Sunday 3 April 2016

आत्महत्या और आत्मक्रांति....

मेरे एक प्रिय मित्र हैं ..मने बहुते पढ़ाकू.तेजू खान के नाना टाइप.अपने विषय के विद्वान..अभी बीएचयू में पढ़ते हैं, जेएनयू सपना है उनका.
जरूरत से ज्यादा बुद्धिजीवी हैं ..ज्ञान का बोझ सर पर लादे रहते हैं.
तमाम बुद्धिजीवियों की तरह दिन रात वैचारिक क्रान्ति में तल्लीन रहते हैं..उठते,बैठते,जागते,सोते,चाय पीते या खाना खाते..बस दिन भर..
"ये मार्क्स,वो लेनिन,हाय चे,वहाँ अम्बेडकर और यहाँ लोहिया,उधर मुक्तिबोध"..

ये अलग बात है की इतनी क्रान्ति करने के बाद  अपने  पिताजी से चार गाली रोज सुनते हैं.
हमने भी मजा लेने के लिये उनके पिताजी का  नाम चे ग्वेरा रख दिया है..
सो चिढ़ते हैं बहुत..हास-परिहास में गरियाते भी हैं।
कभी कभी सभी बुद्धिजीवीयों की तरह पूर्वाग्रह से इतने ग्रस्त हो जातें हैं कि   उनसे तर्क करने वाला उनको मूर्ख और संघी लगने लगता है.
हाँ लेकिन बहुत ज्यादा कट्टर भी नहीं हैं.
इसलिये तीन साल से प्रिय मित्र हैं.मने करेजा टाइप...
इधर मिलना कम ही हो पाता है,लेकिन आज तक दोस्ती के बीच में वैचारिक भिन्नता आड़े नहीं आयी कभी. न ही आयेगी.

महिने दिन पहले  किसी दूसरे मित्र से पता चला कि कॉमरेड बहुत परेशान हैं. .यहां तक कि सुसाइड करने तक की बात कर रहे...
मैं ये सब जाना तो बड़ा परेशान हुआ..कोई सम्पर्क भी नही हुआ..न ही कई दिन से  कोई संवाद....
बेचारे 'काम-रेड' कथा पढ़ने के बाद से फेसबुक पर ब्लॉक किये हुये हैं ...
व्हाट्स पर भी कोई जबाब नहीं देते..
थक हार के मैंने फोन किया कई बार..लेकिन वो भी स्वीच आफ।

फिर एक म्यूच्यूअल फ्रेंड 'झा जी पटना वाले' को फोन किया तो पता चला कल रात को उनकी  गरलसखी से क्रांति टाइप झगड़ा हो गया है.. सो गुस्से में बेचारे मोबाइल तोड़ दिये हैं..
मुंह से निकला...हाय!..
पता चला रात को कि उनके रूम पार्टनर के नम्बर पर काल कर लेने से बात हो जायेगी।

तो साहेब रात को 11 बजे फोन किया..
आवाज आई."कहाँ हो अतुल ?
संघी कहीं के..मतलबी आदमी..दोस्त के नाम पर कलंक..बड़े लेखक हो गये हो...तुम कुछ नही हो अभी..इतना घमण्ड...सुधर जावो..ब्लाह ब्लाह"
हम याचना पूर्वक कहे..."शान्त कॉमरेड शान्त"
का भइल की एतना गरम हो..चे ग्वेरा कुछ कह दिये क्या"?

उधर से दो मिनट बाद आवाज आई..
"हाँ बे..बड़ी परेशान हूँ यार. आज एक हफ्ते से. कई  दिन से नींद नहीं आ रही..सर पर लग रहा हजारो टन का बोझ रखा है..सर दर्द और नींद की गोली खा खा कर बुरा हाल है"..
पिताजी से झगड़ा हुआ..गर्लफ्रेंड का प्रवचन सुन मन कर रहा उसका गला दबा दूँ...माताजी का बकवास लेक्चर सुनकर मन करता है,दो थप्पड़ दूँ उनको"
पता न यार.. ये कैसे लोग मेरे माँ बाप हो गये..जाहिल एकदम..कुछ समझते नहीं"
साला किसी से बात करने का मन नही कर रहा.सब गंवार पड़े हुये हैं यहाँ...दुनिया एकदम रहने लायक नहीं रही।
एकदम माथा खराब कर देते हैं।
साला मन कर रहा सुसाइड कर लूँ"?

