Monday 1 February 2016

की हम मशीन होते जा रहे हैं..

पिंकी का लहंगा पम्मी के लहंगे से महंगा और सुंदर है..इस पर कल सवा चार घण्टा बहस चली...एक बार लोकपाल बिल और जीएसटी बिल पर सहमति बन सकती थी...लेकिन किसका लहंगा सुंदर है..इस बहस  कोई निष्कर्ष न निकला..चिंकी, पिंकी, पम्मी और पप्पी के मुंह में दना दन प्रविष्ट होने वाले चाट,गोलगप्पे बेचारे इस बहस को सुनकर शरमा ही  रहे थे तब तक  दरवाजे पर बरात आ गयी. चिंकी ने पम्मी से कहा..."इससे अच्छा गोलगप्पा तो मेरे कालेज के सामने वाला लड़का बनाता है.".....पिंकी और पप्पी ने इस  रहस्य के उद्घाटन  से मौन सहमति जताई....तब तक दुलहा  जी बेचारे टोपी सीधी करके मैदान ए जंग में  उतरे...द्वार पर उनका पारम्परिक विधि विधान से पूजा हुआ..जिसे देखकर यकीन हो  गया कि युद्ध में जाने से पहले पूजा पाठ करने की हमारी परम्परा कितनी महान है.... छत पर गाँव की कुछ लड़कियों ने भोजपुरी और बॉलीवुड के गीतकारों की ऐसी की तैसी करते हुए पैरोडी शब्द से जमकर छेड़ छाड़ किया और ये बता दिया की हर माडर्न लड़की एक कुशल गायिका और गीत लेखिका होती है...जिसे पारम्परिक गीतों से सख्त नफरत होता है ।
उधर नागीन डांस के कुशल नर्तकों ने भी "सात समन्दर पार मैं तेरे पीछे पीछे आ गयी" पर नाचकर..ये बता दिया की हर लौंडे में  एक नचनिया और एक नाग छिपा होता  है....बस बैंड पार्टी में नृत्यांगना कुशल  होनी चाहिए।
इस घोर साहित्यिक,सांस्कृतिक माहौल के थमने के बाद जयमाल में साली और देवरों में जबरदस्त कमेंट बाजी हुई...दुलहा ने न झुकने की कसम खा ली...जैसे तैसे वर माला पहनाई गयी...दूल्हा दुल्हन को आने वाली दिक्कतों से निपटने की शक्ति मिले इसके लिए दोनों पक्षों के गणमान्य लोगों ने आशीर्वाद कम देकर फ़ोटो ज्यादा खिंचवाया..वहीं एक हॉट से देवर ने एक क्यूट सी साली से पूछा  "मुझे पहचानती हैं.आप.?आपने एक बार अपने जीजा की डीपी पर कमेंट किया था तो हमने  उसे तीन बार लाइक किया था...छोटकी साली ने शरमाकर् कहा.."भक्क ..हम उसमें के नहीं हैं.....इतना याद नही मुझे...एक तो हम अननोन को एड नहीं करते जी...और दूजे..यू नो.. मुझे इतने लोग लाइक करते हैं..किस किस को याद करुं...दिन भर लोग मुझे लाइक ही तो करते हैं.".साली ने एक कटाह सी मुस्कान बिखेरी....देवर का दिल  दरिया हो गया..उसने जुकरबर्ग की  सच्ची कसम खाकर कहा.."मैं चैटिंग नहीं करता जी..बस आप अच्छी लगीं.अब तो हम रिश्तेदार भी हो गए......"आई लाइक यू"
देवर साली के इस मधुर संवाद के बाद कैमरा मैन और फ़ोटोग्राफरों ने मैदान पर कब्जा जमा लिया...और इस अंदाज में  दुर्घटना स्थल का कवरेज करने लगे मानों  आज के बाद इतनी बड़ी  दुर्घटना कभी न होगी।
उधर पता चला आधे से अधिक बराती खाना खा लिए..किसी ने रायता की तारीफ़ किया और अरबिंद केजरीवाल को महान बताया...किसी ने आइसक्रीम की तारीफ़ की और दिग्विजय सींग को जवान बताया....कुछ ने सुबह सुबह क्या काम है उसके जिम्मे...ये गिनवाया और चुप चाप खा पीकर घर  चले गए....
और ले देकर बच गए दुलहा के घर के लोग.. कुछ मामा और फूफा टाइप  सीनियर सिटीजन  लोग..जिनको जाने का मन तो है लेकिन न जाना मजबूरी है...उसी मजबूरी में शामिल हैं..बैंड बाजा और टेंट सामियाना वाले..
उसी में बच गए थे एक हम भी...
मुझे  रात भर बचपन की बरातें याद आतीं रहीं...कि कभी हम ऊँगली पर दिन गीनना शुरू करते थे...पुराने कपड़े को ही तीन बार प्रेस करते थे..गजब का उत्साह होता था.शादी के दस दिन पहले ही घर से लेकर दरवाजे पर एक उत्सव का माहौल हो जाता..
