Saturday, 14 May 2016

ये ब्लॉग अब बेबसाइट हो चुका है।

आदरणीय मित्रों...

ये बताते हुये हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि ये ब्लॉग अब बेबसाइट का रूप ले चुका है...
डेढ़ साल बेमन की ब्लॉगिंग के बाद भी आपने जो  स्नेह दिया है उसके लिए मैं सदैव आभारी हूँ।।
और आप आज भी गूगल पर सर्च कर मेरे पास आ रहें हैं... मुझे  ख़ुशी हो रही है...

अब ये  बताना जरूरी था कि अब आपको यहाँ मेरी नयी पोस्ट नहीं मिलेगी...
क्योंकि ब्लॉग की एक अपनी सीमा और पहुंच है...
बेब पर पहुंचना पढ़ना और  शेयर करना आसान है...
फीचर उसमें ज्यादा हैं...ब्लॉग के साथ तमाम दिक्कतें  थीं...
सो अब आप डाइरेक्ट गूगल पर 
www.atulkumarrai.com 
सर्च करें.....और जीवन संगीत की सभी पोस्ट आसानी से पढ़ें।।

आपका आभारी।
अतुल।

Monday, 25 April 2016

हम आदमी बने रहेंगे...

इस 42 से 48 डिग्री तापमान में सड़कें जल रहीं..गर्म हवा और लूह से हाल बेहाल है.
वहीं कुछ लोग  हैं जो बिना धूप-छाँव की परवाह किये बिना सड़क पर अपने काम में लगे हैं... धूप में जल रहे हैं...कन्धे पर फटा गमछा..और पैरों में टूटी चप्पल पहने  धीरे से पूछ रहे.."कहाँ चलना है भइया..आईपी मॉल."?
आइये तीस रुपया ही दिजियेगा।"
इसी बीच कोई आईफोन धारी आता है अपने ब्युटीफुल गरलफ्रेंड के साथ..और अकड़ के कहता है.."अरे..हम
जनवरी में आये थे तब बीस रुपया दिए थे बे....कइसे तीस रुपया होगा"
चलो पच्चीस लेना"
गर्लफ्रेंड मुस्कराती है..मानों उनके ब्वायफ़्रेंड जी ने 5 रुपया नहीं 5 करोड़ डूबने से बचा लिया हो..वो हाथ पकड़ के रिक्शे पर बैठतीं हैं..और बहुत ही प्राउड फील कर
ती हैं...
यही ब्वायफ़्रेंड जी जब केएफसी ,मैकडोनाल्ड और पिज़्ज़ा हट में उसी गर्लफ्रेंड के साथ कोल्ड काफी पीने जाते हैं.तो बैरा को 50 रुपया एक्स्ट्रा देकर चले  आते हैं..
वही गर्लफ्रेंड जी अपने बवायफ्रेंड जी की इस उदारता पर मुग्ध हो जातीं हैं...वाह..कितना इंटेलिजेंट हैं न.
इस गर्मी में कई बार ये सब सोचकर मैं असहिष्णु होने लगता हूँ..
आदमी कितनी बारीक चीजें इग्नोर कर देता है..जाहिर सी बात है की जो बैरा को पचास दे सकता है..वो किसी गरीब बुजुर्ग रिक्शे  वाले को दस रुपया अधिक भी तो दे सकता है..
लेकिन सामन्यतया आदमी का स्वभाव इतना लचीला नहीं हो पाता..
क्योंकि अपने आप को दूसरे की जगह रखकर किसी चीज को देखने की कला हमें कभी नहीँ सिखाई गयी।
और आज सलेक्टिव संवेदनशीलता के दौर में ये सब सोचने की फुर्सत किसे है.
कई बातें हैं...बस यही कहूंगा की..इस प्रचण्ड गर्मी में रिक्शे वालों से ज्यादा मोल भाव मत करिये..
जब बैरा को पचास देने से आप गरीब नहीं होते तो रिक्शे वाले को पांच रुपया अधिक देने से आप गरीब नहीं हो जायेंगे..
हो सकता है..आपके इस पैसे से वो आज अपनी चार साल की बेटी के लिये चॉकलेट लेकर जाए...तब बाप-बेटी की ख़ुशी देखने लायक होगी न। कल्पना करियेगा जरा।
जरा सडक़ों पर आइए..एक दिन पेप्सी कोक मत पीजिये...मत जाइये.केएफसी,मैकडोनाल्ड और पिज्जा हट।
देखिये न कोई गाजीपुर का लल्लन,कोई बलिया का मुनेसर, कोई सीवान का खेदन..अपना घर-दुआर छोड़ बेल का शरबत, दही की लस्सी,आम का पन्ना, और सतुई बेच रहा है..एक सेल्फ़ी उस लस्सी वाले के साथ भी तो लिजिये।
जरा झांकिए इनकी आँखों में एक बार गौर से...
इसके पीछे..इनकी माँ बहन बेटा बेटी की हजारों उम्मीदें आपको उम्मीद से घूरती  मिलेंगी..
केएफसी कोक और मैकडोनाल्ड का पैसा पता न कहाँ जाता होगा.. लेकिन आपके इस बीस रुपया के लस्सी से.और दस रुपया के बेल के शरबत से .5 रुपये के नींबू पानी से किसी खेदन का तीन साल का बबलुआ इस साल पहली बार स्कूल जाएगा.
किसी मुनेसर के बहन की अगले लगन में शादी होगी.
किसी खेदन की मेहरारू कई साल बाद  अपने लिए नया पायल खरीदेगी..
क्या है की हम आज तक लेने का ही सुख जान पाएं हैं..खाने का ही सुख महसूस कर पाये हैं.
लेकिन इतना जानिये की लेने से ज्यादा देने में आनंद है।
खाने से ज्यादा खिलाने में सुख है।
इतनी गर्मी के इतनी सी संवेदना बची रहे..
हम आदमी बने रहेंगे।
                                                                                                                                                                    ये  भी  पढ़ें ...  एक चरित्रवान भैंस की कथा                                                                                                                             प्यार की एक कहानी                                                                                                                                   फेसबुक फ्रेंडशिप और इश्क                                                                                                                        मोदी जी काहें बेवकूफ बना रहें हैं आप 



