका अभिनय देखकर सोचेंगे।
उस नाच में एक जोकर आता..निम्न वर्ग से ताल्लुक रखने वाले उस अनपढ़ जोकर के ह्यूमर के आगे कॉमेडी नाइट वाले कपिल शर्मा भी पानी भरने लगेंगे।।
उसी जोकर का इ गाना आज बरबस याद आ गया है....
"बबुनी बीड़ी पियत जात रहली डोली में
आग लगवली चोली में ना...
आप उस जोकर के मुंह से सुनकर खूब हंसेंगे लेकिन बीस मिनट बाद वो कहेगा...रुका... का बुझाइल?
इहाँ बबुनी मने चिंकी पिंकी नही हुआ.बबुनी मने आदमी जवन मर गया..डोली मने बेवान पर सजकर जा रहा है...जिसको फूल माला धूप अगरबत्ती से सजाया गया है.... आग लगवली चोली...मने इस नश्वर शरीर में किसी ने मुखाग्नि दे दिया है......अरे....आपके मुंह से 'अद्भुत' निकलेगा।
मैं सोचकर परेशान सा हो जाता हूँ..आज मनोरंजन कहाँ से कहाँ आ गया है..क्रान्ति बहुत कुछ देती है तो बहुत कुछ छीन भी लेती है।.पहले मनोरंजन के विशेष चैनल थे..आजकल तो न्यूज चैनल भी इतना स्वस्थ मनोरंजन करतें हैं कि आप मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाएंगे।
दिल्ली में बैठा कोई असली आम आदमी या लखनऊ वाला कोई समाजवाद का असली वारिस भी आपको हंसा हंसाकर लोट पोट कर सकता है...बिहार वाले  प्योर सेक्युलर का भाषण सुनकर भी आप जी भरके हंस सकतें हैं.....मने अब चारो ओर जोकर हैं...
मनोरंजन अब अश्लील हो गया है.....श्लील की चिंता में दिन रात दुःखी.... वो वातानुकूलित कमरे में वैचारिक जोकरई करने वाले बौद्धिक जोकरों ने भी मनोरंजन को इतना सस्ता बना दिया हैं कि... अब रोमांच समाप्त हो गया है... उनको पढ़कर सुनकर चेहरे पर सिर्फ झूठी और बनावटी हंसी आती है।
इस  किस्म के  विषैले मनोरंजन ने हमारे चित्त का रंजन नहीं   भँजन किया है।।।
असली और नकली जोकर कौन है पता लगाना अब मुश्किल है......
जानकारी ही बचाव है मितरों..जानना जरूरी है कि आपकी हंसी कहीं झूठी तो नहीं?.....
शुभ दिन।।

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