साथ ही अपने पितृ पुरुष नेहरू जी की 'डिस्कवरी आफ इंडिया' पढ़ो और समझो की भारत माता क्या हैं और क्यों बोलना चाहिये...
Tuesday, 5 April 2016
भारत माता की जय....
साथ ही अपने पितृ पुरुष नेहरू जी की 'डिस्कवरी आफ इंडिया' पढ़ो और समझो की भारत माता क्या हैं और क्यों बोलना चाहिये...
Sunday, 3 April 2016
आत्महत्या और आत्मक्रांति....
मेरे एक प्रिय मित्र हैं ..मने बहुते पढ़ाकू.तेजू खान के नाना टाइप.अपने विषय के विद्वान..अभी बीएचयू में पढ़ते हैं, जेएनयू सपना है उनका.
जरूरत से ज्यादा बुद्धिजीवी हैं ..ज्ञान का बोझ सर पर लादे रहते हैं.
तमाम बुद्धिजीवियों की तरह दिन रात वैचारिक क्रान्ति में तल्लीन रहते हैं..उठते,बैठते,जागते,सोते,चाय पीते या खाना खाते..बस दिन भर..
"ये मार्क्स,वो लेनिन,हाय चे,वहाँ अम्बेडकर और यहाँ लोहिया,उधर मुक्तिबोध"..
ये अलग बात है की इतनी क्रान्ति करने के बाद अपने पिताजी से चार गाली रोज सुनते हैं.
हमने भी मजा लेने के लिये उनके पिताजी का नाम चे ग्वेरा रख दिया है..
सो चिढ़ते हैं बहुत..हास-परिहास में गरियाते भी हैं।
कभी कभी सभी बुद्धिजीवीयों की तरह पूर्वाग्रह से इतने ग्रस्त हो जातें हैं कि उनसे तर्क करने वाला उनको मूर्ख और संघी लगने लगता है.
हाँ लेकिन बहुत ज्यादा कट्टर भी नहीं हैं.
इसलिये तीन साल से प्रिय मित्र हैं.मने करेजा टाइप...
इधर मिलना कम ही हो पाता है,लेकिन आज तक दोस्ती के बीच में वैचारिक भिन्नता आड़े नहीं आयी कभी. न ही आयेगी.
महिने दिन पहले किसी दूसरे मित्र से पता चला कि कॉमरेड बहुत परेशान हैं. .यहां तक कि सुसाइड करने तक की बात कर रहे...
मैं ये सब जाना तो बड़ा परेशान हुआ..कोई सम्पर्क भी नही हुआ..न ही कई दिन से कोई संवाद....
बेचारे 'काम-रेड' कथा पढ़ने के बाद से फेसबुक पर ब्लॉक किये हुये हैं ...
व्हाट्स पर भी कोई जबाब नहीं देते..
थक हार के मैंने फोन किया कई बार..लेकिन वो भी स्वीच आफ।
फिर एक म्यूच्यूअल फ्रेंड 'झा जी पटना वाले' को फोन किया तो पता चला कल रात को उनकी गरलसखी से क्रांति टाइप झगड़ा हो गया है.. सो गुस्से में बेचारे मोबाइल तोड़ दिये हैं..
मुंह से निकला...हाय!..
पता चला रात को कि उनके रूम पार्टनर के नम्बर पर काल कर लेने से बात हो जायेगी।
तो साहेब रात को 11 बजे फोन किया..
आवाज आई."कहाँ हो अतुल ?
संघी कहीं के..मतलबी आदमी..दोस्त के नाम पर कलंक..बड़े लेखक हो गये हो...तुम कुछ नही हो अभी..इतना घमण्ड...सुधर जावो..ब्लाह ब्लाह"
हम याचना पूर्वक कहे..."शान्त कॉमरेड शान्त"
का भइल की एतना गरम हो..चे ग्वेरा कुछ कह दिये क्या"?
उधर से दो मिनट बाद आवाज आई..
"हाँ बे..बड़ी परेशान हूँ यार. आज एक हफ्ते से. कई दिन से नींद नहीं आ रही..सर पर लग रहा हजारो टन का बोझ रखा है..सर दर्द और नींद की गोली खा खा कर बुरा हाल है"..