हम ये सब सुनकर हँसे...बुझ गये की ये ज्ञान का भूत कपार पकड़ लिया है...आदमी अपने शर्तों पर जीना चाहता है।
हम  धीरे से कहे..."शान्त हो जावो..बस भी करो.."
बस..बेचारे रोने की मुद्रा में आ गये..."
"तुम ही बतावो अतुल मैं गलत हूँ.?.इतने दिन से जानते हो मुझे..मैं पढ़ता नहीं?.किस लड़की पर लाइन मारता हूँ यार..माँ बाप अलग डांट रहे और वो चुड़ैल अलग."
हम कहे ." बिलकुल नही बे तुम एकदम सही हो"
लेकिन अभी तो सो जावो.तुम्हें बहुत गहरी नींद की जरूरत है..
सुबह मैं लंका आऊंगा तब मिल कर सारी बातें  होंगी"

नींद का नाम लेते ही मित्र गरमाये..
"अबे नीद आएगी तब न सोऊंगा.दवाई खाने का मन नही कर रहा."
मैंने कहा..."एक काम करोगे?..तुरन्त बहुत गहरी नीद आयेगी....बिना दवा के. लेकिन जैसे बताऊंगा करोगे तब..
बोले "क्या.. ?हम कहे."इसी नम्बर पर एक mp3 भेजता हूँ. बीस मिनट का..उसे जरा सुनो..

लो MP3 का नाम सुनकर उधर से और ज्यादा  खिसियाकर बोले
"क्या बकवास करने लगे बे."?
दवाई खाने से नीद नहीं आ रही तो तुम्हारे  शास्त्रीय संगीत सुनने से नींद आ जायेगी..रहने  दो"

हम कहे.."शान्त हो जा और whats app पर आवो"
पार्टनर से कहो आज भर तो मोबाइल  दे दे।

तो मरता क्या न करता. बेचारे थक हारके whats app पर आये..मैंने उनको mp3 भेज दिया और पूछा?
"ये बता अभी तुम साँस कहाँ से ले रहे हो?
बोले "क्या मतलब ?
अबे संघी .अपनी बुद्धि अपने पास रख."
हम कहे..सीरियस हूँ..सच बता..
"साँस तुम्हारी कहाँ से चल रही.."?
बोले "नहीं समझ पा  रहा तुम कह क्या रहे हो"?..
मैंने कहा.."देखो..अपने नाभि पर ध्यान करो और प्रयास करो की साँस वहां से चले और एक लय में चले..मैं कन्फर्म हूँ की तुम्हारी साँस अभी पेट के ऊपर से चल रही है..और बहुत ही तेज चल रही..."

कुछ देर बाद बोले .."हाँ यार एकदम सही कहे"
हम आगे समझाये..
'जिस आदमी को पता नहीं की वो साँस कब ले रहा कब छोड़ रहा उसे कभी गहरी नींद नहीं आयेगी....ये नोट कर लो..
ये जो प्राण वायु है न ये अद्भुत है...ये अगर सध जाय तो समझ लो तुम्हें शान्त होने की कला आ गयी.तुम बुद्ध हो गये...तब न मन में भय आएगा न तनाव न कोई विकार..तुम अपने मूलाधार से जुड़ जावोगे..

वो कहे "प्रवचन बाद में देना..ये बतावो आज नींद कैसे आयेगी..."?
हमने समझाया..
"एक काम करो..बस बिस्तर पर लेट जाना ..ये सितार का आलाप है..इसे आस पास रख देना....हाथ पैर साँस ढीला छोड़ देना एकदम.. आँख बन्द..शवासन की मुद्रा में आ जाना.और आज्ञा चक्र पर ध्यान करते हुये  जैसे किसी बच्चे को डांटते हैं वैसे ही  खूब जोर से दिमाग को डाँटना.  "ये सब बकवास  सोचना बन्द करो और तुरन्त सो जावो "
अपने पूरे शरीर से  बार बार कहना कि 'मुझे नींद आ रही सोना है अब..हाथ से पैर से पेट से साँस से सबसे विनती करना की सो जावो.."
इस पुरे प्रक्रिया में एक बात का ध्यान रहे की साँस हमेशा एक लय में नाभि से चले..
सुबह उठकर बताना।