Wednesday, 20 April 2016

नागिन डांस मुक्त बिहार..

शराब बन्दी का असर इतना भयानक है की आज मोहना को अपनी शादी में खुद ही गाना पड़ रहा है..
बच्चा बैंड पार्टी में काम करते टाइम न  जाने कितने नाग नागिन उसके सामने फूंफकार मारके नाचते थे..
न जाने केतना नाचते समय उससे अंग्रेजी में बात करते थे..
आज उसका बियाह पड़ा तो नाचना   अउर बात करना तो छोड़िये कोइ गाने वाला तक नहीं है।

हई देखकर करेजा  मेरे में धुंआ लेस रहल है..न जाने कितनी बार मोहना ने गाया होगा "आज मेरे यार की शादी है.."
लेकिन हाय रे किस्मत...पता ना दुकवन रहरी के कलम से लिख दिये हैं भगवान जी.आज अपने बियाह में  कवन मुँह लेके इ गाना गाये।
एक्को संघी संघाती उसके बियाह में नहीं जा रहा है...सब कह दिए हैं.."दारु नहीं तो बरात नहीं।"
मोहना ने सबसे हाथ जोड़ के रिक्वेस्ट भी किया था...."अरे  ससुरा सब.टेंसन न लो..हम अकलेस भाई आ मोलायम चचा के कसम खाते हैं..  बलिया से लैला आ झूम के सौ बोतल माँगा दिये हैं..मांझी होके आ जायेगा..
जानते नहीं हो सब..यूपी में   शराब उसी दिन सस्ता हुआ जिस दिन बिहार में बन्द हो गया..
तुम सब बुझता नहीं..इ नितीश चचा आ अकलेस चचा का समाजवादी सेटिंग है।"
दारु मिलेगा चिंता जिन करो..
लेकिन कोई नहीं माना..

अभी पता चला सब रजेसवा के बरात में चले गये हैं..काहें की उहाँ आर्मी वाला दारु का बेवस्था है..अउर रात को जनता बाजार सिवान का झक्कास आर्केस्ट्रा..
5 लेडीस है..अइसा लॉलीपॉप डांस करता है की जिला हिल जाता है।

बेचारा मोहना का करे..
भगवान से मनाइये की आज मोहना का बियाह से ठीक से हो जाय..साली सरहज ताना ना मारें.
पता न बिहार संघ मुक्त होगा की नहीं..लेकिन इहे हाल रहे तो नागिन डांस मुक्त..अउर इंग्लिश स्पीकिंग मुक्त तो हो ही जाएगा। 
पता चला कुछ दिन में बिहार सरकार बरात जाकर नागिन डांस करबे वालों को  हर जगह विशेष  सब्सिडी देगी।

Saturday, 16 April 2016

हम नफरतों के आदी होते जा रहे..

ओवैसी ने कहा था कि "मेरी गर्दन पर कोई छूरी रख दे तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा"
बड़ी बवाल मचा था ..तुरन्त  बोलने और बोलवाने के बीच जंग शुरू हो गयी..
विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा मिला.बुद्धिजीवियों को वैचारिक लाठी भांजने का एक हथियार..मीडिया को टीआरपी मसाला..

लेकिन इन सब शोर के बीच एक आवाज दब गयी.जो बनारस की उस मुस्लिम महिला  नाजनीन अंसारी की आवाज थी जिसने ललकार कर  कहा था..

"मेरी गर्दन पर कोई तोप रख दे तो भी मैं लाखो बार भारत माता की जय बोलूंगी"

अफसोस की ये समाचार मुद्दा न बना..न ही बनेगा..
जानते हैं क्यों?...क्योंकि मीडिया  नफरत बेचने की आदी हो गयी है..
धीरे-धीरे हम नफरत देखने सुनने के आदि होते जा रहे हैं.. वरना देश की बर्बादी का नारा लगाने वाले आज हीरो न बन जाते..

हमें कहीं थोड़ा बहुत प्रेम भी दिखता है तो उस पर सन्देह होने लगता है..दोष हमारा नहीं..हम आज विकट समय में जी रहें हैं.
नफरतों का बाजार सजा है.

