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Wednesday, 6 April 2016

बिकती संवेदना...

आज संवेदना सिर्फ एक  प्रोडक्ट है और बेचने वाले होलसेलर मुंह बाये खड़े हैं..
ये होलसेलर हर जगह मौजूद हैं..पत्रकार,साहित्यकार,न्यूज चैनल,क्रांतिकारी,बुद्धिजीवी.और सबसे बड़े नेता..
सब अपने-अपने हिसाब से अपने लिये लाशों और आंसुओं के रंग  खोज रहे हैं..
सबकी मौत की अपनी बनी बनाई परिभाषा है।
छोटी मौत,बड़ी मौत,कम्युनल मौत,सेक्यूलर मौत,दलित मौत,सवर्ण मौत।

देखिये न..अब  जो रोहित वेमुला के लिये रोता है वो पूनम भारती के लिये नहीं रोता..
पूनम ने क्या बिगाड़ा था उनका..बेचारी ने  प्रेम किया था एक मुसलमान से..गर्भवती हुई..धोखा खाई..रेल से कटकर मर गयी..लेकिन अफ़सोस उसकी मौत पॉलिटिकल मैटीरियल नहीं है।
सो पूनम दिलीप मण्डल साब की बेटी बनने लायक नहीं है।
काश पूनम किसी ब्राह्मण भाजपाई के कारण मरी होती..आह!
देखते तब मण्डल साब रो रो कर अपनी छाती पर मुंग दल लेते...वेमुला बेटा के साथ अपनी एक सगी बेटी बना लेते..
हाँ  बेटा बनने लायक तो वो बेचारा सन्दीप भी नहीं,जिस दलित सन्दीप को वेमुला साब ने मार मार के अधमरा कर आईसीयू में पहुंचा दिया था। अफ़सोस!

इधर देखिये .याकूब के जनाजे में लाखों लोग  'मैं हूँ याकूब' को बुलन्द कर रहे थे...वो तंजीम की मौत पर चुप हैं....क्योंकि तंजीम साब ने इंडियन मुजाहिदीन और सीमी की कमर तोड़ दी थी...वो काफ़िर हुये.. और याकूब साब अल्लाह के नेक बन्दे थे.ईमान लाने वाले हुये।

हाँ   जो इकलाख के लिये पुरस्कार वापस करते हैं..उनको करोड़ो का चेक,बड़ा आलिशान घर देते हैं..वो नारंग की हत्या पर उनके घर न पहुंच कर आज अंतर्राष्ट्रीय नेता बनने  में व्यस्त हैं...

इधर जो भारत की बर्बादी का नारा देने वालों को जस्टिफाई कर उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बताते थे..वो कश्मीर में भारत माता की जय बोलने वालों को चुप-चाप पढ़ाई करने की सलाह दे रहे हैं...

जिस कन्हैया जी को  खड़े होकर अभी पेशाब करने का ढंग   न हो
उनमें तुरन्त युग नायक और विश्व विजेता की  छवि देख कर इतराने वाले .. एनआईटी के उन हिम्मती छात्रों के  बारे में कुछ नहीं कह रहे.
जिन्होंने आज जान और कैरियर को दाव पर लगाकर हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारो से तंग हो   तिरंगा फहरा दिया है।

क्या कहें....अरे आप अगर आदमी हैं..तो अपनी संवेदना को गिरवी मत रख   दिजिये.....इतना मत बाजारू बना दिजिये कि  आपका दुःख बिकाऊ हो जाय..खरीदार खरीदने  लगे.