सुबह तो नहीं बताये... दोपहर भी नहीं बताये...मुझे बड़ी चिंता हुई..अपने मेडीटेशन के ज्ञान पर भयंकर सन्देह हुआ...मन में आया।
"काहें दूसरे को सिखाने लगते हैं अतुल बाबू"

लेकिन शाम को 4  बजे फोन आया उनका...आवाज में स्फूर्ति और ताजगी झलक रही थी. एकदम उच्छास की मुद्रा में आकर बोले..
"कहाँ हो अतुल भाई..हमार.करेजा.."
हम कहे..वाह कॉमरेड केजरीवाल..अब रंग न बदलो..उसी अंदाज में बात करो जिस अंदाज में कल कर रहे थे"
वो हँसे..खूब हँसे...क्या यार दोस्ती में ये सब चलता है..पॉलिटिक्स न करो"
यार 11  बजे सोकर उठा बे..फिर सोया तो 2 बजे उठा...इतनी अच्छी नींद तो कभी नहीं आई यार...याद है की तीन या चार में जब थे तो ऐसे पढ़ते-पढ़ते सो जाते थे..वो वाला अनुभव आज मिला है यार..गजब.."

शाम को आये तो जबरदस्ती संकट मोचन मन्दिर ले गया..
कहने लगे तुम संघी बनाना चाहते हो..मैंने कहा बिलकुल नहीं..हम बस घूमने की दृष्टि से चलते
हैं..तुम मान कर चलो की नास्तिक ही रहोगे..
हाँ लेकिन कुछ मिनट तक भूल जाना कि
"धर्म अफीम है..
पूजा,पाठ,प्रसाद और हाथ जोड़ वरदान मांगने के लिये नहीं लाया तुमको..
क्योंकि खुद मैं  ये सब ज्यादा नही करता.
यहाँ तो कुछ और बात है..जो बहुत दिव्य है..
बस मार्क्स लेनिन को किनारे कर ये समझ के यहाँ बैठो की तुम किसी ऊर्जा को देखने आये हो.प्रसाद चढ़ाने नहीं मन्नत माँगने नहीं।
बेचारे जैसे तैसे बैठे..
कुछ देर बाद हमने  एक बात बताया..
"मित्र इस बाबा की मूर्ति की तरफ से एक बड़ी सकारात्मक ऊर्जा निकल रही है..सतत..इतनी ज्यादा प्रवाहमान ऊर्जा बनारस के किसी मन्दिर में नहीं।
क्या तुम महसूस कर रहे हो?..एक आभामयी और दिव्यता का भाव आ रहा न हमारी ओर..?
लग रहा न की हम किसी पॉजिटिव वातावरण में आ गये हैं..एक आशावादी माहौल में।

वो कुछ देर बाद बोले "हाँ यार"

फिर  हमने उनको समझाया.."
निंदा हमें रोक देती है भाई. हम किस वाइब्रेशन और किस वातवरण में हैं इसका हमारे चित्त पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है....
देखो मार्क्स लेनिन और अम्बेड़कर को पढ़ना बहुत जरूरी है..हर आदमी को जरूर पढ़ना चाहिये.क्योंकि सबने मनुष्यता को ऊपर उठाने के लिये अपने अपने हिसाब से प्रयास किया है...राहें अलग अलग हैं लेकिन मंज़िल एक हैं...
बस किसी एक राह में रुक नहीं जाना चाहिये..आगे और दुनिया है।
देखो तो ..."बुद्ध हैं.. स्वामी विवेकानंद.महर्षि दयानंद सरस्वती..,ओशो और जे कृष्णमूर्ति जैसे आत्मक्रांति के नायक..
आचार्य विनोबा भावे. महर्षि अरविन्द और महेश योगी जैसे तमाम लोग हैं..इनसे भी जरूर मिलना चाहिये..."

शुक्र है..मित्र को बात समझ में आई है....आजकल सूर्य नमस्कार करते हैं..विपस्सयना की चर्चा करते हैं....खूब खुश हैं..डाइनेमिक मेडिटेशन सिख रहे.कह रहे की बांसुरी सिखना है अतुल भाई....
सब कुछ बन्द कर ओशो का 'ध्यान सूत्र' पढ़ रहे..
आजकल मार्क्स को जरूर कोट करते हैं..लेकिन स्वामी विवेकानंद के साथ.
मैं बहुत खुश हूँ।

लेकिन बड़ी चिंता होती है..आज जड़ बुद्धिजीविता का दौर है..तमाम महापुरुषों पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है..
सब उनके अनुसार अपनी मनवाना चाहतें हैं...
सब अपने को सही और सामने वाले को मूर्ख समझते हैं...