पिताजी से झगड़ा हुआ..गर्लफ्रेंड का प्रवचन सुन मन कर रहा उसका गला दबा दूँ...माताजी का बकवास लेक्चर सुनकर मन करता है,दो थप्पड़ दूँ उनको"
पता न यार.. ये कैसे लोग मेरे माँ बाप हो गये..जाहिल एकदम..कुछ समझते नहीं"
साला किसी से बात करने का मन नही कर रहा.सब गंवार पड़े हुये हैं यहाँ...दुनिया एकदम रहने लायक नहीं रही।
एकदम माथा खराब कर देते हैं।
साला मन कर रहा सुसाइड कर लूँ"?
हम ये सब सुनकर हँसे...बुझ गये की ये ज्ञान का भूत कपार पकड़ लिया है...आदमी अपने शर्तों पर जीना चाहता है।
हम धीरे से कहे..."शान्त हो जावो..बस भी करो.."
बस..बेचारे रोने की मुद्रा में आ गये..."
"तुम ही बतावो अतुल मैं गलत हूँ.?.इतने दिन से जानते हो मुझे..मैं पढ़ता नहीं?.किस लड़की पर लाइन मारता हूँ यार..माँ बाप अलग डांट रहे और वो चुड़ैल अलग."
हम कहे ." बिलकुल नही बे तुम एकदम सही हो"
लेकिन अभी तो सो जावो.तुम्हें बहुत गहरी नींद की जरूरत है..
सुबह मैं लंका आऊंगा तब मिल कर सारी बातें होंगी"
नींद का नाम लेते ही मित्र गरमाये..
"अबे नीद आएगी तब न सोऊंगा.दवाई खाने का मन नही कर रहा."
मैंने कहा..."एक काम करोगे?..तुरन्त बहुत गहरी नीद आयेगी....बिना दवा के. लेकिन जैसे बताऊंगा करोगे तब..
बोले "क्या.. ?हम कहे."इसी नम्बर पर एक mp3 भेजता हूँ. बीस मिनट का..उसे जरा सुनो..
लो MP3 का नाम सुनकर उधर से और ज्यादा खिसियाकर बोले
"क्या बकवास करने लगे बे."?
दवाई खाने से नीद नहीं आ रही तो तुम्हारे शास्त्रीय संगीत सुनने से नींद आ जायेगी..रहने दो"
हम कहे.."शान्त हो जा और whats app पर आवो"
पार्टनर से कहो आज भर तो मोबाइल दे दे।
तो मरता क्या न करता. बेचारे थक हारके whats app पर आये..मैंने उनको mp3 भेज दिया और पूछा?
"ये बता अभी तुम साँस कहाँ से ले रहे हो?
बोले "क्या मतलब ?
अबे संघी .अपनी बुद्धि अपने पास रख."
हम कहे..सीरियस हूँ..सच बता..
"साँस तुम्हारी कहाँ से चल रही.."?
बोले "नहीं समझ पा रहा तुम कह क्या रहे हो"?..
मैंने कहा.."देखो..अपने नाभि पर ध्यान करो और प्रयास करो की साँस वहां से चले और एक लय में चले..मैं कन्फर्म हूँ की तुम्हारी साँस अभी पेट के ऊपर से चल रही है..और बहुत ही तेज चल रही..."
कुछ देर बाद बोले .."हाँ यार एकदम सही कहे"
हम आगे समझाये..
'जिस आदमी को पता नहीं की वो साँस कब ले रहा कब छोड़ रहा उसे कभी गहरी नींद नहीं आयेगी....ये नोट कर लो..
ये जो प्राण वायु है न ये अद्भुत है...ये अगर सध जाय तो समझ लो तुम्हें शान्त होने की कला आ गयी.तुम बुद्ध हो गये...तब न मन में भय आएगा न तनाव न कोई विकार..तुम अपने मूलाधार से जुड़ जावोगे..
वो कहे "प्रवचन बाद में देना..ये बतावो आज नींद कैसे आयेगी..."?
हमने समझाया..