शादी में शगुन उठता ...आज दिल्ली वाली मौसी आ गयीं कल जयपुर वाली फुआ आ जाएँगी....
शगुन का गीत गाया जाता ..जिसमें बड़े आदर सत्कार के साथ...गंगा माई, शिव जी,काली माई,डीह बाबा के साथ गाँव के कोंहाँर,चमार,हजाम,सोनार,गोंड़. अहीर और कमकर के साथ पण्डित जी को बुलाया जाता था.....उस लोकगीत में सबसे बिनती की जाती की आप आएं तभी हमारे बेटे और बेटी की शादी सफल होगी......सभी लोग आते...चिट्ठी पत्री के जमाने में कंहाँर सिर्फ डोली ही नहीं उठाते थे.बल्कि वो घर बाहर की तमाम जिम्मेदारी सम्भालते थे....हजाम लोग नेवता लेकर जाते थे...वहां से उनका हजाम कांवर पर आटा चावल लौकी और तेल मसाला काँवर पर लादकर नेवता लाता था......चमार के बाजा की पहले पूजा की जाती थी...कमकर लोग पानी भरते थे..देयाद पट्टीदार के यहाँ से खटिया,चौकी और बिछौना आता था...
टोला भर में जिनके यहाँ गाय भैंस थीं सब एक एक दिन का दूध दे जाते थे....
कुल मिलाकर तब शादी एक परस्पर  सामाजिक सद्भाव और प्रेम की मिशाल हुआ करता था....सुबह सबको खाना खाने का निमन्त्रण यानी अईगा दिया जता था...शाम को भोजन शुरू होने के बाद विजय यानी खाने के लिए बुलावा दिया जाता था...मैंने दो घोर दुश्मनों को एक ही पात में खाते हुए देखा  है.....उस शादी में जितना महत्व दिना गोंड का था उतना ही जीतन चमार और परसु धोबी का...
आज दिना जीतन और परसु का काम होटल वाले ही सम्भाल लेते हैं... खाने की व्यवस्था कैटरिंग वाले..
खड़े होकर खाने की परपंरा ने दूरियां इस कदर  बढ़ा दी हैं..की दो दोस्त साथ नहीं खा सकते..दुश्मन क्या ख़ाक खाएंगे...शादी के दिन ही सारे रस्म हो जातें हैं..उसी दिन दिल्ली वाली बुआ भी आतीं हैं...और सुबह वाली फ्लाइट से चली जातीं हैं।
चमार और गोंड़ भाई  के  बाजा की पूजा की जगह डीजे वाले बाबू ने लिया है....
किसी के पास वक्त नहीं.....पहले लोग बरात में मिलते थे तो गले लगाते थे...आजकल  सेल्फ़ी की चिंता में मरे जा रहे हैं।
हाँ....सो कॉल्ड प्रोग्रेसिव मुझे कोसेंगे...घोर क्रांतिकारी दिलीप मण्डल साहेब के भक्त मुझे मनुवादी करार देंगे ।
लेकिन इतना तो तय है कि हम 4g में जी रहें हैं.. अमीर गरीब की खाई कम हो रही और साथ ही आप  महाशय एसी में  बैठकर ये भी  कह रहे  हैं कि सद्भाव और प्रेम कम हो रहा है? असहिष्णुता बढ़ रही है?।
अरे ये जानिये की जिस तरह से सवर्णों को गरियाने से दलितों का उद्धार नहीं होगा...पुरुष को कोसने से स्त्री सशक्तिकरण नहीं होगा....
वैसे ही सिर्फ प्रेम और सहिष्णुता पर  बहस करने से प्रेम और सद्भाव कायम नहीं होगा।
कहीं न कहीं से एक बारीक सी दिक्कत है..जो शायद अब सही न होगी।..
की हम  जितने आधुनिक होते जा रहे हैं उतने मशीन होते जा रहे हैं।

4 comments:

  1. बहुते जबरदस्त राय साहब...

    ReplyDelete
  2. आदमी का मशीन बन जाना मानवता के इतिहास में एक बहुत बड़ी दुर्घटना है....पर इसे योग ध्यान और विवेक से रोक भी जा सकता है जिसके लिए समाज को आप जैसे लेखकों की बहुत जरूरत होगी...मुझे ख़ुशी है की आपको कलम उस दिशा में अग्रसर है

    ReplyDelete
  3. आदमी का मशीन बन जाना मानवता के इतिहास में एक बहुत बड़ी दुर्घटना है....पर इसे योग ध्यान और विवेक से रोक भी जा सकता है जिसके लिए समाज को आप जैसे लेखकों की बहुत जरूरत होगी...मुझे ख़ुशी है की आपको कलम उस दिशा में अग्रसर है

    ReplyDelete
  4. मैं समझती हूँ की संगीत आदमी को मशीन बनाने से रोक सकेगा

    ReplyDelete

Disqus Shortname

Comments system