लेकिन ऐसे लोग भले विद्वान हो जायँ..मैं इन्हें दो कौड़ी का समझता हूँ...
ये बेहोशी के हालत में हैं..वैचारिक हिटलर...अपना थोपना चाहतें हैं.
ये चेतना के सबसे निम्न तल पर जी रहें हैं।

और यही क्या आज गारण्टी के साथ कह सकता हूँ की अधिकतर लोग इतने ज्यादा बेहोशी के हालात में जी रहे की उन्हें पता नही की वो क्या कर रहे हैं...वो खाना खा रहे हैं और फ़िल्म के बारे में सोच रहें हैं...फ़िल्म देख रहे हैं खाना के बारे में सोच रहे हैं..जा कहीं और रहे हैं पहुंच कहीं और जा रहे हैं..बीबी के साथ सो रहे और आफिस वाली के सपने देख़ रहे हैं..
कहने को चुप हैं लेकिन दिमाग में भाषण पर भाषण दिये जा रहे...बात किसी और कर रहे सोच किसी और के बारे में रहे।
मन में लगातार पागलों की भांति बोले जा रहे।
गलाकाट प्रतिस्पर्धा में खुद को इतना मार दियें  हैं की उन्हें मोदी ओबामा की खबर तो खूब है लेकिन अपने बाल बच्चे की नहीं।
और जब इस  बेहोशी की दुनिया के बाद हकीकत की दुनिया के दुःखों से सामना होता है तो संसार असार नज़र आता है...
मौत का विकल्प दिखाई देता है।

इसके पीछे आज हमारी शिक्षा पद्धति भी कम जिम्मेदार नहीं...वो बस पैसे कमाने की मशीन तो बना देती है..बुद्धिजीवी भी बना देती है लेकिन मनुष्य नहीं...ये नहीं बताती की जीवन में शान्त कैसे हुआ जाय..तनाव से चिंता से..दुःख से..काम के प्रकोप से मुक्ति कैसे पाई जाय.आनंद कैसे महसूस किया जाय...आत्म हत्या के विचार मन में आये तो क्या किया जाय...?

और इस समस्या का इलाज मार्क्स लेनिन के पास नहीं..तब तो दौड़कर आना होगा बुद्ध के पास पतंजलि के पास...

इसलिये इस  संवेदनहीन हो गये  4g युग में
अगर  हमें संवेदना के बीज बोना है तो आने वाली पीढ़ी को हमें सृजनशील बनाना पड़ेगा..
ये ध्यान में रखना होगा कि
वो हनी सिंह मीका को सुने लेकिन पंडित शिवकुमार शर्मा को न भूल जाये...वो मार्क्स लेनिन पढ़े लेकिन विवेकानंद और दयानंद सरस्वती को भी पढ़े..
वो wwf देखे लेकिन सुबह योग और ध्यान करना न भूले..
एंग्री बर्ड दिन भर खेले लेकिन कभी किसी चिड़िया को दाना पानी भी तो खिलाये।
वो फेसबुक whats app चलाये लेकिन एक कविता लिखे और एक गीत भी तो गाये..कोई चित्र भी तो बनाये..

मेरा मानना है कि जिस व्यक्ति ने मनुष्यता के पक्ष में दो कविता लिख लिया वो किसी की हत्या नहीं कर सकता..
जिसने प्यार और दर्द के चन्द गीत गा लिये वह बलात्कार नहीं कर सकता..
जिसने जीवन और प्रकृति  के कुछ चित्र बना लिये..वह जीवन और प्रकृति को नष्ट नहीं कर सकता.










3 comments:

  1. बहुत खूबसूरत लेख
    सबके लिए ज़रूरी औषधि की तरह
    अतुल भाई लगे रहिये

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  2. बहुत सुन्दर अतुलजी, इसी तरह प्रेरित करते रहिये।

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  3. बहुत सुन्दर अतुलजी, इसी तरह प्रेरित करते रहिये।

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