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Monday, 16 November 2015

करब छठ के बरतिया.......

गाय के गोबर से घर लीपा गया...अकिला फुआ   साड़ी का पल्लू सीधा करके गातीं हैं..."शुकवा जो मरबो घेवद से..." घर आँगन दुआर  से एक  दिव्य सुगन्ध आ रही है। सेव सन्तरा केला अमरुद नारियल डलिया  दउरा में सज गया है।उधर आजी ठेकुआ छान रहीं हैं।
बाप रे सबेरे से खेदन बो भौजी हमारी केतना परसान हैं आज तो बहुते काम करना है....अभी तो अलता से गोड़ रँगना है...भौजी हमारी नए जमाने की ती हैं नहीं कि आइब्रो सेट करवाएं...कौन बार नोचवाने के लिए तीस रुपया देने जाए...केतना दुखाता है...आज त भौजी गवना वाली पियरकी साड़ी पेहनेंगी..लाल लाल चूड़ी बिंदी आ भर मांग सेनुर..नज़र न लगे भौजी को।
उधर चींटूआ रो  रो कर सेव सन्तरा मांग रहा है..भौजी उसे समझाती हैं.."अरे नालायक सुबह खाया जाता है रे..." चींटूआ काली माई डीह बाबा से मनाता है जल्दी सुबह हो। खेदन उसे 2 रुपिया देकर भेजते है.."जा बबुआ छुरछुरिया खरीद लो."..भौजी बबुआ का नज़र उतारती हैं...केतना मासूम है अभी..छठ माई जैसे एक बबुआ दी हैं वैसे ही एक बबुनी दे देंगी तो अगले साल कोसी भरेंगे आ घाट पर बाजा बजवायेंगे।
लिजिए इधर चार साल बाद बबिता मीना रीना आ पिंकी  छठ में नइहर आई हैं... आज तो सब सखी सहेली घाट पर मिलेंगी..काल्ह से ही मीना बबिता को चिढ़ा रही...."केतना मोटा गई है रे..जीजा जी आटा चक्की चलाते हैं क्या."?..सब हंसते हैं..
इधर गाँव का गुड्डू दीवाना भी मने मन खुश है...उसकी मासूका पिंकी आज दू साल बा गाँव आई है...आय हाय कैसे नज़र मिला पायेगा पिंकी से...सूना है उसका गोड़ भारी है...मने उसका लइका उसे मामा कहेगा...मर न जाये गुड़ुआ ई सुनने से पहले...अभी भी परेम फफाता  उसका...रघु राय के बगइचा में पेयार का पहला चुम्मा पिंकी कैसे भूल सकती है।
खैर अभी  गाँव के कुछ लौंडे छठ घाट सजा रहे हैं...बड़ा कम्पटीशन है भाई...बगल वाले गांव के घाट से...उ तीस ठे हार्न बजा रहे है..इ पैंतीस ठे... आज शारदा सिन्हा जी का दिन है..उन्हीं का गीत सुबह से बज रहा।
बार बार कोई संचालन करना सिख रहा है...
सुबह से 521 बार कह चुका "नबयुवक मंगल दल आदर्श छठ पूजा समिति आपका हार्दिक स्वागत अभिनंदन करती है।"
क्या करे उत्साह जो है...सब कितना खुश हैं
गर्व होता है अपनी परम्परा पर..ये त्यौहार न रहे तो जीवन कितना बेसुरा बेताला हो....
यही आकर तो उमंग उत्साह और आनन्द से भर  देते हैं..आदमी नया हो जाता है।
आज सुबह देख रहा एक jnu छाप कामरेड ने छठ को मूर्खता का महापर्व कह डाला है... शायद गाँजा ज्यादा चढ़ गया है कमरेड का..बौद्धिकता फफा रही है....क्रांति कर रहें हैं.. बेचारे खुश भी नहीं हो सकते...तरस आता है इन पर..कितने अस्तित्व से कटे हैं..और कटते ही जा रहे..जरा सा खुश भी नहीं हो सकते.... छठ माई इनको सद्बुद्धि दें।
बस आज इस गुलाबी नगर में बैठकर के ये स्टेटस लिखते वक्त घर की याद आ रही है...मन उदास है...काश घर होता.सुबह सुबह माँ का फोन आया था..उहो उदास थी...क्या करें..हम कलाकारों के साथ यही ट्रेजडी है त्यौहार में कभी घर नहीं रह पाते।
हाँ आप अपने घर हों तो हंसी ख़ुशी के साथ इस महापर्व को आनंद पूर्वक मनाएं।
आप सबको छठ की हार्दिक शुभकामनाएं।

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