अरे हिंसा हर किस्म  की एक समान होती है..मौत भी एक समान ही है..कारण अलग हो सकते हैं..लेकिन निंदा और दुःख सबके  लिये बराबर आप नहीं करते तो आप संवेदना बेच रहे हैं...वास्तव में आपको न रोहित वेमुला की जान से मतलब है..न इकलाख,तंजीम और याकूब से।

खैर..एनआईटी के उन हिम्मती छात्रों को सलाम करता हूँ..
भाई आप न आरएसएस के एजेंट हैं न भाजपा की सदस्यता लिये हैं.
आप हमारे और उन लाखों करोड़ों देश वासियो की तरह हैं जो सदैव देश प्रेम की भावना से संचालित होते हैं..
जाहिर सी बात है  सामने कोई हिन्दुस्तान मुर्दाबाद और टुकड़े-टुकड़े के नारे लगायेगा तो वो कभी हमसे सहन नहीं होगा..
कायदे से बुद्धिजीवी इस टाइप के लोगों को संघी कहतें हैं..कहने दिजिये..ये सवालों और तर्कों से  बचने का सबसे आसान सा तरीका है
उनका..
वैसे भी उनके पास हमेशा समस्या होती है समाधान नहीं।
लेकिन आप डरना मत भाई..ये सब आपके हाथ-पैर पर  लगे चोट..हम सबके हाथो पर भी लगे  हैं...थोड़ा-थोड़ा हम भी घायल हुये हैं।

आज सोशल मीडिया की ताकत ही है की  सीआरपीएफ आ गयी..स्मृति इरानी जी का मंत्रालय पहुंच  गया..
लेकिन दिक्कत कम कैसे होगी..
जहाँ डॉक्टर,दूकानदार,मेस वाला,चाय वाला.दर्जी,मोची, बस,ऑटो और सबसे बड़ा पुलिस प्रशासन  एक किस्म का हो वहाँ तो आप पर  खतरे रहेंगे ही।
जहाँ सैकड़ों सालों से नफरत के काटें बोयें गयें हों वहां दो साल की सरकार या दो दिन की सरकार कुछ नहीं कर सकती..
न ही सरकार प्रत्येक विद्यार्थी के सोने,जागने पढ़ने और घूमने पर पहरेदारी कर सकती है।
आप अपना ख्याल रखना भाई...
अपनी आवाज उठाये रखना..
यकीनन आपने एक क्रांतिकारी और बड़ा काम किया है..
देश को आप पर गर्व है..
हम सब साथ हैं...

यहाँ हम किसी पार्टी के बीके हुये दल्ले नहीं...न ही पॉलिटिक्स ज्वाइन करना है..
हम तो वही कहेंगे और वही लिखेंगे जो देश हित में दिल को सच  लगेगा।
संवेदना बेचने और खरीदने वाले अपना काम करें..
हमें तो ये सच्चाई स्वीकार करने में ये दिक्कत है नही कि आपकी  चोट के पीछे केंद्र सरकार   की घोर लापारवाही  का  हाथ है.
जो मुद्दा कल से ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा हो वहां मंत्रालय के लोग और अर्धसैनिक बल तब पहुंचे जब चालीस लोग चोट खाकर कराह चुके हों..
ये सोचने वाली बात है..

हाँ लेकिन एक झटके में पीडीपी और बीजेपी के गठबंधन को जो कोस रहे हैं..वो भी धैर्य विहीन लोग हैं..
लेकिन शुक्र है आप अपने नेता और पार्टी की आलोचना तो करते हैं.आप बुद्धिजीवियों की तरह अपने कुकर्मों पर शब्द जाल नहीं डालते..
ये बड़ी अच्छी बात है.
लेकिन धैर्य नहीं खोना है...विपक्ष के बहकावे में मत आइये..उनके पास मुद्दों का घोर अभाव है..
उनके अनुसार अब काश्मीर में सबको काट दिया जाय..या सभी काश्मीरीयों को पाकिस्तान में फेंकवा दिया जाये....ऐसा कैसे उचित है भाई..
राजनीति के दो ध्रुव एक साथ खड़े हैं..ये भारतीय लोकतन्त्र के कुछ अच्छे अध्यायों में से एक है..आज इतना बदला कल और कुछ बदलेगा..भगवान करें आने वाला कल और अच्छा हो..
बस सकारात्मकता  बनाये रखना है.

वहां माहौल सामान्य हो..सबकी पढ़ाई शुरु हो..
घायल शीघ्र स्वस्थ हों.यही कामना है।
       

             |जय हिन्द|

Tuesday, 15 December 2015

अल्लाह बुद्धिजीवी न बनाये..