अगर इसी महिला ने चिल्लाकर कहा होता   "मेरी गर्दन पर कोई तोप रख दे तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगी.."
तब आप देखते..कैसे लोग दौड़े चले जा रहें हैं इनका साक्षात्कार करने के लिये..बरखा राजदीप जैसे लोग इनको कन्धे पर झूला रहें हैं.
लाइव इंटरव्यू दिखाया जा रहा है..बड़े बड़े सम्पादकीय लिखे जा रहे हैं"

लेकिन नहीं इस महिला को इस चीज का कभी गम न रहा..न ही फेमस होने और हीरो बनने की कामना जगी.
इन पर तमाम फतवे भी जारी किये गये..मुल्ला जी लोग इनको धमकी भी दे चुके हैं..अभी भी जब तब  देतें ही रहतें हैं...
इसके बावजूद भी वो लगीं हैं..समाज को जोड़ने में. उस गंगा जमुनी तहजीब को कायम रखने में जो अब सिर्फ सुनने में ही अच्छी लगती है.

2006 में जब बनारस बम के धमाको से दहल उठा था..तब इसी  महिला ने  अपने 51 साथी महिलावो के साथ संकटमोचन मन्दिर में जाकर सुंदर काण्ड का पाठ किया था..
इन्होंने हनुमान चालीसा,मानस समेत कई हिन्दू धार्मिक  ग्रन्थों का उर्दू में अनुवाद किया है..
हर साल रामनवमी बड़े धूम धाम से मनाती हैं..
खुद राम जी के लिये कई भजन भी लिखा है.
नमाज भी जरूर पढ़ती हैं.रोजा रखकर ईद भी मनाती हैं.
क्योंकि इनका मानना है कि इनका  इस्लाम इतना कमजोर नहीं कि राम जी की आरती दिखाने..प्रसाद खाने मन्दिर,गुरुद्वारा और चर्च जाने से खतरे में पड़ जाएगा।

आरएसएस के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच से इनका प्रगाढ़ सम्बन्ध है..
इन्होंने इन्द्रेश जी के साथ मिलकर बनारस की तमाम गरीब मुस्लिम महिलावों के लिये जमीनी स्तर पर बड़ा ही अद्भुत काम किया है.
रक्षाबंधन  के समय इन्होंने प्रधानमंत्री मोदी जी और  इन्द्रेश जी को  अपने हाथ से बनाई राखी भी भेजा था..

अभी राष्ट्रपति ने जी ने देश की जिन सौ महिलावों को सम्मानित किया उनमें एक नाम इनका भी था।

आज जब खबर आ रही की बिहार के सीवान गोपालगंज में कुछ शान्ति दूतों ने राम जी की जुलुस पर हमला कर दिया है..कर्फ्यू लगा है. तब नाजनीन जी को देखना जरूरी हो जाता है.

ये आइना हैं उन सभी मुसलमानों के लिये. सेक्यूलरिज्म का ढोंग करने वाले तमाम मुस्लिम  बुद्धिजिवीयों  के लिये जो धीरे-धीरे मोदी और आरएसएस के अंध विरोध में आज हिंदू और हिन्दुस्तान के विरोधी होते जा रहे हैं.
हमारा दुर्भाग्य है कि हम ओवैसी जैसों को जानतें हैं लेकिन नाजनीन अंसारी को नहीं जानते.

Thursday, 14 April 2016

अम्बेडकर को संकीर्ण न बनाइये..

फेसबुक पर कुछ दलित चिंतक बाबा साहेब के बहाने ब्राह्मणवाद,मनुवाद और सवर्ण जैसे शब्दों को पानी पी पी कर गरियाते हैं..मानों फेसबुक से निकल हाथ में तलवार लेंगे और सवर्णों का नाश ही कर डालेंगे अब.

इनसे पूछने का का कई बार मन होता है मेरा..."हे बुद्धिजीवी..हे महात्मन्..सामाजिक समरसता के नाम पर जहर फैला रहे प्रदूषित आत्मा..
क्या आप जब ब्राह्मण को गरियाते हैं तो  महादेव अम्बेडकर को गाली नहीं देते..जिसने बाबा साहब को अम्बेडकर सर नेम दिया था. उनको भीमराव से अम्बेडकर बनाया था...जिसने पुत्रवत  स्नेह किया था. सदैव एक गुरु की भाँति मार्गदर्शन किया था..

क्या जब आप ब्राह्मण को गरियातें हैं तो डा शारदा कबीर को गाली नहीं देते..जिन्होंने पत्नी बनकर बाबा साहेब की मरते दम तक सेवा किया था..?
क्या आप जब सामंतों को गरियातें हैं तो महाराज बड़ौदा सयाजीराव गायकवाड़ को नही गरियाते जिनकी फेलोशिप पर बाबा साहब पढ़ने विदेस गये थे।

अरे आप तो इतने अंधे हैं,इतने कृतघ्न हैं कि आपने इस ब्राह्मण गुरु और पत्नी के साथ उस महाराजा का आज तक जिक्र नहीं किया..
और मुझे तो कई बार लगता है कि आज बाबा साहेब होते  तो आपके ही हाथों वो मारे गये होते..
क्योंकि आप विरोध में इतने अंधे हैं कि आपको जब पता चलता की वो आरएसएस की  सराहना भी कर रहें हैं तो आप उनको बेवकूफ कह देते.
जब जानते कि वो मार्क्स को खारिज कर बुद्ध को आत्मसात कर रहें हैं तो आप उन्हें पता न क्या क्या कह डालते..
कुछ दिन बाद पता चलता संस्कृत को अनिवार्य करने की सोच रहे हैं.तो आप उन्हें भी मनुवादी कह देते.
फिर पता चलता आरक्षण को सिर्फ दस साल तक ही जरूरी मान रहे हैं..तब उन्हें भी आरक्षण विरोधी कह देते.

