एक जमाना था कभी....
शाम को तीन बजते ही दरवाजे पर डाक का इंतजार...छत पर कौवा कांव से बोला नहीं की लोग ये मान लेते थे कोई आ रहा है.....खाना खाते वक्त यदी हिचकी भी आ गयी तो लोगों को विश्वास हो जाता था कि कोई याद कर रहा है.......
गाँव जवार में चिट्ठी पत्री लिखने पढ़ने वाले कुछ ही लोग थे......
अपनी सब बात लिखने के बाद लोग ये एक लाइन का पतंजलि सूत्र जरुर लिखते थे.....
"थोड़ा पढ़ना ज्यादा समझना"
और ठेठ देहाती में.........
" लिखत बानी चिट्ठी बाकी तार बुझिहा
"भइया के कुशलता के कामना करते हुए डीह बाबा से मनावत बानी की तुहूँ कुशल से होखबा....भंइसिया बियफे के पाड़ा बिआइल बिया......किसुन चचा के फेनुसा दियात रहे त लेबे ना कइलन.....
आ अगहन में कुछ पइसा भेज दिहा ह....भउजी के नया समाचार बा....परसों के रजवा लउकी तुरत घरी छत प से गिर गइल बा......बाकी सब ठीक ।खाए पिए प धेयान दिहा...कुछ के चिंता न कइनी शिव जी बानी नू।
जो गाँव के मजनू छाप आशिक जिनको लभलाइटिस हो गया था...वो आठ आना के लेटर पैड पर हाथ से नहीं साहेब....करेजा से लिखते थे.....
"हमार जान तहरा पियार में पागल होकेे बगइचा बगइचा घूमत बानीं...
तहरा सिवा कुछ लउकते नइखे...हमार करेजा तुही बाडू त दुनिया में अंजोर बा..ना त पूरा दुनिया में दिनहीं अन्हार हो जाइत......
सुक के सांझी खा ललन रा के टिबुल प आ जइहा... इंतजार करम....तहरा परेम में पागल....तहार फलाना।।
लास्ट में दिल और बड़ा सा तीर बना के आई लभ यू..सुनयना...
पर दुःख की बात कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी भाई को चिट्ठी अगहन बाद मिली और किसी सुनयना को सुक बीत जाने के बाद...
फिर अगहन और सुक का इंतजार करने वालों का दुःख बताने के लिए करेजा चाहिए.....लेकिन उनका प्रेम कम न हुआ।
आज तो हम थ्री जी और वाई फाई युग में हैं...एक क्लीक पर सारी दूरियाँ खतम....पर एक जगह है जहाँ दूरी इतनी ज्यादा बढ़ गयी है जिसकी भरपाई दुनिया की कोई टेक्नोलाजी नहीं कर सकती.....लोग अब ज्यादा अंतरमुखी हो गयें हैं.....
कल एक मित्र के साथ उनके दरवाजे के बाहर बैठा था....तो उन्होंने कहा खाना खा लेतें हैं अतुल...हमने कहा बड़ा जल्दी बना दिया भउजी ने भाई...उन्होंने कहा भाई अभी whats app पर मैसेज किया है आकर खा लो वरना जोधा अकबर का टाइम हो गया है।....हमने कपार पीट लिया।
कितना अच्छा होता न वो दरवाजे पर आकर एक बार बोल जातीं..."सुनतें हैं खाना खा लिंजिये" तो कसम से आधी भूख तो अइसे ही मिट जाती।
पर क्या कहें दोस उनका नहीं...
सारे रिश्ते आज टेक्नोलाजी के तार से बंधे हैं....नेह की डोर कहीं टूट सी गयी है।
पहले लोग मिलते ही हाल चाल पूछते थे....आज ज्यादा लोग यही पूछ्तें हैं आप फेसबुक और whtas app पर हैं ?.और मजे कि बात...आप लाख स्मार्ट हों पर कसम पाकिस्तान के पप्पू की आज आपके पास स्मार्ट फोन नहीं है तो आपको इस तरह लोग देखतें हैं....
मानो घर के कूड़े घर में पड़े वी सी आर को देख रहें हों.....
क्या कहें हमारे समय की बड़ी विडंबना है... इस पर जितना कहा जाय कम ही होगा।
आज समय के साथ कदम ताल मिलाना जरूरी है.. फेसबुक न होता तो हम ये बात अपने सात सौ मित्रों से कैसे कह पाते.....?
