Friday 10 July 2015

भिखारी आ कबीर

भ से भोजपुरी आ भ से भिखारी ठाकुर......शायद 'भोजपुरी के भिखारी ठाकुर पर्यायवाची हई' इ कहल जाव त कवनो अतिशयोक्ति ना होइ.....
भोजपुरी से भिखारी  के अलग क दिहल जाव त भोजपुरी साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से भिखारी के हाल में हो जाई.....आज एही भिखारी के कारण हमनी के समृद्ध बानी जा...
भिखारी ठाकुर जी सूत्रधार के भूमिका में रहनी..उहाँ के सामने  बरियार  समस्या रहे...लिखे पढ़े से लेके रचना करे आ फेर आपन बात कलाकारन के समझावे के भी रहे...आर्थिक आ सामजिक रूप से पिछड़ल गाँव बुनियादी सुबिधा के घोर अभाव के उहां का हिम्मत के संगे सामना कइनी......
हम उहाँ के रचना संसार प आपन बात राखब..
दोहा ,चौपाई ,सवैया, छंद  अउर जँतसार ,लोरिक फेर कुंवर विजयी के लय..सोरठी बृजभार नल दमयंती ,राजा भरथरी , सती बिहुला ,पचरा ,बिरहा,  डोमकच, पवरिया ,धोबी धोबिन सम्वाद ,सोहर. कजरी ,झूमर .पूरबी निरगुन ,कीर्तन आ ग़ज़ल  से लेके..
तमाम संस्कार गीतन के रस तत्त्व सब उहाँ के नाटकन में भरल बा।
फेर रीती कुरीति ,मर्यादा  आदर्श ,त्याग ,तपस्या के बारी बारी से अरथ उहाँ के एक एक गो नाटक में देखे के मिलेला....बूढ़ लोगन के ज़िम्मेदारी फेर आदमी से आदमी के व्यवहार नारी सम्मान और स्त्री बिमर्श ,सूदखोर जमीदारं के अत्याचार  ,धार्मिक पाखण्ड बेटी बेचवावे  वाला दलालन के नीचता ,सब मोती के तरह  उहाँ के रचना संसार में सजल बा।
1917-18 में विदेसिया के माध्यम से पलायन आ विस्थापन के दर्द आ स्त्री मर्यादा के सवाल भी उठावनी...बेटी वियोग नाटक में बेटी बेचवन के खबर भी लिहनी...एह नाटक के माध्यम से उहाँ के अनमेल बियाह के दुर्दशा के खिलाफ एगो बरियार सांस्कृतिक माहौल तैयार कइनी..जहाँ जहाँ इ नाटक भइल उहाँ बेटी बेचाये बन्द हो गइल.......उहाँ के सब नाटक एगो सांस्कृतिक हथियार रहे । गबरघिचोर गंगा स्नान , विधवा विलाप, पुत्र बध ,कलियुग प्रेम राधेश्याम बहार ,भाई विरोध इ सब यहां के हथियार के असली कारतूस ह जवना से एगो   बरियार सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा भइल आ एकर समाज के मनोदशा पर ब्यापक प्रभाव पड़ल.....
एह कारण उहाँ के एगो आम आदमी के कलाकार एगो जनता के कवि हो गइनी....
आज भिखारी ठाकुर के नाव के आगे महान लोक कलाकार और जन कवि लागेला...
लेकिन हमरा इ कई हाली लागल बा की भिखारी ठाकुर के अभी समग्र मूल्यांकन बाकी बा...तमाम मार्क्सवादी आलोचक मूल्यांकन त कइले बढ़िया से ,बाकी एगो बरियार आ महत्वपूर्ण पहलू के छोड़ दिहलन... उ रहे आध्यात्मिक पक्ष ,जवन भिखारी ठाकुर के कबीर आ मलिक मुहम्मद  जायसी के सामने खड़ा करेला..हम तमाम आलोचक लोग के कवनो  दोष ना मानेनी...कारण मार्क्सवाद के अध्यात्म से मुकदमा बाटे..
लेकिन एह मुकदमा के कारण अतना महान व्यक्ति के रचना संसार से अन्याय होखे इ कइसे बर्दास्त होइ....
एगो छोट उदाहरण विदेसिया नाटक से देब जहाँ समझ में आई की विदेसिया पलायन आ विस्थापन के दर्द ना ह ई त जायसी के पद्मावत ह....जवना के आलोचक लोग जान बूझ के छोड़ देले बा.....
विदेसिया के शुरुवात में सूत्रधार के सम्वाद बा...
"विदेसी ब्रह्म , प्यारी सुंदरी जीव..रखेलीन माया आ  बटोही उपदेश...एह चारो के सम्वाद होखे के चाहीं..." एह चारो के सम्वाद ही विदेसिया नाटक ह।।
इहाँ भिखारी ठाकुर जी के दूर दृष्टी के एगो छोट झलक मिलेला...आ बतावे ला की भिखारी ठाकुर दोसरका कबीर आ जायसी हई।
आज विदेसी रूपी जीव..रखेलीन रूपी माया में अझुरा गइल बा.....मोह माया में  फंस के ई भुला गइल बा की उ का करे आइल बा....ओकर त जन्म भइल रहे ब्रह्म से मिलन खातिर बाकी रखेलीन रूपी माया नोकरी चाकरी घर परिवार आफिस में अइसन अझुराइल की प्यारी रूपी ब्रह्म के भूला गइल।
एह मोह माया के काट के कवनो उपदेश रूपी बटोही के सत्संगति से ही ब्रह्म रूपी प्यारी के भेंट सम्भव बा......इ जब भेंट होइ त मानब जीवन सफल होइ..आ फेर चौरासी लाख योनि में ना भटके के पड़ी..
आप जब विदेसिया के विस्थापन आ पलायन के दर्द से ऊपर जाके देखब तब समझ में आई भिखारी ठाकुर महज कवि कलाकार ना रहलन।
बाकी भिखारी ठाकुर के इ पक्ष के आज ले केहू नइखे छूवले...जब एकर मूल्यांकन होइ..त पता चली की उहाँ के महानता माउंट एवरेस्ट से भी लमहर बा....
आ ओहि दिन भोजपुरी अपना गुदड़ी के लाल प इतराई...सबके मालूम होइ की भिखारी सिर्फ एगो नाटककार ना हवन बल्कि एगो सन्त हवन...जवन कबीर आ जायसी के सामने खड़ा होके हंस सकेला।।
नमन।।

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