अरे अम्बेडकर को अपने जैसा संकीर्ण न बनाइये.

Tuesday, 12 April 2016

सुनों..प्रेम की भाषा..

सुनों.......
इस भोर की मादक हवा मुझे गाकर  जगाती है..जैसे धीरे धीरे गाती हो तुम....
जरूर कहीं दूर पहाड़ों पर बजता होगा सन्तूर....सुनकर उड़ने लगता हूँ  मैं।
अचानक..एक जोर का  झोंका आता है...मानों तुमने बालों को खोल दिया हो अभी अभी....
हवा इतनी ताजा कभी नहीं लगी....
कल पहली बार आम की डाली में मोजर देखकर लगा... जैसे तुमने अपने जूड़े में सजा रखें हों रजनीगन्धा....
साँझ को  लीची के पेड़ पर  पत्ते सरसरा रहे थे...एक बार लगा हम तुम बतिया रहें हों अपने आने वाले कल के बारे में।
पलाश के फूलों को कुतर रहा था एक सुग्गा मानों तुमने अभी अभी पूछा हो मुझसे..ए मैं कैसी लग रही हूँ?

तुम्हारी बच्चों जैसी हंसी तब याद आयी.. जब कल ही कोंपल से निकले पीपल के पत्ते को कुतर रही थी छोटी गिलहरी..
जामुन के पेड़ों ने वादा किया है, वो मुझे बरसात में  बताएंगे ..तुम्हारी आँखे इतनी खूबसूरत क्यों है?  तुम्हें भी तो नहीं पता.....छोडो..

इधर गेंहू पक रहें हैं..मेरे प्रेम की तरह..मटर को छूते ही झुक जातीं हैं डालियाँ...
जैसे तुम शरमा गयी थी उस दिन मेरे पहले..स्नेहिल स्पर्श से...
सरसों के पीले फूल इन्तजार करतें हैं किसी का...मानों तुम सजकर दरवाजे पर खड़ी हो मेरे इंतजार में..
कल शाम महुवा पर कोयल बोल रही थी...सुनकर लगा ओह! मैं तुमसे कितना दूर हूँ....
सुनों...प्रकृति की इस कलाकारी  में तुम्हारी ऊर्जा महसूस करता हूँ.....
इस नवीनता में अजब स्पंदन है...
प्रेम  मनुष्य की प्रकृति है और प्रेम ही प्रकृति की सबसे मौलिक कृति है।
कल निर्विचार होकर जाना मैंने कि  प्रकृति भी सजाती है खुद को..किसी  के लिए..जैसे सजती हो तुम मेरे लिए..
ये पढ़कर चुप हो जाना कुछ देर..जैसे चुप हो जाता बच्चा अपनी माँ की गोद में आने के बाद..
प्रेम की भाषा मौन है पगली..
                     
                     तुम्हारा..
                      अतुल..

#दीवाने_की_डायरी

Monday, 11 April 2016

मानों नहीं जानों....

