Friday 5 February 2016

असली आम आदमी...

बनारस का हृदय स्थल गोदोवलिया चौराहा...थोड़ा सा आगे घाट कि तरफ बढ़ने पर फुटपाथ पर दुकानों कि लम्बी लाइन...उन्हीं दुकानों में खोई सी एक चाय  कि दूकान..चाय वाले पक्के बनारसी हैं.जितना रिश्ता उनका चाय से है उससे पुराना रिश्ता उनका विविध भारती से....उनके ठीक सामने एक पान कि दूकान है..जहाँ चाय और पान के बीच उठने वाले कहकहों के शोर में बड़े बड़े दुःख और संताप  अपने घूटने टेक देतें हैं........कहतें हैं  कभी  कि चाय वाले  दद्दा को ससुराल की तरफ से रेडियो दहेज में मिला था..और जब दद्दा सुहाग रात में रेडियो पर सनीमा का गाना बजाये तो उनकी मेहरारू खिसियां गयीं और रूठ के मुंह फेर लिया...दादा को कहीं से पता चला था कि उनकी नयी नवेली दुल्हन को चाय पीना बहुते पसन्द है....दादा रेडियो की आवाज को धीमा कर अपनी  मेहरारू के जमाल-ए-रोशन की तरफ मुखातिब हुए और धीरे से कहा... कहो  चाय पीबू?तब्बे हम आगे क  कार्यक्रम शुरु करम.....कहतें हैं  कि इस कार्यक्रम कि सूचना सुबह जब उनके हम उम्र बनारसी लौंडों को मिली ,तब चारो तरफ हंसी की आसमानी फुलझड़ियाँ छूट रहीं थीं...तबसे दादा का चाय और रेडियो प्रेम जगत प्रसिद्ग है....जून में  दादा  भूल जातें हैं कि पंखा चल रहा है या नहीं....तर तर चूते पसीने  को पोछने से ज्यादा उन्हें इस बात कि चिंता रहती है कि उनका ग्राहक देर तक खड़ा न रहे...दिसम्बर  जनवरी की ठण्ड  में जब शीतलहरी अपने चरम पर होती है,भीड़ हटने का नाम नहीं लेती है..तब भी दादा   भूल जातें हैं कि वो जूता पहने हैं या नहीं... ... वो चाय बनाकर देने और पिलाने में बेसुध खोये रहतें हैं....लगता ही नहीं कि देश दुनिया की कोई खबर है उन्हें....बीच में रेडियो पर विविध भारती पर कोई साठ के दशक का तराना गूंजता है....दादा अदरक कूँचते हुये गायक की आवाज से अपनी आवाज मिला देतें हैं......."सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है"......
उनके आगे तमाम रेहड़ी पर चप्पल,बैग,रिंग, 100 रुपया में 3 शर्ट बेचने वाले..फुल्की,चाट,छोले,इडली डोसा उत्तपम..चूड़ी,बिंदी वालों की दुकान.ऑटो चलाने और रिक्शा चलाकर सुस्ताने वालों की लम्बी लाइने हैं...सबके चेहरे दिन बढ़ने के साथ मुरझा जातें हैं..इन्हें देखकर दया ही आती है...न खाने की चिंता न पहनने की..पुलिस दरोगा के डर से ज्यादा इन्हें  ग्राहक और अधिक से अधिक सामान  बेचने कि चिंता सताती है...दुकानदारी ठीक हुई तो बढ़िया वरना थोड़ा भगवान,थोड़ा ग्राहक,थोड़ा पुलिस और थोडा सा खुद को गरियाकर घर चले आतें हैं।
बीते इकत्तीस तारीख कल इन्हीं रेहड़ी वाले दुकानदारों में से किसी एक के बेटी की शादी थी।...मैं जहाँ रहता हूँ ठीक उसी के बगल में एक मद्रासी धर्मशाला में सब लोग जमा थे..
शाम को कहीं से आ रहा था तो देखा...वही सब रिक्शा ऑटो और चाट फुल्की बैग गमछा बेचने वाले सूट बूट और चमचमाते जूता में  गजब लग रहे हैं...
आज इन्हें देखकर यकीन नहीं होता की ये रेहड़ी पर बीस रूपया में मोजा और पांच रुपया में रिंग बेचते हैं..और आज जब सबकी बेटी की इज्जत का सवाल है तब सजे संवरे पान घुलाकर मुस्कराते बरात के स्वागत में खड़े हैं।
मैं सोच रहा था एक आम आदमी अपने  इन्हीं ख़ास अवसरों पर खुश हो पाता है न...जीवन में समय से कदम ताल करने के चक्कर में पहनने ओढ़ने की चिंता कब समाप्त हो जाती है उसे खुद पता नहीं चलता.....लेकिन जब इज्जत का सवाल आता है तब वो कर्जा मांग के कपड़ा खरीदे या दूसरे से उधार मांगकर जूता लेकिन अपनी  प्रतिष्ठा की रक्षा जरूर करता है.....
तभी तो 5 साल  हमेशा टूटी चप्पल पहनने  वाले दादा आज बाटा का चमचमाता जूता पहने मुस्करा रहे हैं....
उनके चेहरे पर फैली मुस्कान को देखकर लगता है कि ये असली आम आदमी का असली चेहरा है..
ये चेहरा पीवीआर के महंगे गैलरी से आई फोन पर ट्वीटीयाने वाले और लाखों की सेलरी पाकर.. एक प्रशासनिक अधिकारी के पति कहलाने वाले माननीय अरविन्द केजरीवाल जी से  बिलकुल नहीं मिलता जो आम आदमी होने का फरेब करते हुए किसी देश के राष्ट्रपति से चप्पल पहनकर मिलने पहुंच जातें हैं।
इस पर  बहस तो चलती रहनी चाहिए कि असली आम आदमी कौन है...?

3 comments:

  1. Dilli waale keh rhe hain chalo Kejriwaal aakhir kuch to kr rha hai. Sarkari khajana se laakho rupya ka delhi me pachaso hoardings khali "hamne kaam krte rhe wo paresaan krte rhe" likh kr lagwa diya aur time to time canima darshan krte rhe. . . Khair mauj to apni jagah hai pr beating retreat me moja-chappal pehen k CM ki garima ka bedagark kiya sirf aam aadmi kehlane k liye. Koi 500 ka juta fenk k marta to sahi rehta.

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  2. आम आदमी आपका पडोसी है आम आदमी का ढोंग करने वाले नही.....गजब का लिखते हैं

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  3. आम आदमी आपका पडोसी है आम आदमी का ढोंग करने वाले नही.....गजब का लिखते हैं

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