"एक काम करो..बस बिस्तर पर लेट जाना ..ये सितार का आलाप है..इसे आस पास रख देना....हाथ पैर साँस ढीला छोड़ देना एकदम.. आँख बन्द..शवासन की मुद्रा में आ जाना.और आज्ञा चक्र पर ध्यान करते हुये जैसे किसी बच्चे को डांटते हैं वैसे ही खूब जोर से दिमाग को डाँटना. "ये सब बकवास सोचना बन्द करो और तुरन्त सो जावो "
अपने पूरे शरीर से बार बार कहना कि 'मुझे नींद आ रही सोना है अब..हाथ से पैर से पेट से साँस से सबसे विनती करना की सो जावो.."
इस पुरे प्रक्रिया में एक बात का ध्यान रहे की साँस हमेशा एक लय में नाभि से चले..
सुबह उठकर बताना।
सुबह तो नहीं बताये... दोपहर भी नहीं बताये...मुझे बड़ी चिंता हुई..अपने मेडीटेशन के ज्ञान पर भयंकर सन्देह हुआ...मन में आया।
"काहें दूसरे को सिखाने लगते हैं अतुल बाबू"
लेकिन शाम को 4 बजे फोन आया उनका...आवाज में स्फूर्ति और ताजगी झलक रही थी. एकदम उच्छास की मुद्रा में आकर बोले..
"कहाँ हो अतुल भाई..हमार.करेजा.."
हम कहे..वाह कॉमरेड केजरीवाल..अब रंग न बदलो..उसी अंदाज में बात करो जिस अंदाज में कल कर रहे थे"
वो हँसे..खूब हँसे...क्या यार दोस्ती में ये सब चलता है..पॉलिटिक्स न करो"
यार 11 बजे सोकर उठा बे..फिर सोया तो 2 बजे उठा...इतनी अच्छी नींद तो कभी नहीं आई यार...याद है की तीन या चार में जब थे तो ऐसे पढ़ते-पढ़ते सो जाते थे..वो वाला अनुभव आज मिला है यार..गजब.."
शाम को आये तो जबरदस्ती संकट मोचन मन्दिर ले गया..
कहने लगे तुम संघी बनाना चाहते हो..मैंने कहा बिलकुल नहीं..हम बस घूमने की दृष्टि से चलते
हैं..तुम मान कर चलो की नास्तिक ही रहोगे..
हाँ लेकिन कुछ मिनट तक भूल जाना कि
"धर्म अफीम है..
पूजा,पाठ,प्रसाद और हाथ जोड़ वरदान मांगने के लिये नहीं लाया तुमको..
क्योंकि खुद मैं ये सब ज्यादा नही करता.
यहाँ तो कुछ और बात है..जो बहुत दिव्य है..
बस मार्क्स लेनिन को किनारे कर ये समझ के यहाँ बैठो की तुम किसी ऊर्जा को देखने आये हो.प्रसाद चढ़ाने नहीं मन्नत माँगने नहीं।
बेचारे जैसे तैसे बैठे..
कुछ देर बाद हमने एक बात बताया..
"मित्र इस बाबा की मूर्ति की तरफ से एक बड़ी सकारात्मक ऊर्जा निकल रही है..सतत..इतनी ज्यादा प्रवाहमान ऊर्जा बनारस के किसी मन्दिर में नहीं।
क्या तुम महसूस कर रहे हो?..एक आभामयी और दिव्यता का भाव आ रहा न हमारी ओर..?
लग रहा न की हम किसी पॉजिटिव वातावरण में आ गये हैं..एक आशावादी माहौल में।
वो कुछ देर बाद बोले "हाँ यार"
फिर हमने उनको समझाया.."
निंदा हमें रोक देती है भाई. हम किस वाइब्रेशन और किस वातवरण में हैं इसका हमारे चित्त पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है....
देखो मार्क्स लेनिन और अम्बेड़कर को पढ़ना बहुत जरूरी है..हर आदमी को जरूर पढ़ना चाहिये.क्योंकि सबने मनुष्यता को ऊपर उठाने के लिये अपने अपने हिसाब से प्रयास किया है...राहें अलग अलग हैं लेकिन मंज़िल एक हैं...
बस किसी एक राह में रुक नहीं जाना चाहिये..आगे और दुनिया है।
देखो तो ..."बुद्ध हैं.. स्वामी विवेकानंद.महर्षि दयानंद सरस्वती..,ओशो और जे कृष्णमूर्ति जैसे आत्मक्रांति के नायक..