आरएसएस को आज जब कुछ लोग इस्लामिक  स्टेट कह रहे हैं..तब ऐसी तस्वीरें सामने आनी जरूरी हो जातीं हैं..कल केरल में सैकड़ों संघ के कार्यकर्ता सेवा और लाइन लगाकर रक्त दान करते रहे।
हालांकि स्वयंसेवकों का ये निः स्वार्थ सेवा भाव किसी तस्वीर का मोहताज नहीं..
वो तबसे किसी दुर्घटनास्थल पर पहले पहुंचतें हैं जब गूगल,फेसबुक और ट्वीटर के बाबूजी पैदा नहीं हुये थे...
कुछ महीने पहले चलता हूँ..
तब मोहन भागवत माधव आश्रम का उद्घाटन करने लखनऊ पहुंचे थे.
इस अवसर पर वहां किसी  स्वयंसेवक ने आल इंडिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्षा शाइस्ता अम्बर जी को आमंत्रित किया था..
शाइस्ता अम्बर जी आरएसएस के इस कार्यक्रम में  आईं..भागवत जी को सुना और सुनने के बाद
टाइम्स आफ इंडिया को दिये इंटरव्यू में कहा कि..."मुझे ऐसा कुछ आपत्तिजनक नही लगा जो मैं एक अरसे से  सुनती आई हूँ कि आरएसएस मुस्लिमों के बारे में अच्छे विचार नही रखता. वो सिर्फ हिंदुत्व की बातें करता है.
यहाँ तो देश और तमाम सामाजिक समस्यायों और सबको साथ लेकर चलने की बातें की जा रही हैं.न ही अभी किसी से जबरदस्ती भारत माता की जय बोलवाने की बात कही गयी है.."
बाद में उन्होंने मोहन भागवत जी को अपनी मस्जिद में आने का निमन्त्रण भी दिया .जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया है.
मैं ये समाचार पढ़ा तो अच्छा लगा..
मैंनें यहाँ बनारस में   आरएसएस के अनुषांगिक संगठन   'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' के तमाम कार्यक्रम भी देखें हैं..
अभी  वहां "काउ मिल्क फेस्टिवल" हुआ था..जहाँ सैकडों मुस्लिमों ने गाय का दूध पिया..अफ़सोस की बीफ फेस्टिवल दिखाने वाली मीडिया में ये फेस्टिवल कोई खबर न बना.
अभी-अभी बनारस में इसी  'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने की ख्वाहिश रखने वाली गरीब मुस्लिम  छात्रावों को स्कालरशिप और जो परिवार पैसे बिना बेटी की शादी नही कर पा रहे उनकी मदद करने की घोषणा किया है..
खैर ये तो शाइस्ता अम्बर और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की बात हुई..
लेकिन यहाँ कुछ सनातन निंदक हैं..जो न ठीक से आरएसएस को जानतें हैं न कभी उसके किसी कार्यक्रम में शामिल हुये हैं...
और न ही वो   किसी  शाइस्ता अम्बर का कहा सुनतें हैं..और न ही उन्होंने 'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' के बारे में सुना है..
वो एक अरसे से गलत प्रचार कर रहें हैं..
कुछ लोगों ने तो  बड़ी होशियारी से शाइस्ता अम्बर जैसे लाखों मुसलमानों को भड़काने  में कामयाबी भी हासिल कर ली है कि आरएसएस वाले  मुसलमानों का नाश करना चाहते हैं..
वो ब्राह्मणवादी हैं.महिला विरोधी है"
हालांकि ब्राह्मणवादी का ठप्पा वही वामपंथी लगातें हैं जो दिन रात समानता की बातें तो करते हैं लेकिन उनके पोलित ब्यूरो में आज एक भी दलित नहीं है.
ले देकर एक वृंदा करात  महिला भी हैं तो वो भी प्रकाश करात जी के कोटे से आई  हैं.
अब हम किस को दोष दें..शाइस्ता अम्बर जैसे लाखों मुसलमानों को या जिसने आरएसएस के बारे में  वामपंथीयों से जाना है उनको ..या सो काल्ड सेक्यूलरिज्म के ठीकेदारों को जिन्होंने लगातार गलत प्रचार किया है..
या उन  वामपंथियों को जिन्होंने भारत और उसकी संस्कृति  को मार्क्स से जाना है..
जबकि रविन्द्र नाथ टैगोर कहतें हैं एक जगह  "भारत को जानना है तो विवेकानंद को जानों"
मैं आज यहां  किसी को जनवाना  या अपनी मनवाना नहीं चाहता..मन उखड़ा सा है..
हम सब यहां वैचारिक प्रदूषण और संक्रमण के दौर से गुजर रहें हैं...
सबको अपनी मनवाने की जिद्द है..सारे वैचारिक युद्ध इसी के लिये लड़े जा रहे..
आज मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि आपको ईश्वर,अल्लाह,वाहे गुरु,और गाड ने विवेक दिया है तो संघ या हिंदुत्व को किसी वामपंथी से मत जानिये..
मैं जानता हूँ आप किसी आरएसएस या मोदी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन..इतना तय करने से पहले आप आइये दो चार बार किसी संघ के कार्यक्रम में बैठिये उनकी सुनिये.तब डिसाइड करिये...
हाँ आप वामपंथ को ही जानना चाहतें हैं तो किसी संघी से मत जानिये..पहले मार्क्स की जीवनी..दास कैपिटल और कम्युनिस्ट मैनूफेस्टों वर्तमान में वामपंथ का हाल और  उसकी प्रासंगिकता का अध्ययन करिये..
अगर इस्लाम को जानना चाहतें हैं तो किसी मुल्ला या बाबा जी के चक्कर में मत पड़ जाइये...सबसे पहले मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़िये..कुरआन,हदीस के साथ इस्लाम का इतिहास भूगोल और वर्तमान का अध्ययन करिये...
अगर अम्बेडकर को जानना है तो किसी दलित नेता या मण्डल टाइप किसी बीमार बुद्धिजीवी  से मत जानिये..तब बाबा साहब की किताबों और उनके जीवन दर्शन की तरफ रुख करिये....
क्योंकि  हम चूक जातें हैं अक्सर जब बिना जाने कुछ भी मान लेतें हैं..
बुद्ध ने एक जगह कहा.."मानों मत जानों."
जिस दिन हमने मानने से ज्यादा जानने पर जोर दिया उस दिन कुछ अंध विरोध और अंध भक्ति के भाव कम होंगे। वैचारिक प्रेम और  सहयोग शायद उसी दिन से शुरू होगा..
उसी दिन वैचारिक प्रतिरोध का तनाव कम होगा।

Friday, 8 April 2016

नव वर्ष की शुभकामना...

बड़ी गर्मी है..पारा 40 के ऊपर जाने को बेकरार  है..
माथे पर पसीना..सड़क पर भीड़..गलियों में गहमा-गहमी.
हर घर में घँटीयां टनटना रही हैं..कहीं शंख बज रहा..तो कहीं पाठ शुरू हो गया..तो कहीं पंडी जी नहीं आये..तो कहीं कलशा नहीं आया..हाय!

आज विश्वनाथ मन्दिर से सरक कर सब लोग  शीतला घाट की तरफ चले जा रहें हैं..
हर हाथ नारियल,फूल,माला चुनरी है.
कमला चाची और नेहा भाभी टाइप लोग हल्का सा घूंघट निकाल कर तेज धूप से खुद को बचा भी रही हैं..
कुछ भाभियां हल्का सा मुंह बनाकर सेल्फ़ी ले रहीं हैं..मानों पूजा करने से पहले ही फेसबुक अपडेट कर देंगी.."फिलिंग आध्यात्मिक  विथ चिंटु के पापा एट शीतला मन्दिर.."

