गाँव आने पर...
बसन्त की जवानी है...गाँव होलियाया है....सब तैयारी में हैं.....आदमी से लेकर बाग़ बगीचा खेत तक....सरसों के पत्ते एक दूजे से बतीयतें हैं.फूल आसमान की ओर ताककर हंसते हैं....मानों कह रहें हों....देखो देखो हम कित्ते सुंदर हैं....मटर मन्त्रणा करतें हैं..की कल कोई कमबख्त आएगा और घुघनी बनाकर चाय के साथ खायेगा...
खेत के गेंहू डरे सहमे से ..कमबख्त बारिष ने उनको रुलाया है....खड़े होने की कोसिस कर रहें हैं....फगुनहट बहता है तो नवकी भौजी का पल्लू सम्भाले नहीं सम्भलता..देवर छेड़ता है....भाभी हो हम डालम न?
भउजी पल्लू समभालती है और कहती है....भाक्क्.... कितना मीठा है न ये सम्वाद? ...कलुहाड़ा के ताजे गुड़ जैसा।
माताजी ने आते ही मुझे काली माई का भभूत लगाया है..हाय उनके बबुआ को किस डायन की नज़र लग गयी है..
पता न कौन डायन है... जो हमेशा मुझपर नज़र गड़ाये रहती है...
ई मम्मी टाइप लोग भी न...हद इमोशनल अत्याचार कर देतें हैं।
बहन दौड़कर आई है की उसे फिजिक्स में क्लास में सबसे अधिक नम्बर मिलें हैं... तो उसे कम से कम मेरी ओर से भारत रत्न की व्यवस्था की जानी चाहिए...माँग जायज है।
छोटी वाली बहन ने अब कह दिया है की अब वो गोल गोल रोटी बना सकती है...अबकी मैं उसे चिढ़ाया...तो आईपीसी की कोई गम्भीर धारा वो लगा सकती है.... डरिये अतुल बाबू।
बड़े पिताजी ने बताया है की बारिष ने फसल का नुकशान ही किया है...
मुझे ताना दिया गया है की बनारस से आना अउर आलू के खेत में चार दिन सोना ..कसम से इ हमसे नय होगा...
उधर सरजू बाबा ने गजाधर बाबा के खेत में मटर की छीमी उखाड़ लिया है....ल्यो अब गाली गलौंज के साथ ममीला गरम है....होली में नागपञ्चमी का अखाड़ा न खुद जाये..डीह बाबा से मन्नत है ।
पर चिंता जन करिये...कल दोनों एक साथ खैनी खाते दिख जाएंगे।....इ गाँव है ..यहाँ झगड़ा नहीं सिर्फ रगरा होता है।
उधर डब्लू अपने चाइना के फोन पर..जोर से."जीजा धीरे धीरे डालीं लहंगा लाल हो जाई,".. बजाता है..उसे पता नही की "ए गोरिया पतरी जइसे लचके लवंगिया के डाँढ़ में ज्यादा आनंद है...
पर वो कहता है की मैं अपना ज्ञान अपने पास रखूँ...ठीक ही कहता है...
गाँव जाना चाहिए तो ज्ञान को अपने आलमारी में बंद करके आना चाहिए..शहर में उसकी ज्यादा जरूरत है....हाँ नई तो।
गनेस ने बलिया से कहा है की..."ए अतुल पापा हई कैंटीन से निकालें हैं...एक बार टेस्ट तो कर लो..होलिये में शुभ मुहूर्त है....सब संघी संघाती लेने लगें हैं...और तुम कमीने सधुआये जा रहे हो...फिर उसने मुर्गे की टांग के साथ सोमरस पान के विविध लाभ पर मुरारी बापू टाइप परवचन दिया है......"
मैंने जयपुर के हसरत चचा को याद कर एक शेर कहा है.....
"मैं किसी जाम का मुहताज नहिं हूँ हसरत
मेरा साकी मुझे आँखों से पिला देता है।"
©atul
4-3-15@ballia
वाह क्या जाम है... गजब तो आप लिखते ही हैं पर फागुन ने आने से पहले ही फगुना दिया...मिटटी से सुगंध आ रही है आपको पढ़कर
ReplyDeleteवाह क्या जाम है... गजब तो आप लिखते ही हैं पर फागुन ने आने से पहले ही फगुना दिया...मिटटी से सुगंध आ रही है आपको पढ़कर
ReplyDelete"ए गोरिया पतरी जइसे लचके लवंगिया के डाँढ़ "
ReplyDeleteक्या आप इस होली गीत के सम्पूर्ण शब्द दे सकते हैं मुझे? ये गीत अपने गाँव में बचपन में सुना था। गीत के शब्दों को ढूंढ़ रहा था।
Nice post, things explained in details. Thank You.
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