आचार्य विनोबा भावे. महर्षि अरविन्द और महेश योगी जैसे तमाम लोग हैं..इनसे भी जरूर मिलना चाहिये..."
शुक्र है..मित्र को बात समझ में आई है....आजकल सूर्य नमस्कार करते हैं..विपस्सयना की चर्चा करते हैं....खूब खुश हैं..डाइनेमिक मेडिटेशन सिख रहे.कह रहे की बांसुरी सिखना है अतुल भाई....
सब कुछ बन्द कर ओशो का 'ध्यान सूत्र' पढ़ रहे..
आजकल मार्क्स को जरूर कोट करते हैं..लेकिन स्वामी विवेकानंद के साथ.
मैं बहुत खुश हूँ।
लेकिन बड़ी चिंता होती है..आज जड़ बुद्धिजीविता का दौर है..तमाम महापुरुषों पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है..
सब उनके अनुसार अपनी मनवाना चाहतें हैं...
सब अपने को सही और सामने वाले को मूर्ख समझते हैं...
लेकिन ऐसे लोग भले विद्वान हो जायँ..मैं इन्हें दो कौड़ी का समझता हूँ...
ये बेहोशी के हालत में हैं..वैचारिक हिटलर...अपना थोपना चाहतें हैं.
ये चेतना के सबसे निम्न तल पर जी रहें हैं।
और यही क्या आज गारण्टी के साथ कह सकता हूँ की अधिकतर लोग इतने ज्यादा बेहोशी के हालात में जी रहे की उन्हें पता नही की वो क्या कर रहे हैं...वो खाना खा रहे हैं और फ़िल्म के बारे में सोच रहें हैं...फ़िल्म देख रहे हैं खाना के बारे में सोच रहे हैं..जा कहीं और रहे हैं पहुंच कहीं और जा रहे हैं..बीबी के साथ सो रहे और आफिस वाली के सपने देख़ रहे हैं..
कहने को चुप हैं लेकिन दिमाग में भाषण पर भाषण दिये जा रहे...बात किसी और कर रहे सोच किसी और के बारे में रहे।
मन में लगातार पागलों की भांति बोले जा रहे।
गलाकाट प्रतिस्पर्धा में खुद को इतना मार दियें हैं की उन्हें मोदी ओबामा की खबर तो खूब है लेकिन अपने बाल बच्चे की नहीं।
और जब इस बेहोशी की दुनिया के बाद हकीकत की दुनिया के दुःखों से सामना होता है तो संसार असार नज़र आता है...
मौत का विकल्प दिखाई देता है।
इसके पीछे आज हमारी शिक्षा पद्धति भी कम जिम्मेदार नहीं...वो बस पैसे कमाने की मशीन तो बना देती है..बुद्धिजीवी भी बना देती है लेकिन मनुष्य नहीं...ये नहीं बताती की जीवन में शान्त कैसे हुआ जाय..तनाव से चिंता से..दुःख से..काम के प्रकोप से मुक्ति कैसे पाई जाय.आनंद कैसे महसूस किया जाय...आत्म हत्या के विचार मन में आये तो क्या किया जाय...?
और इस समस्या का इलाज मार्क्स लेनिन के पास नहीं..तब तो दौड़कर आना होगा बुद्ध के पास पतंजलि के पास...
इसलिये इस संवेदनहीन हो गये 4g युग में
अगर हमें संवेदना के बीज बोना है तो आने वाली पीढ़ी को हमें सृजनशील बनाना पड़ेगा..
ये ध्यान में रखना होगा कि
वो हनी सिंह मीका को सुने लेकिन पंडित शिवकुमार शर्मा को न भूल जाये...वो मार्क्स लेनिन पढ़े लेकिन विवेकानंद और दयानंद सरस्वती को भी पढ़े..
वो wwf देखे लेकिन सुबह योग और ध्यान करना न भूले..
एंग्री बर्ड दिन भर खेले लेकिन कभी किसी चिड़िया को दाना पानी भी तो खिलाये।
वो फेसबुक whats app चलाये लेकिन एक कविता लिखे और एक गीत भी तो गाये..कोई चित्र भी तो बनाये..