लिजिये इधर लन्दन की जेनी,और सिडनी की साशा टाइप विदेसी बालिकाओं ने  आज पूजा करने के लिये साड़ी पहनने का साहसिक फैसला कर किया है.. हाथ में नारियल  लिये  खड़ी हैं..साड़ी और पल्लू बेचारे सम्भलने का नाम ही नहीं ले रहे हैं...
फिर भी  जेनी और साशा इस परेशानी में  बड़ी मासूमियत से मुस्कराये जातीं हैं..मानों आज ही साड़ी पहनने का कोई सार्टिफिकेट कोर्स करेंगी।
कमला चाची,और नेहा भाभी टाइप लोग
इस  पूरब से पश्चिम के अद्भुत मिलन में साड़ी की दुर्दशा देख हंसती भी हैं...लेकिन मजाक उड़ाने के उद्देश्य से नहीं।
इतने में लाइन में धक्का मुक्की शुरू हो जाती है...
"बोला बोला शीतला माई की जय...हर हर महादेव.."

इधर जिन लौंडों को नवरात्रि में ही भक्ति भावना जगती है.वो भी आज अपनी अपनी सोना,मोना,स्वीटी  के साथ हाथ पकड़ मन्दिर में घण्टी बजाने चलें जा रहें हैं..मानों आज सात फेरों के सातों वचन लेकर ही मानेंगे.
इनको देखते ही लग रहा आज राजश्री प्रोडक्शन अपनी किसी आने वाली फ़िल्म  की शूटिंग कर रहा है.....
देखो तो जरा..ये इतने नेक और संस्कारी प्रेमी..नज़र न लगे हे शीतला माई इनको..
"हाय! मेरी पिंकी...तुम कहाँ हो...."?

लिजिये अब जरा आगे आइये..यहाँ   चाय के पियक्कड़ों में देश दुनिया और राजनीति पर बेहिसाब चर्चा चलायमान है.. अभी-अभी लाली गुरु अखबार उठाकर फ़ेंक दिये हैं..
"सरवा इ हमका समझ में नहीं आ रहा कि अकलेसवा आ अरबिंदवा में कवन सबसे जादे पब्लिक को चूतिया समझता है."?
सरवा रोज दू-दू पन्ना का परचार..हद हो गया बे..कइसे आदमी अखबार पढ़ेगा...आधा अखबार परचार से भरा है..सरसों तेल आ जापानी तेल पढ़- पढ़  के तो मन अइसे ही उकता गया है..
अब इ  सब दू दू पेज क केजरीवाल आ अकलेस को कौन झेलेगा..?

अरे काल्ह  मोदिया जइसन इ सब परधान मंत्री बन जाएँ तब भर अखबार तो  इनके फ़ोटो ही छपेगा.. ." क रे?
कहो राइ जी..इ बतावा मरदे..इहे दू जना देश में मुख्यमंत्री हवें..आयं?..
हम चुप हैं...लाली गुरु एकदम गरम हैं...
हम उनको  अभी एतना ही बतायें हैं...
"एहमा अखबार का दोष नही चचा..25 लाख आपो देंगे आपका भी परचार छप जायेगा..."

लाली गुरु ये सुनकर भावुक हैं. हाय 25 लाख..एक दिन के लिये...सुबह कुछ घण्टे के लिये..
सोच रहे हैं..उनके पास 25 रुपया भी नहीं होगा अभी..आज ठेला तो लगाया ही नहीं....कहाँ से होगा.?
अखबार रख हमसे कहतें हैं...
"सब  सारन के  मोदीया से पनरह लाख चाहीं.....इ 25-25 लाख में आपन फ़ोटो छपवावत हवें...इ जनता के ही पइसा ह न"?..'
बगल में पल्टू नाव वाले ने चचा को पानी देकर  समझाइस दिया है.."शांत हो जा चचा..नेता आ राजनीति के बात ना करे के चाहीं सुबह-सुबह.
माथा खराब होला... ला अब..9 से आईपीएल शुरू होइ गुरु..एकदम चउचक..देखा लपालप चौका  छक्का...मजा ला..'

इधर अब टॉपिक चेंज..मोदी,केजरीवाल अखिलेश यादव को हटाकर सुस्ताने के लिये एक साइड में कर दिया गया है..अब आ गये हैं....शिखर धवनवा..विराट कोहलीया..धोनीया...सुरेश रैनवा...और किरिस गेलवा..
चौके छक्के लग रहे हैं..आउट,मैन ऑफ द मैच,सीरीज आ कैच लिया दिया जा रहा.

खिलाड़ियों के  नामों के साथ बनारस गालियों का अद्भुत मिश्रण वातावरण को अपनी बनारसी संस्कृति से परिचय करा रहा है..
हाँ..नवजोत सिंग सिध्दू को अपना क्रिकेट ज्ञान और कमेंट्री ज्ञान बढ़ाना हो तो रजा बनारस में जरूर आएं..यहाँ उनके पांच फेल दादा गुरु लोग उनका ऐसा बौद्धिक विकास करेंगे की हंसना भूल जाएंगे.

हम अपने क्रिकेट के प्रति अपनी उदासीनता को कोसते हैं. वही.बुर्जुवा हिप्पोक्रेसी।
इतने गाँव से माता जी का फोन आ गया.आवाज आती है..
"बबुआ पूजा पाठ किये?..मन्दिर गये..व्रत मत रहना .हम सब हैं न."
यहाँ पाठ बैठ गया..ललन चचा दियां ढकनी कलशा देकर गये थे.पंडी जी भी आये थे..इक्कीस में नहीं मान रहे थे तो एकावन दे दिये हैं.