पिछले दिनों  दादरी में उमड़ी गौ माता  के रखवालों की उग्र  भीड़   और कल परसो मुज्जफरनगर ,बरेली में अल्लाह के बन्दों की भीड़ में कोई ख़ास अंतर नहीं  है...बस इतनी सी बात है कि गौ माता के रखवालो ने किसी इकलाख की जान ले लिया और अल्लाह के रखवालो को जान लेने का अवसर नही मिला क्योंकि कमलेश तिवारी उनके सामने नहीं था।
बकौल युवा  हृदय सम्राट अकलेस भाई  'उम्मीदों का प्रदेश उत्तर प्रदेश' पांच घण्टे भयंकर दहशत और ख़ौफ़ में जीता रहा..."गर्दन काटने पर लाखो इनाम देने की घोषणाएं होती रहीं और इस्लाम को बार बार खतरे में बताया गया....घण्टो लोग डर के मारे घरों में दुबके रहे..मने अभी इस्लाम खतरे में है  क्या पता कब क्या हो जाय...किसकी जान चली जाये...
मुझे नहीं पता कि ये धर्म हर चौथे  दिन खतरे में कैसे पड़ जाता है...
लेकिन मजे कि बात ये है कि जिस  कमलेश तिवारी को लेकर इतना बवाल मचा है उससे, हिन्दू महासभा ने भी पल्ला झाड़ लिया है। ये बताकर कि हिंदू महासभा न इनके बयान का समर्थन करती है न ही इसका किसी कमलेश तिवारी से सम्बंध है....2008 में ही इस कमलेश तिवारी के अमर्यादित आचरण से आहत होकर महासभा ने बर्खास्त कर दिया है....यहाँ तक कि अपने इंटरव्यू में महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि  ने इस तिवारी को कानून सम्मत कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर डाली है...
हंसी आती है.हमारे बुद्धिजीवी कह रहे कि देश में  असहिष्णुता बढ़ गयी है। क्या कहेंगे अब...
लेकिन हाय रे भारत के सेक्युलर बुद्धिजीवी किसी ने एक बार भी नहीं कहा कि ये मुज्जफरनगर और बरेली में क्या हो रहा है?..किसकी जान लेने कि तैयारी चल रही है.....ये दोनों भीड़ एक सी है..जिसकी जितनी निंदा कि जाय कम है.....लेकिन यहाँ कोई पुरस्कार वापसी नही...न ही किसी ने जान लेने पर आमादा इस उग्र भीड़ के लिये  एक शब्द कहे...न किसी ने देश छोड़ने की धमकी दी।
बस इस एक उदाहरण से आप भारतीय बुद्धिजीवियों का चरित्र चित्रण कर सेक्यूलरिज्म कि परिभाषा से अवगत हो सकतें हैं...और आपके पास तीस चालीस लाख है तो  उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में अच्छा खासा निबन्ध लिखकर एसडीएम हो सकतें हैं।
क्या करेंगे..दोष  इनका भी नहीं... बेचारी बुलेट ट्रेन ने अभी सबको उलझा रखा है...सब उस पर सवार होकर मुम्बई से अहमदाबाद की यात्रा कर रहे हैं....फुर्सत ही नहीं...उस ट्रेन में ए राजा कलमाड़ी,कनिमोझी, और वाड्रा के साथ बैठकर बुलेट ट्रेन से होने वाले नुकसान कि चर्चा में मशगूल हैं....
पर किसी को इस बात कि चिंता नहीं कि राष्ट्र  माता और उनके बेटे ने  संसद नही चलने दिया और मौजूदा शीतकालीन सत्र में जीएसटी पास नहीं हुआ तो   भारत को नौ लाख करोड़ का नुकशान होगा..साथ ही ऊँची विकास दर का सपना धरा का धरा रह जाएगा।
बस ISO सर्टिफाइड ईमानदार बाबा युगपुरुष जी कि कसम भगवान  दुश्मन को भी बुद्धिजीवी न बनाये। और बनाये तो  सेक्यूलर न बनाएं।
बाकी जवन है तवन हइये है।

बाबा फलाना बनारसी 'बलिया वाले'

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