मेरा मानना है कि जिस व्यक्ति ने मनुष्यता के पक्ष में दो कविता लिख लिया वो किसी की हत्या नहीं कर सकता..
जिसने प्यार और दर्द के चन्द गीत गा लिये वह बलात्कार नहीं कर सकता..
जिसने जीवन और प्रकृति के कुछ चित्र बना लिये..वह जीवन और प्रकृति को नष्ट नहीं कर सकता.
Tuesday, 29 March 2016
करिया सलाम कामरेड...
आज पढ़ाई,नौकरी के बाद ज्यादा समय फेसबुक,whats app ले लेता है.. इससे समय मिलने के बाद साहित्य प्रेमी कूल ड्यूड चेतन भगत,अमीश को पढ़तें हैं..
देखता हूँ कुछ लौंडे 'हाफ गर्लफ्रेंड' सिरहाने रखकर सोतें हैं..और कुछ तो 'मेल्हुआ के मृत्युंजय' लेकर ही जगते हैं..
ट्रेन,बस में किसी सुंदर बालिका को देखते ही इनका साहित्य प्रेम इस कदर फफाने लगता है,कि प्रेमचन्द,रेणू की आत्मा पानी मांगने लगती है..
बचे-खुचे ड्यूड इयरफोन निकाल हनी सिंह,अरिजीत सिंह को सुनतें हैं.
आज इस भागम-भाग के दौर में ग्रन्थ और बड़े बड़े उपन्यास, ध्रुपद-धमार पढ़ने-सुनने कि फुर्सत शायद ही किसी को हो..आज सारा साहित्य एक क्लीक और हजारों किताबेंएक किंडल में उपलब्ध है...
इस दौर में ड्यूडों से पूछा जाय कि "मनुस्मृति के बारे क्या जानते हो"?
किसी दलित से पूछा जाय की "भाई वो कौन सा अध्याय,पेज या श्लोक है जिसमें दलितों के बारे में अनाप-शनाप लिखा गया है..तनिक बतावो तो?
किसी रोटी बेल रही महिला से पूछा जाय की "चाची तनिक बताइये तो कि मनुस्मृति के किस श्लोक में महिला को दोयम दर्जा दिया गया है..."?
तो साहेब ड्यूड पुनः कान में इयर फोन ठूस लेंगे.
दलित जी हंस कर कहेंगे
"का फालतू बात कर रहे,अपना काम करिये न"
महिला भी यहीं कहेंगी...."बेटा रोटी खालो और दिमाग न जलावो.गैस खतम हो रहा.."
और सिर्फ यही लोग क्यों, मेरे 5 हजार मित्र और 6 हजार से ऊपर फॉलोवर्स में से शायद ही किसी ने मनुस्मृति पढ़ी होगी...
क्योंकि सबसे बड़ी बात कि इसे आज पढ़ने की जरूरत क्या है?.. ये ग्रन्थ अपनी प्रासंगिकता खो चुका है...न ही कहीं किसी सलेबस में पढ़ाया जाता है..न ही किसी के घर में इसका रोज हनुमान चालीसा की तरह पाठ होता होगा...न ही ये कोई वैदिक ग्रन्थ है..न ही हमारे तमाम पूजा-पाठ रीती-रिवाज में इस पुस्तक का कहीं प्रयोग होता है....न ही हमारा देश और समाज इससे संचालित होता है..तो आखिर क्यों कोई पढ़े?
आज हमें या आपको जब भी कोई धार्मिक ग्रन्थ पढ़ने का मन करेगा तो एक कॉमन सी तमन्ना उतपन्न होगी की हम पहले गीता पढ़ें..या कुरआन,बाइबिल या शबद याद करें...
लोग पढ़ भी रहे, आज भी दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय,प्रासंगिक और हर वर्ग,धर्म में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ गीता है।
तो इस दौर में मनुस्मृति की बातें करना मुझे विशुद्ध बौद्धिक चूतियापा से ज्यादा कुछ नहीं लगता...