माताजी के आवाज में उत्साह मिश्रित चिंता मुझे आश्वस्त करती है..
और भला क्यों न हो ये उत्साह ?.ये निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की उस लाखों माँ की आवाज है जो कोने-कोने में गेंहू,सरसों,जौ,चना देखकर खुश है..एक किसान की  सबसे बड़ी यही तो सम्पत्ति है..
आज अनाज से सबका घर भर रहा है..पवनी-पसारी को भी अनाज दिया गया है..सब खुश हैं...
आज गोबर से आँगन लीपा गया है..अब तो नया गेंहू से नवमी को पुजाई होगा। कलशा धरायेगा गीत गाया जायेगा...
माता जी रात हर जगेंगी आ गायेंगी..
"जवनी असिसिया मइया मलिया के दिहलु हो की उहे असिसिया ना
हमरा अतुल बाबू के दिहतु हो उहे असिसिया ना.."

लेकिन अतुल बाबू के भाग्य में कहाँ की ये गाते हुये सुन लें माँ को..उस दिन तो कहीं बाहर ही रहना है....

देखता हूँ  पेड़-पौधे हरे-हरे पत्तों से भर गयें हैं...प्रकृति में नवीनता आसानी से ये एहसास करा रही है कि नव वर्ष के मायने क्या होतें  हैं.?
आज  अस्तित्व ही एक नयी ऊर्जा और नयी आशा से भर गया है.

कहतें हैं सम्राट विक्रमादित्य ने  शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में जब ईसा से 57 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत शुरू किया था तब परम्परा के अनुसार अपने राज्य के सभी गरीबों के ऋण  को चुका दिया था..
लोग धन धान्य से भरपूर हो गये थे.
आज तो विक्रमी संवत सिर्फ एक धर्म विशेष से न होकर सम्पूर्ण विश्व के प्रकृति,खगोलीय सिद्धांत,ग्रह और नक्षत्रों से सम्बंधित हो गयी है..इनकी चाल और स्थिति पर ही हमारे दिन,साल और व्रत और त्यौहार हैं.
ये  भारतीय काल गणना सटीक होने के  साथ-साथ राष्ट्र की गौरव शाली परम्परा और ज्ञान का बोध भी कराती है..
कहीं आज ही के दिन आंध्र प्रदेश में उगादी,महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंध में चेती चाँद, और जम्मू-काश्मीर में नवरेह भी मनाया जाता  है....सबको बधाई पहुंचे....

आप सभी मित्रों को भी नवरात्रि.. और नव वर्ष विक्रम  संवत 2073 की हार्दिक शुभकामनाएं।

Wednesday, 6 April 2016

बिकती संवेदना...

आज संवेदना सिर्फ एक  प्रोडक्ट है और बेचने वाले होलसेलर मुंह बाये खड़े हैं..
ये होलसेलर हर जगह मौजूद हैं..पत्रकार,साहित्यकार,न्यूज चैनल,क्रांतिकारी,बुद्धिजीवी.और सबसे बड़े नेता..
सब अपने-अपने हिसाब से अपने लिये लाशों और आंसुओं के रंग  खोज रहे हैं..
सबकी मौत की अपनी बनी बनाई परिभाषा है।
छोटी मौत,बड़ी मौत,कम्युनल मौत,सेक्यूलर मौत,दलित मौत,सवर्ण मौत।

देखिये न..अब  जो रोहित वेमुला के लिये रोता है वो पूनम भारती के लिये नहीं रोता..
पूनम ने क्या बिगाड़ा था उनका..बेचारी ने  प्रेम किया था एक मुसलमान से..गर्भवती हुई..धोखा खाई..रेल से कटकर मर गयी..लेकिन अफ़सोस उसकी मौत पॉलिटिकल मैटीरियल नहीं है।
सो पूनम दिलीप मण्डल साब की बेटी बनने लायक नहीं है।
काश पूनम किसी ब्राह्मण भाजपाई के कारण मरी होती..आह!
देखते तब मण्डल साब रो रो कर अपनी छाती पर मुंग दल लेते...वेमुला बेटा के साथ अपनी एक सगी बेटी बना लेते..
हाँ  बेटा बनने लायक तो वो बेचारा सन्दीप भी नहीं,जिस दलित सन्दीप को वेमुला साब ने मार मार के अधमरा कर आईसीयू में पहुंचा दिया था। अफ़सोस!

इधर देखिये .याकूब के जनाजे में लाखों लोग  'मैं हूँ याकूब' को बुलन्द कर रहे थे...वो तंजीम की मौत पर चुप हैं....क्योंकि तंजीम साब ने इंडियन मुजाहिदीन और सीमी की कमर तोड़ दी थी...वो काफ़िर हुये.. और याकूब साब अल्लाह के नेक बन्दे थे.ईमान लाने वाले हुये।

हाँ   जो इकलाख के लिये पुरस्कार वापस करते हैं..उनको करोड़ो का चेक,बड़ा आलिशान घर देते हैं..वो नारंग की हत्या पर उनके घर न पहुंच कर आज अंतर्राष्ट्रीय नेता बनने  में व्यस्त हैं...

