जे कबो सबका के रस्ता बतावत रहे
देखीं उहे आज रस्ता भुलाइल बा
काल्ह घर घर में जाके हमके जोहत रहे
आज उहे अपना घर में लुकाइल बा
इहे भइल खता उनसे मुहब्बत भइल
इ दिल ना ,दरिया ह केसे बन्हाइल बा
उ आदमी ना ह सच में फरिस्ता हवे
जे गरीबन के कभी काम आइल बा
रउवा अइतीं त ऐइजा अंजोर हो जाइत
दिल के झोपडी के दिया बुताइल बा
तू नफरत फैलवला अपना कुर्सी खातिर
आज आदमी से ही आदमी डेराइल बा
अपना जिनगी के इहे हकीकत बाटे
की नेह के डोर से सभ बन्हाइल बा
एके कविता कहानी ना ग़ज़ल कहब
इ दिल के बात ह सीधे कहाईल बा
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