लेकिन आज भी कुछ बाबा साहेब अम्बेडकर के अंधभक्त और फर्जी दलित विमर्शकार मनुस्मृति की बातें अपना नैतिक कर्तव्य समझ के कर रहें हैं..क्योंकि बाबा साहेब ने जलाया था. तो ये जानते हैं कि ये भी जलाकर बाबा साहब बन जायेंगे.
ये बेचारे इतना नहीं सोच पाते कि तब के हालात और आज के हालात में बड़ी अंतर है..
आज किताब जलाने से किसी दलित को एक जून की रोटी नहीं मिलेगी..उसे मनुस्मृति और विमर्श से ज्यादा रोजगार,पढ़ाई,और पर्याप्त कौशल विकास के अवसर उपलब्ध कराने की जरूरत है.
लेकिन नही.परसाई जी ने सही कहा है..
"भक्तों का मूर्ख होना जरूरी है..."
वो चाहें किसी के भक्त क्यों न हों..
जैसे जाड़े के दिनों में अपनी साख चमकाने के लिये फर्जी समाजसेवी चौराहे पर दस बारह कम्बल बितरण कर फ़ोटो खिंचाने लगतें हैं...ठीक वैसे ही साल में एक दो बार कुछ फर्जी दलित पुरोधा भक्त मनुस्मृति जलाकर जहर उगलने लगते हैं।
बड़ी अफ़सोस होता है कि हर बात पर 'जे भीम' और 'नमो बुद्धाय' कर जहर उगलने वाले ये क्रांतिकारी..बाबा साहेब से न 'मानवता' सिख सके और न ही बुद्ध से "चेतना के विकास का मार्ग' जान सके.
इधर 14 अप्रैल करीब है. किताब जलाने का मौसम आ रहा...नेता बनने के दिन आ रहे।
उधर जेएनयू का तो एक अपना मौसम है..
आप तो जानते हैं कि वहां के कामरेड चाइनीज कैलेंडर से दैनिक क्रिया कलाप करतें हैं..चे,माओ,स्टालिन और बाबा मार्क्स उनके देवता हैं।
सो मौसम के कुछ एक महीना पहले महिला दिवस पर मनु स्मृति जला ली गयी.
अब इन फर्जी क्रांतिकारियों से पूछा जाय कि....'हे कामरेड...आप अप्रासंगिक हो चुके मनुस्मृति में आग लगा देते हैं..अपने में किस आफ लव कर लेते हैं..बीफ फेस्टिवल भी कर देते हैं.....हर वक्त स्त्री सशक्तिकरण और समानता की बातें कर मनुवाद और हिन्दू धर्म की ऐसी की तैसी इस अंदाज में करते हैं..मानों जेएनयू में चौबीस घण्टा सिर्फ रक्षाबन्धन ही मनता है...
लेकिन कामरेड जी...'आज सालों से एक बेचारी सी मुस्लिम महिला शायरा बानों सुप्रीम कोर्ट में शरीयत जैसे गन्दे कानून के खिलाफ लड़ रही हैं...
उन पर लगातार शारीरिक,मानसिक,अत्याचार किया गया है.
इस महिला के साथ कब अपना लाल झण्डा खड़ा करेंगे..?
उस मुस्लिम पर्सनल ला (शरीयत) के किताब की प्रतियां कब जलायेंगे..जिसमें आज भी पुरुष तीन बार तलाक बोल दे तो तलाक हो जाता है...उस निकाह हलाला और कई निकाह कर चार बीबी रखने के मर्दवादी विशेषाधिकार के खिलाफ कब मोमबत्ती निकालेंगे?
उस घटिया हलाला कानून के खिलाफ कब डफली बजायेंगे...जहाँ आज भी किसी तलाक शुदा महिला को अपने पूर्व पति से शादी करनी हो तो उसे किसी दूसरे से शादी करके उससे तलाक लेना पड़ता है,तब जाकर पहले पति से शादी होती है.
आज भी लाखों गरीब मुस्लिम महिलाएं इन शरीयत की बेड़ियों में कराह रहीं हैं...पशु भी उनसे अच्छी हालात में जी रहे हैं...इनके समानता और अधिकार की बातें कब होंगी...
ये कैसा आपका स्त्री विमर्श है यार?
