Saturday, 27 February 2016

समाजवादी नकल

टेक्नोलॉजी ने पाँव इस कदर फैला  लिये हैं कि नकलची अब हाईटेक किस्म के हो गये हैं....पहले काका आ विद्या की गाइड में मूड़ी नवाकर  खोजना पड़ता था...फिर फाड़कर समयानुसार छुपाकर लिखना पड़ता था..गणित बिज्ञान के  एग्जाम में कालेज का कोई अध्यापक हल करता फिर उसका फ़ोटो स्टेट पचास पचास रुपया में बेचा जाता.....लौंडे के हाई स्कूल में तीन बार फेल होने के बाद जब चौथी बार तीलकहरु दरवाजे से लौटने लगते  तब  बेइज्ज़ती के डर से बाबूजी मामा नाना उसे पास कराने में जोर लगा देते...
मल्लब कि जब फोन सिर्फ लैंडलाइन हुआ करते थे स्मार्ट नहीं...उस जमाने में लइका कमरे में परीक्षा देता और लइका के बाबूजी ,चाचा ,पितीया खिड़की पर...
उ बैठ के चिल्लाता की "सातवां के तीन तबे से मांग रहे हैं.....ना इनको  बिद्या में मिल रहल है  ना काका में... घरवे कहे की तनी पढ़  लिजिये  हो....बाकी इ एहू साल हमके  फेल करवा के मानेंगे......
सबसे चांदी लौंडो को हो जाती...
मंटुआ नहाना खाना  भूल जाता पर पिंकिया को नकल कराना नहीं...
उधर करिमना सुबह ही सुबह सज संवरकर  इमरान हाशमी बनके  लड़कियों वाले कमरे की खिड़की पर....
"का हो रीना जी आठवां का पांच हुआ?
तब  क्या करतीं रीना जी बेचारी उनके घर का कोई नहीं जो उनको नकल करवाये... दुपट्टा ठीक करते हुए नाक छूते  हुए  "ना" की मुद्रा में सिर हिला देतीं...
फिर तो लौंडा ना में हाँ को पढ़कर एक लहरिया कट लेता और आठवाँ का पांच खोजने इस मुद्रा में निकलता मानों कोलम्बस अमेरिका की खोज में गया हो....
खोज खाजकर लाता बाकी  देने से पहले अंखिया में अंखिया में डालकर जरूर कहता...
"पहिले इ बतावो की  सच्ची में पेयार करती हो हो  कि खाली अइसे ही देख देख हंसती  हो...? तुमको पता है हम तीन दिन से आजु सूत नही  रहें हैं..इचिको नीन नहीं लग रहा है..लग रहा है पियार में पागल होकर गुब्बारा बेचने लगेंगे......." आयं?
बताइए न रीना जी हम इस पेयार के परीक्षा में कहिया पास होंगे?
ओह...अब रीना जी के मासूम से चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगतीं...बेचारी प्यार के इस दीर्घउत्तरीय प्रश्न को छोड़ देना ही उचित समझतीं..
और सर झुकाकर चुपके से नकल सामग्री ले लेती....लौंडा सनी देवल वाली फिलिंग लाकर  बांह मोड़ते हुये एक बार अपने रीना जी से पूछता....."अउर केवनो दिक्कत परसानी होगा तो बताइयेगा....अरे प्रिंसिपल मेरे मामा के सार हैं..डर कवना बात के..आ हउ तिवरीया मस्टरवा को...अरे जहिया परीक्षा खतम हुया ओहि  दिन चट्टी पर उनकर मुरझाइल पैना से क्लास लेंगे हम लोग...."
फिर रीना जी के मुरझाये चेहरे पर उम्मीदों का बल्ब जलता..वो भी कह ही देतीं... "चार गो छूटत रहा है अभी"..
रीना जी को  फेल हो जाने का डर  सताता....फेल हो गए तो बियाह शादी में भारी  दिक्कत....।
इधर लौंडा चार के  चक्कर में नहीं प्यार के चक्कर में  चौदह कोस धांगकर उत्तर खोजता....ये अलग बात है की इंटर पास करने के  बाद रीना की शादी बीए फेल मुनीलाल से हो जाती। और करिमना नामक  लौंडा इस प्यार के एग्जाम में फेल होकर पापा की जग़ह मामा बन जाता और चट्टी पर दूकान खोल लेता....
"रीना किराना मर्चेंट"
और दू साल बाद रीना चक्रवृद्धि ब्याज की तरह फैलकर अपने एक वर्षीय गुल्लू के साथ उस दूकान पर जॉनसन बेबी पाउडर खरीदने आ जातीं....
ये प्यार करने वालों के साथ सनातन से चली आ रही ट्रेजडी है।विषयांतर होगा।
पर दुःख होता है  एशिया के सबसे बड़े परीक्षा के हालात को देखकर.... यहां नकल अब परम्परा का रूप ले चुका है....फ़ोटो स्टेट की जगह अब whats app ने लिया है...अकलेस भाई का नाव लेकर जूम करिये आ खूब लिखिये...आगे फारवर्ड करते रहिये....
प्रशासन के सारे दावे उपाय..जुमला साबित हो रहें हैं.. पूर्वांचल के कुछ जिलों में कहीं  न कहीं गहरे अवचतेन में ये बात घुस गयी है की नकल नही रुक सकता...
अब तो सुविधा शुल्क का जमाना आ गया...गार्जियन भी झंझट से मुक्ति के लिए स्कूल को दस पांच हजार दे देता है...नकल कराके पास करवाने की जिमेदारी स्कूल वालों की।
इधर समाजवाद के चार सालों में समाज का समाजवादी करण हुआ हो या न हुआ हो...अमीरी गरीबी झगड़ा झंझट खतम होकर लोहिया का सुराज आया हो या न आया हो लेकिन नकल का समाजवादीकरण जरूर हो गया है
कुछ भी कहना व्यर्थ है...उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के आफिस में टँगे लोहिया जी और गांधी जी से पूरी सहानुभूति है मुझे।
समाजवाद नकल के रास्ते भी तो आ सकता है।
जय हो कहिये. वो शेर है न..

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ है
क्या मेरे हक में फैसला देगा।

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