हजार हजार लोग एक साथ कत्थक कर रहे, जब एक साथ हाथ उठतें हैं ,और एक साथ घुंघरू बजतें हैं ,तो लगता है मानों लय की परिभाषा से आज हमारा साक्षात्कार हो रहा है.....
कहीं एक साथ भरतनाट्यम..तो कहीं हजारों लोग कूचीपूड़ी करते हैं, और जब कहीं पखावज पर एक साथ दीं दीं का बोल निकलता है,तो चित्त आनायास ही शांत होने लगता है....
दक्षिण के मन्दिरों में बजने वाले नादस्वरम से निकली आवाज वातावरण को इतना शुद्ध कर देती है कि लगता है वर्षों से जमा हुआ चित्त का विषाद आज खतम हो रहा है..
कहीं हजारों आदिवासी नाच रहे हैं तो लगता है मानों वो कह रहें हों कि वो सबसे गरीब नहीं, वो नृत्य,उत्सव और आनंद के सबसे बड़े राजा हैं.
उसके तुरन्त बाद गरबा और घूमर पेश कर रहे हजारों कलाकार जब एक साथ प्रस्तुति दे रहे होंतें हैं ,तो ऐसा लगता है मानों ये दुनिया को बता रहें हों कि भारत दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी थी और रहेगी।
तब तक अर्जेंटीना की विश्व बिख्यात गायिका पैट्रीशिया सोसा "श्री राम जय राम जय जय जय राम" गाने लगतीं हैं , और उपस्थित लाखों लाख लोग धर्म,मजहब,देश,प्रांत की दीवार गिराकार राम धुन के साथ एकाकार हो जातें हैं..
फिर क्या यहाँ यहाँ फेसबुक पर बैठे कुछ बुद्धिजीवी राग निंदा का आलाप करने लगतें हैं..
उनके अंग विशेष में इतनी सुलगन होने लगती है की ये बारिष को देखकर खुश होने लगतें हैं।
इनके सेक्यूलरिज्म नामक शब्द को बड़ा गहरा आघात लगता है...जब देखतें हैं कि रामधुन पर झूमने वालों में तमाम मुश्लिम देशों के लोग हैं...न जाने कितने ईसाई और और न जाने कितने धर्म के लोग..
इनकी बौखलाहट बढ़ती जाती है....ये उलुल जुलूल तर्क देने लगतें हैं..
इनके मानसिक विक्षिप्तता से घनघोर परिचय होता है....इनकी मानें तो कार्यक्रम न हुआ होता तो देश से गरीबी मिट गयी होती...यमुना का पानी बिसलेरी जैसा इतना स्वच्छ हो गया होता कि ये उसमें रोज नहाकर दिन रात निंदा करते..
मैं कभी कभी हैरान हो जाता हूँ..और सोचने लगता हूँ कि आदमी इतना निगेटिव कैसे हो जाता है...
अरे कौन अभागा होगा जो एक साथ हजारों कलाकारों को तबला बजाते..नाचते,गाते,पखावज,घट्टम,बांसुरी, के साथ देखकर प्रसन्न न हो..उसमें आनंद लेने की बजाय उसमें दोष निकालने लगे...जरूर कहीं न कहीं इनके चेतना के स्तर पर समस्या है....ये खुद नही समझ रहे की ये क्या कर रहे हैं...
जरा इन बौद्धिक विलासियों से पूछा जाय की अरे कई सालों से इमाम बुखारी ने जामा मस्जिद का कई करोड़ रुपया का बिल नहीं भरा..उसका हिसाब क्यों नहीं लेते भाई आप?
आज हजारों गरीब मुसलमान सड़क पर साइकिल का पंचर साट रहे हैं, कम से कम उनके घर तो इस पैसे से संवर गया होता।
लेकिन ये बड़े सेक्यूलर किस्म के लोग हैं...सलेक्टिव विरोध है इनका..... इनकी छोड़िये।
जरा उन एनजीटी के अध्यक्ष और कांग्रेस की अश्लील उपज माननीय स्वतंत्र कुमार जी से पूछिये की अरे साब आप यमुना प्रदूषण की चिंता में मरे जा रहें हैं...अब तो श्री श्री ने आस पास के सभी लोगों को सौर ऊर्जा से समृद्ध करने का वादा कर दिया है.....
लेकिन आपको अपने मानसिक प्रदूषण के एकाएक बढ़ जाने का कोई अंदाजा है?.. जिस ला इंटर्न मासूम लड़की का आपने यौन शोषण किया है उसका न्याय कब करेंगे सर जी..यमुना का प्रदूषण खतम आप बाद में करियेगा।
मुझे कई बार लगता है कि इन जैसे लोगों का आजतक वस चला होता तो हम पाषाण युग में जी रहे होते...
साईकिल से मोटर साईकिल और बस से प्लेन और रेलवे से मेट्रो में कभी सफर न कर पाते..
हमारा भौतिक विकास कभी न हो पाता।
आज हमारे गीत संगीत,योग,ध्यान,प्राणायाम,और आयुर्वेद का दुनिया में डंका बज रहा तो इतनी जलन क्यों हो रही।?
लाखो हजारों करोड़ का 2g, जीजा जी,कामनवेल्थ खेलने वाले लोग इस एक प्रोग्राम से इतने परेशान क्यों हैं।?
अरे आज ऐसे कई समारोह की सख्त जरूरत है... गाँव-गाँव,स्कूल-स्कूल,देश-देश योग और ध्यान हो..
करांची में सैकड़ों नहीं लाखों लोग योग करें.अमेरिका और जापान का हर नागरिक शास्त्रीय संगीत सीखे..सीरिया में भरतनाट्यम सिखाया जाये..और आस्ट्रेलिया में आदिवासी नृत्य पढ़ाया जाये
ताकि सबके चेतना का स्तर ऊपर जाये...सभी हाथ बांसुरी बजायें और नृत्य करते हुये प्रेम का कोई गीत गायें....तभी विश्व बन्धुत्व और शान्ति का सपना साकार होगा। और ये माद्दा सिर्फ हममें हैं।
ये नहीं जानते कि इनके आयातित सेक्युलरिज्म से सैकड़ों साल पहले ही "सर्व धर्म सम भाव".सर्वे भवन्तु सुखीनः और वैसुधैव कुटुम्बकम से दुनिया का परिचय हमने कराया है।
Saturday, 12 March 2016
इस सेक्यूलरिज्म की जरूरत नहीं..
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very informative post for me as I am always looking for new content that can help me and my knowledge grow better.
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