जरा पूछिये तो कि वो जेएनयू में मनुस्मृति जलाने की पैरवी करने वाली उपाध्यक्षा शेहला राशिद से कि वो शरीयत के खिलाफ और शायरा बानों के साथ आखिर कब खड़ा होंगी?...
अरे हिम्मत नहीं आप में कामरेड ...ये आपके फर्जी वामपंथ और बौद्धिक चूतियापा का तकाजा है कि वो मनुष्यता के लिये समस्या बन गये नक्सलवाद और शरीयत जैसे कानून को अनदेखा कर फर्जी के जनगीत गाये.
लाल नहीं करिया सलाम..
Sunday, 27 March 2016
चरित्रवान भैंस
एक थे सुदामा राय..जिला बलिया द्वाबा के भूमिहार,एक मेहनती किसान,एक बड़े खेतिहर.
कहतें हैं उनके पास दो गाय और एक भैंस थी..
एक साँझ कि बात है..राय साहेब गाय भैंस को खिला पिलाकर झाड़ू लगा रहे थे.तब तक क्षेत्र के एक प्रसिद्ध पशु व्यापारी आ धमके..
व्यापारी जी ने भैंस जी को बड़े प्यार से देखा..आगे-
पीछे,दांये-बांये,ऊपर-नीचे...मानों वो भैंस नहीं साक्षात होने वाली महबूबा को देख रहे हों।.
कुछ देर तक लगातार भैंस जी को देखने के बाद व्यापारी जी राय साब से मुखातिब हुये. और धीरे से कहा...
"राइ साब अब तो इ भैंसीया बेच दिजिये महराज..हम आज दो साल से आपसे मांग रहे हैं..समझ नहीं आ रहा कि इसका कौन सा अँचार डालेंगे आप.."
राय साहेब के कान पर जूं तक न रेंगी..दुआर को खरहर से बहारते रहे....नाद,चरन साफ करते रहे..भूसा,लेहना,सानी-पानी करते रहे..
बड़ी देर बाद खरहर रखकर बुलंद आवाज में कहा......" "भाई व्यापारी जी...इ भैंस तो हम कब्बो नहीं बेचेंगे..आप चाहें दस लाख क्यों न दें..ये बड़ी दुर्लभ चीज है....समझे"
व्यापारी जी को घोर आश्चर्य..उन्होंने झट से पूछा.."बे महाराज कइसन दुर्लभ.कवन हीरा मोती झर रहा..दूध कुछ ख़ास नहीं..नैन-नक्श,डील-डौल भी बेकार है..मरखाह भी बहुत है...आ हम अच्छा खासा पैसा दे रहे तो भी आप नहीं बेच रहे..आखिर का बात है...कवन ऐसी खूबी है,बताइये जरा ?
राय साहेब ने झट से कहा....
"तुम नहीं समझोगे भाई..ये बड़ी चरित्रवान भैंस है.."
व्यपारी जी हँसे.... "चरित्रवान भैंस..
मने का मजाक कर दिये राय साहेब..अरे इहाँ गाय भैंस खरीदते बेचते बुढ़ौती आ गया जी..बाल पक कर झड़ गये हमारे...सरवा आज तक हम हजारों भैंस किने बेचे लेकिन चरित्रवान भैंस का नाम तक नहीं सुना..तनी सुरती खिलाइये आ खुलासा समझाइये..बात का है?"
राय साब खैनी की डिबिया निकाले व्यापारी जी की तरफ बढ़ाते हुये प्रेमपूर्वक बोले....
"भाई इ जो भैंस है न..बहुते चरित्रवान है...आज तक एक ही भैंसा से गाभिन हुई है..मने दूसरे भैंसा को तो पास सटने नहीं देती.. बहुत चरित्रवान है.एकदम पतिव्रता भैंस"
व्यापारी खूब हंसा...लगातार हंसा...
आप भी हंस सकतें हैं..
लेकिन इधर दो तीन दिन से मैं हंस नहीं रहा, मैं उदास हूँ..
फेसबुक,ट्वीटर पर मैं पढ़ता ज्यादा, लिखता कम हूँ..
दो चार दिन से कई नामी गिरामी सर्टिफाइड बुद्धिजीवियों को पढ़ चुका..