इधर जो भारत की बर्बादी का नारा देने वालों को जस्टिफाई कर उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बताते थे..वो कश्मीर में भारत माता की जय बोलने वालों को चुप-चाप पढ़ाई करने की सलाह दे रहे हैं...

जिस कन्हैया जी को  खड़े होकर अभी पेशाब करने का ढंग   न हो
उनमें तुरन्त युग नायक और विश्व विजेता की  छवि देख कर इतराने वाले .. एनआईटी के उन हिम्मती छात्रों के  बारे में कुछ नहीं कह रहे.
जिन्होंने आज जान और कैरियर को दाव पर लगाकर हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारो से तंग हो   तिरंगा फहरा दिया है।

क्या कहें....अरे आप अगर आदमी हैं..तो अपनी संवेदना को गिरवी मत रख   दिजिये.....इतना मत बाजारू बना दिजिये कि  आपका दुःख बिकाऊ हो जाय..खरीदार खरीदने  लगे.

अरे हिंसा हर किस्म  की एक समान होती है..मौत भी एक समान ही है..कारण अलग हो सकते हैं..लेकिन निंदा और दुःख सबके  लिये बराबर आप नहीं करते तो आप संवेदना बेच रहे हैं...वास्तव में आपको न रोहित वेमुला की जान से मतलब है..न इकलाख,तंजीम और याकूब से।

खैर..एनआईटी के उन हिम्मती छात्रों को सलाम करता हूँ..
भाई आप न आरएसएस के एजेंट हैं न भाजपा की सदस्यता लिये हैं.
आप हमारे और उन लाखों करोड़ों देश वासियो की तरह हैं जो सदैव देश प्रेम की भावना से संचालित होते हैं..
जाहिर सी बात है  सामने कोई हिन्दुस्तान मुर्दाबाद और टुकड़े-टुकड़े के नारे लगायेगा तो वो कभी हमसे सहन नहीं होगा..
कायदे से बुद्धिजीवी इस टाइप के लोगों को संघी कहतें हैं..कहने दिजिये..ये सवालों और तर्कों से  बचने का सबसे आसान सा तरीका है
उनका..
वैसे भी उनके पास हमेशा समस्या होती है समाधान नहीं।
लेकिन आप डरना मत भाई..ये सब आपके हाथ-पैर पर  लगे चोट..हम सबके हाथो पर भी लगे  हैं...थोड़ा-थोड़ा हम भी घायल हुये हैं।

आज सोशल मीडिया की ताकत ही है की  सीआरपीएफ आ गयी..स्मृति इरानी जी का मंत्रालय पहुंच  गया..
लेकिन दिक्कत कम कैसे होगी..
जहाँ डॉक्टर,दूकानदार,मेस वाला,चाय वाला.दर्जी,मोची, बस,ऑटो और सबसे बड़ा पुलिस प्रशासन  एक किस्म का हो वहाँ तो आप पर  खतरे रहेंगे ही।
जहाँ सैकड़ों सालों से नफरत के काटें बोयें गयें हों वहां दो साल की सरकार या दो दिन की सरकार कुछ नहीं कर सकती..
न ही सरकार प्रत्येक विद्यार्थी के सोने,जागने पढ़ने और घूमने पर पहरेदारी कर सकती है।
आप अपना ख्याल रखना भाई...
अपनी आवाज उठाये रखना..
यकीनन आपने एक क्रांतिकारी और बड़ा काम किया है..
देश को आप पर गर्व है..
हम सब साथ हैं...

यहाँ हम किसी पार्टी के बीके हुये दल्ले नहीं...न ही पॉलिटिक्स ज्वाइन करना है..
हम तो वही कहेंगे और वही लिखेंगे जो देश हित में दिल को सच  लगेगा।
संवेदना बेचने और खरीदने वाले अपना काम करें..
हमें तो ये सच्चाई स्वीकार करने में ये दिक्कत है नही कि आपकी  चोट के पीछे केंद्र सरकार   की घोर लापारवाही  का  हाथ है.
जो मुद्दा कल से ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा हो वहां मंत्रालय के लोग और अर्धसैनिक बल तब पहुंचे जब चालीस लोग चोट खाकर कराह चुके हों..
ये सोचने वाली बात है..

हाँ लेकिन एक झटके में पीडीपी और बीजेपी के गठबंधन को जो कोस रहे हैं..वो भी धैर्य विहीन लोग हैं..
लेकिन शुक्र है आप अपने नेता और पार्टी की आलोचना तो करते हैं.आप बुद्धिजीवियों की तरह अपने कुकर्मों पर शब्द जाल नहीं डालते..
ये बड़ी अच्छी बात है.
लेकिन धैर्य नहीं खोना है...विपक्ष के बहकावे में मत आइये..उनके पास मुद्दों का घोर अभाव है..
उनके अनुसार अब काश्मीर में सबको काट दिया जाय..या सभी काश्मीरीयों को पाकिस्तान में फेंकवा दिया जाये....ऐसा कैसे उचित है भाई..
राजनीति के दो ध्रुव एक साथ खड़े हैं..ये भारतीय लोकतन्त्र के कुछ अच्छे अध्यायों में से एक है..आज इतना बदला कल और कुछ बदलेगा..भगवान करें आने वाला कल और अच्छा हो..
बस सकारात्मकता  बनाये रखना है.

वहां माहौल सामान्य हो..सबकी पढ़ाई शुरु हो..
घायल शीघ्र स्वस्थ हों.यही कामना है।
       

             |जय हिन्द|

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