लेकिन लाख क्रान्ति हो जाय....चिट्ठी वाली फिलिंग को बचाकर न रख पाए...तो आदमी से पत्थर होते देर न लगेगी।
शाम को तीन बजते ही दरवाजे पर डाक का इंतजार...छत पर कौवा कांव से बोला नहीं की लोग ये मान लेते थे कोई आ रहा है.....खाना खाते वक्त यदी हिचकी भी आ गयी तो लोगों को विश्वास हो जाता था कि कोई याद कर रहा है.......
गाँव जवार में चिट्ठी पत्री लिखने पढ़ने वाले कुछ ही लोग थे......
अपनी सब बात लिखने के बाद लोग ये एक लाइन का पतंजलि सूत्र जरुर लिखते थे.....
"थोड़ा पढ़ना ज्यादा समझना"
और ठेठ देहाती में.........
" लिखत बानी चिट्ठी बाकी तार बुझिहा
"भइया के कुशलता के कामना करते हुए डीह बाबा से मनावत बानी की तुहूँ कुशल से होखबा....भंइसिया बियफे के पाड़ा बिआइल बिया......किसुन चचा के फेनुसा दियात रहे त लेबे ना कइलन.....
आ अगहन में कुछ पइसा भेज दिहा ह....भउजी के नया समाचार बा....परसों के रजवा लउकी तुरत घरी छत प से गिर गइल बा......बाकी सब ठीक ।खाए पिए प धेयान दिहा...कुछ के चिंता न कइनी शिव जी बानी नू।
जो गाँव के मजनू छाप आशिक जिनको लभलाइटिस हो गया था...वो आठ आना के लेटर पैड पर हाथ से नहीं साहेब....करेजा से लिखते थे.....
"हमार जान तहरा पियार में पागल होकेे बगइचा बगइचा घूमत बानीं...
तहरा सिवा कुछ लउकते नइखे...हमार करेजा तुही बाडू त दुनिया में अंजोर बा..ना त पूरा दुनिया में दिनहीं अन्हार हो जाइत......
सुक के सांझी खा ललन रा के टिबुल प आ जइहा... इंतजार करम....तहरा परेम में पागल....तहार फलाना।।
लास्ट में दिल और बड़ा सा तीर बना के आई लभ यू..सुनयना...
पर दुःख की बात कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी भाई को चिट्ठी अगहन बाद मिली और किसी सुनयना को सुक बीत जाने के बाद...
फिर अगहन और सुक का इंतजार करने वालों का दुःख बताने के लिए करेजा चाहिए.....लेकिन उनका प्रेम कम न हुआ।
आज तो हम थ्री जी और वाई फाई युग में हैं...एक क्लीक पर सारी दूरियाँ खतम....पर एक जगह है जहाँ दूरी इतनी ज्यादा बढ़ गयी है जिसकी भरपाई दुनिया की कोई टेक्नोलाजी नहीं कर सकती.....लोग अब ज्यादा अंतरमुखी हो गयें हैं.....
कल एक मित्र के साथ उनके दरवाजे के बाहर बैठा था....तो उन्होंने कहा खाना खा लेतें हैं अतुल...हमने कहा बड़ा जल्दी बना दिया भउजी ने भाई...उन्होंने कहा भाई अभी whats app पर मैसेज किया है आकर खा लो वरना जोधा अकबर का टाइम हो गया है।....हमने कपार पीट लिया।
कितना अच्छा होता न वो दरवाजे पर आकर एक बार बोल जातीं..."सुनतें हैं खाना खा लिंजिये" तो कसम से आधी भूख तो अइसे ही मिट जाती।
पर क्या कहें दोस उनका नहीं...
सारे रिश्ते आज टेक्नोलाजी के तार से बंधे हैं....नेह की डोर कहीं टूट सी गयी है।
पहले लोग मिलते ही हाल चाल पूछते थे....आज ज्यादा लोग यही पूछ्तें हैं आप फेसबुक और whtas app पर हैं ?.और मजे कि बात...आप लाख स्मार्ट हों पर कसम पाकिस्तान के पप्पू की आज आपके पास स्मार्ट फोन नहीं है तो आपको इस तरह लोग देखतें हैं....
मानो घर के कूड़े घर में पड़े वी सी आर को देख रहें हों.....
क्या कहें हमारे समय की बड़ी विडंबना है... इस पर जितना कहा जाय कम ही होगा।
आज समय के साथ कदम ताल मिलाना जरूरी है.. फेसबुक न होता तो हम ये बात अपने सात सौ मित्रों से कैसे कह पाते.....?
लेकिन लाख क्रान्ति हो जाय....चिट्ठी वाली फिलिंग को बचाकर न रख पाए...तो आदमी से पत्थर होते देर न लगेगी।
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nice bro !
ReplyDeletenice bro !
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