इनको पढ़ता रहा लगातार और मुझे सुदामा राय कि वो चरित्रवान भैंस याद आती रही..
देख रहा कि ये वही चरित्रवान बुद्धिजीवी हैं..जो अकलाख की मौत के बाद तुरन्त गर्भवती हो गये थे..और असहिष्णुता नामक बच्चे को जन्म देकर दुनिया भर में ढिढोरा पीट दिया था..
"हाय भारत रहने लायक नहीं रहा...'
इस प्रसव की खुशी में बेचारे अपनी हरी हरी चूड़ियाँ तोड़ पुरस्कार तक वापस करने लगे थे..
मोदी संघ को पानी पी पी कर इस अंदाज में गरियाने लगे थे, मानों मोदी ने अकलाख की हत्या अपने हाथों से की हो..
वो तो भला हो बिहार चुनाव में भाजपा के हार का...सब एकाएक सही हो गया..बिहार में राम राज्य आ गया..लव कुश गद्दी सम्भाल लिये।वरना अल्लाह जाने और क्या क्या पैदा हो गया होता।
कुछ इस ख़ुशी में लौटाया हुआ पुरस्कार वापस रख लिये
लेकिन इधर देख रहा असहिष्णुता साइलेंट मोड में बहुत दिन से है..केरल में संघ के कार्यकर्ता सन्दीप की हत्या, उसके माँ बाप के सामने घर में घुसकर मार्क्सवादी गुंडों ने कर दी.कर्नाटक में लगातार संघ के कार्यकर्ता मारे गये...
उधर प्रशांत पुजारी की हत्या हुई..
वैसे छोड़िये इ सब तो संघी हैं.
वो बस्तर,छिंदवाड़ा में रोज नक्सली मासूम आदिवासी और सैनिकों की लगातार हत्या कर रहे। उनकी भी कोई खोज खबर नही।
न इनकी कविता आ रही न लेख छप रहे..न बड़े बड़े इंटरव्यू हो रहे..
आखिर कैसे हो जाय..
अब पंकज नारंग बेचारे उत्तराखण्ड के घोड़े थोड़े हैं... न ही वो नसीम नदीम अकलाख,अफज़ल,याकूब या रोहित वेमुला हैं।
किसी आदिवासी या सैनिक या संघी के लिये रो कर का मिलेगा भाई?
सो बेचारे बता रहे कि "अरे ये तो साधारण सी छोटी मोटी घटना है..ये तो आये दिन होती रहती है..इ उस टाइप की नही है..असहिष्णुता टाइप.. की पुरस्कार लौटाना पड़े...अरे मारने वाले हिन्दू भी थे....न जाने कितनी हत्या देश में हो रही..ये कोई बड़ी बात नहीं."
हाय!देखिये तो जरा..अकलाख रोहित की मौत पर कविता करके कई लीटर आंशू बहाने वाले अब मौत का वर्गीकरण कितनी होशियारी से कर रहे हैं....छोटी मौत, बड़ी मौत, कम्युनल मौत,सेक्यूलर मौत,
एक गंवार भी जानता है कि मौत और हत्या तो हत्या होती है..जिसमें जान चली जाती है...वो चाहें अकलाख की हो या सन्दीप की..डॉक्टर नारंग मारे जाएँ या कल हम आप मारें जाएं..
हर बार हिन्दू मुसलमान से पहले आदमी मरता है..
संवेदना का ये तकाजा है की वो सबके लिये बराबर हो..
अगर ऐसा नहीं तो ये सिर्फ बौद्धिक दलाली है...
और मौत का टाइप देखकर निकलने वाले इनके घड़ियाली आंशू महज फरेब हैं।
इन्हें न रोहित वेमुला से मतलब है न अकलाख से...न उत्तराखण्ड के घोड़े की टांग से..
वरना केरल के सन्दीप,और कर्नाटक के संघ कार्यकर्ता. बस्तर अबूझमाड़ में मारे जा रहे आदिवासी...डाक्टर पंकज नारंग के लिये भी जरूर दो चार बून्द टपक जाता।
ये दलाल बुद्धिजीवी वही सुदामा राय कि चरित्रवान भैंस हैं..जो एक खाश किस्म के वैचारिक भैंसा से गर्भधारण करतें हैं...